सम्पादकीय

कुदरत का कहर

Subhi
11 July 2022 4:55 AM GMT
कुदरत का कहर
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बरसात के वक्त पहाड़ों पर खतरे बढ़ जाते हैं। मगर अमरनाथ यात्रा का समय तय होता है, इसलिए श्रद्धालु जोखिमों की परवाह किए बिना यात्रा को निकल पड़ते हैं। हालांकि अमरनाथ यात्रा में आतंकवादी घटनाओं और दुर्गम रास्तों के चलते खतरे की आशंका हमेशा बनी रहती है

Written by जनसत्ता: बरसात के वक्त पहाड़ों पर खतरे बढ़ जाते हैं। मगर अमरनाथ यात्रा का समय तय होता है, इसलिए श्रद्धालु जोखिमों की परवाह किए बिना यात्रा को निकल पड़ते हैं। हालांकि अमरनाथ यात्रा में आतंकवादी घटनाओं और दुर्गम रास्तों के चलते खतरे की आशंका हमेशा बनी रहती है, इसलिए प्रशासन ने इसे बहुत चाक-चौबंद बनाने का प्रयास किया है। हर श्रद्धालु का पंजीकरण कराया जाता है, रास्ते भर सुरक्षा के इंतजाम होते हैं।

स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने या किसी दुर्घटना के वक्त स्थिति को काबू में करने के लिए जगह-जगह विश्रामगृह और अस्पतालों की व्यवस्था है। पर कुदरत के कहर पर किसका वश चलता है। इस बार अमरनाथ गुफा के दो किलोमीटर के दायरे में बादल फटा और दर्जन भर से ज्यादा श्रद्धालु मारे गए। चालीस के करीब लोग लापता बताए जा रहे हैं।

हालांकि सेना तुरंत बचाव कार्य में लग गई और उसने घायलों को अस्पताल और बाकी लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने में तत्परता दिखाई। पहाड़ों पर बादल फटने की घटनाएं हमेशा जान-माल को भारी नुकसान पहुंचाती हैं। जिस वक्त अमरनाथ गुफा के पास बादल फटा, उस वक्त वहां दस से पंद्रह हजार लोग जमा थे। गनीमत है कि उस अनुपात में बहुत नुकसान नहीं हुआ, पर इस घटना से यह सबक तो मिलता ही है कि सुरक्षा संबंधी उपायों पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है।

दरअसल, अमरनाथ यात्रा के मद्देनजर रास्तों में अस्थायी इंतजाम किए जाते हैं। जैसे लोगों के ठहरने के लिए जो तंबू लगाए जाते हैं, वे कपड़ों और प्लास्टिक के होते हैं। जो लंगर वगैरह होते हैं, वे भी इसी तरह अस्थायी बंदोबस्त होते हैं। इसलिए जब बादल फटा तो कई तंबू और लंगर बह गए। उस इलाके के पहाड़ भी कच्चे हैं, इसलिए पानी के साथ उनका मलबा बह कर आया और उसमें लोग दब गए।

हालांकि कश्मीर के पहाड़ों पर अभी उस तरह विकास परियोजनाएं नहीं चलती हैं, जैसी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ों पर चल रही हैं। इसलिए उन पहाड़ों पर बादल फटने से भारी नुकसान नहीं देखा जाता। कुछ साल पहले उत्तराखंड के केदारनाथ में बादल फटने से जो तबाही मची थी, उसे लेकर लगातार रेखांकित किया जाता है कि पहाड़ों पर निर्माण कार्यों को लेकर मनमानी पर रोक लगनी चाहिए। मगर सड़कें चौड़ी करने, पर्यटन को बढ़ावा देने की मंशा से होटल, मोटल, बाजार वगैरह के निर्माण में जिस तरह की मनमानी की जाती है, उसके भयावह नतीजे आए दिन देखने को मिलते हैं।

यों सुरक्षा की दृष्टि से अमरनाथ यात्रा को दूसरे धार्मिक स्थलों की अपेक्षा अधिक चुस्त माना जाता है। मगर बादल फटने जैसी घटना को लेकर एहतियाती उपाय करने के बारे में नहीं सोचा गया होगा। काफी पहले भी बादल फटने से कई श्रद्धालु मारे गए थे। अब जिस तरह जलवायु संबंधी खतरे बढ़ रहे हैं, उसमें बरसात के वक्त बादल फटने की आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

ऐसी घटनाओं के पूर्वानुमान भी नहीं लगाए जा सकते। मगर मौसम के मिजाज को नापने की अत्याधुनिक तकनीक अब सहज उपलब्ध है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है। फिर पहले ही लोगों के रुकने-ठहरने के पुख्ता और व्यावहारिक इंतजाम कर लिए जाएं तो मुश्किलें कम हो सकती हैं। कुछ साल पहले तेज बारिश आ जाने से कई दिनों तक बहुत सारे श्रद्धालु पहाड़ों में फंसे रहे, जिनकी तलाश मुश्किल से हो पाई थी। इसलिए इस यात्रा को और अधिक चाक-चौबंद बनाने की जरूरत है।


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