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सम्पादकीय
प्रकृति में वो ताकत है कि सबसे ज्यादा सीखे-सिखाए लोगों को भी चौंका दे
Gulabi Jagat
17 May 2022 8:46 AM GMT
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ओपिनियन
एन. रघुरामन का कॉलम:
किसी से भी पूछें कि शहद का रंग क्या है? तुरंत जवाब मिलेगा ब्राउन। पर यह गलत है! चूंकि इसका रंग परागण पर निर्भर है, जो कि मधुमक्खी फूलों से इकट्ठा करती हैं, ऐसे में ब्राउन उन ढेरों रंगों में से है। यह रंगहीन से लेकर गहरा ब्राउन तक हो सकता है। ज्यादा अनुभवी उपभोक्ता व मधुमक्खी पालक इसके रंग, स्वाद व दूसरी चीजें देखकर शहद का प्रकार पहचान सकते हैं। मैं भी ऐसा ही एक उपभोक्ता हूं।
मुझे मेंगलोर की छाया नानजप्पा से ट्रेनिंग मिली है, वह देश में शहद उत्पादन में अग्रणी लोगों में एक हैं और वहां 'नेक्टर फ्रेश' नाम की कंपनी चलाती हैं। दो दशक पहले उन्होंने शहद के 40 विभिन्न रंगों से मेरा परिचय कराया था। तबसे कम से कम मेरे घर में हम गर्व से वाइट कलर का हनी मंगाते हैं! ध्यान दें कि यहां वाइट का मतलब हकीकत में सफेद शहद नहीं, इसका मतलब है कि शहद रंगहीन है।
आमतौर पर शहद दो तरह के होते हैं- मोनोफ्लोरल, मल्टीफ्लोरल। मोनोफ्लोरल, मल्टी से महंगा होता है क्योंकि ये एक ही तरह के फूलों से इकट्ठा होता है। हालांकि शहद का रंग इसके स्रोत फूल, उसके पोषक तत्वों आदि कारकों पर निर्भर है। शहद का रंग समय व हीट से बदल सकता है। ज्यादा तापमान पर जमा किया शहद डार्क हो जाता है।
संग्रहीत शहद कुछ समय बाद दानेदार हो सकता है, और फिर रंग क्रिस्टल के आकार पर निर्भर करता है। किस मौसम में शहद निकाला है, इस पर भी रंग निर्भर करता है। उदाहरण के लिए बसंत में निकाला शहद हल्के रंग का व पारदर्शी होगा। जबकि गर्मी में निकाला शहद खुशनुमा पीले रंग का और फलों के स्वाद का होता है। पतझड़ का शहद आमतौर पर डार्क, स्वाद में तीखा होता है।
लाल, नीले, हरे रंग का शहद भी होता है। और जिस परागण (फूल) पर मधुमक्खी बैठती हैं, इससे भी रंग तय होता है। इस रविवार को मांघर गांव से गुजरते हुए मुझे शहद से जुड़ी ये चीजें याद आ गईं, यह महाराष्ट्र के प्रसिद्ध हिल स्टेशन महाबलेश्वर से 10 किमी दूर है। ये गांव शहद उत्पादन से जुड़ा प्रत्यक्ष ज्ञान व पर्यावरण में इनकी महत्ता के बारे में जानकारी देता है। महाराष्ट्र सरकार ग्राम आधारित पर्यटन विकसित कर गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की पहल कर रही है, साथ ही खाद्य शृंखला में मधुमक्खियों के महत्व पर जोर दे रही है।
महाराष्ट्र में शहद का सालाना उत्पादन 1.25 लाख किलो है, इसमें 35 हजार किलो मांघर से आता है, इसलिए इसे 'मधाचे गाव' (शहद का गांव) का तमगा मिला है, महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री सुभाष देसाई ने इस सोमवार को इस पर आधिकारिक मुहर लगाई। वह न सिर्फ शहद उत्पादन बढ़ाने बल्कि पर्यटन के अवसरों को बढ़ावा देने व अधिक गांवों को इस योजना के तहत लाने की योजना बना रहे हैं।
लोकल लोगों को रोजगार देने के अलावा यह अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण के लिए भी हितकर है। अगर आप ऐसी जगह से हैं, जहां बेहतर जंतु विविधता है, तो आपको जामुन, इलायची, दालचीनी, शहतूत, हिरडा/हरण आदि के ज्यादा पेड़ लगाकर ऐसे प्रकृति आधारित बिजनेस आइडिया प्रोत्साहित करना चाहिए।
अगर भौगोलिक रूप से ऐसे किसी जाने-पहचाने पर्यटन स्थल जैसे मांघर के करीब हैं, तो आने वाले पर्यटकों में कम से कम 10% को वहां आकर्षित करने की योजना बनानी चाहिए। क्योंकि इसमें स्थानीय अर्थव्यवस्था बदलने की ताकत है और जागरूकता फैला सकता है। याद रखें प्रकृति आधारित बिजनेस कभी खत्म नहीं होते, जब तक हम उन्हें नष्ट न करें। इसके अलावा यह हमें सुपर इंटेलिजेंट बनाता है।
फंडा यह है कि प्रकृति में वो ताकत है कि सबसे ज्यादा सीखे-सिखाए लोगों को भी चौंका दे। इसलिए नए आइडियाज, नई जानकारी, नई पैकेजिंग के साथ बेचें।
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Gulabi Jagat
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