- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- प्रकृति और मानव: बीती...
प्रकृति और मानव: बीती त्रासदियों से सबक ही बचाव का एकमात्र उपाय
नरेंद्र भारती
देश में कभी भूकंप, कभी सुनामी, जैसी प्राकृतिक आपदाएं अपना जलवा दिखाती हैं तो कभी बाढ़ का रौद्र रुप जिदंगियां लीलता है। प्रकृति रौद्र रुप दिखाकर तबाही मचा रही है। उतराखंड में प्रकृति मौत का तांडव कर रही है। दर्दनाक मौतें हो रही हैं। ताजा घटनाक्रम में उत्तराखंड में लगातार हो रही बारिश से बादल फटने से और भूस्खलन से 14 मजदूरों समेत 40 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई।
मजदूर जिंदा दफन हो गए। नदियों का जलस्तर खतरे के निशान पर आ गया है। प्रतिवर्ष लाखों लोग मारे जाते हैं। मानव भी प्रकृति से छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आते, लेकिन जब प्रकृति अपना बदला लेती है तब लोगों को होश आता समय पर भीषण त्रासदियां होती रहती हैं, मगर हम आपदाओं से कोई सबक नहीं सीखते।
प्रकृति की इस त्रासदी से हर भारतीय गमगीन है। प्रकृति का यह तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा है। कारें कागज की कश्तियों की तरह बह गईं। मकान पानी में डूब गए हैं। उतराखंड में प्रकृति ने पहले भी प्रलय की इबारत लिखी थी। चमोली जिला के तपोवन में ग्लेशियर टूटकर ऋषि गंगा नदी में गिरा था और तबाही का मंजर पल भर में लोगों को लील गया था। ऋषि गंगा नदी के किनारे रैणी गांव में ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट तहस नहस हो गया था और दर्जनों लोगों की जान चली गई थी।
16 लोगों को एनडीआरएफ ने बचा लिया था, लेकिन 204 लोग लापता हो गए थे, जबकि 34 शव बरामद किए गए थे। यह बहुत ही बड़ी त्रासदी थी। पल भर में लोग बह गए और लापता हो गए थे। चमेाली में लापता लोगों की तलाश के लिए अब जियोग्राफीकल स्कैनिंग की गई थी। गत 25 जुलाई 2021 को किन्नौर जिला के बटसेरी के गुसां के पास चट्टानें गिरने से पर्यटकों की गाड़ी के भूस्खलन की चपेट में आने के कारण 9 पर्यटकों की दर्दनाक मौत हो गई थी, जबकि तीन गभीर रुप से घायल हो गए थे।
बास्पा नदी पर बना पुल भी टूट गया था। साल 2020 में अम्फान चक्रवात ने पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में तबाही मचा दी थी। 80 लोग अकाल बेमौत मारे गए थे। लाखों लोग बेघर हो गए थे। पुल क्षतिग्रस्त हो गए थे। इलाके जल्मगन हो गए थे। अक्तूबर 1999 में भी ओडिशा में तूफान ने काफी तबाही मचाई थी। प्रकृति की इस विभीषिका में हजारों लोग अपंग हो गए थे। बच्चे अनाथ हो गए थे, लाशें मलबे में दफन हो गई थीं। 2021 में हिमाचल में प्रकृति ने प्रलय की इबारत थी।
किन्नौर से लेकर भरमौर तक प्रकृति ने मौत का तांडव मचाया था। सैकड़ों लोगों की अकाल मौत हो गई थी। प्रकृति ने रौद्र रुप दिखाकर मानव को आगाह कर दिया है कि संभल जा अभी भी समय है।भूस्खलन व बाढ़ से चार लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी और 12 लोग लापता हो गए थे। धर्मशाला के भगसूनाग में भंयकर तबाही हुई थी। कुपवी में तीन मंजिला मकान जमींदोज हो गया था। कुदरत के इस कहर से हर हिमाचली दहशत में था।
प्रकृति ने मानव को समय पर आगाह किया, मगर इंटरनेट की दुनिया के जाल में फंसा मानव खुद को प्रकृति से बड़ा मानने लगा था। उसे यह आभास नहीं था कि प्रकृति सबसे बड़ी गुरु है। प्रकृति ने बहुत कुछ सहा है। प्रकृति एक ऐसी देवी है जो भेदभाव नहीं करती। प्रकृति के बिना मानव प्रगति नहीं कर सकता, प्रत्येक मानव को बराबर धूप व हवा व पानी दे रही है।
मानव कृतघ्न बनता जा रहा है। मानव ने स्वार्थो की पूर्ति के लिए प्रकृति को लहूलुहान किया है। आज प्रकृति ने अपना बदला ले लिया है। तबाही की इबारत लिख दी है। मानव का अहम मिटाकर रख दिया है। गलतफहमियों में जी रहे मानव आज प्रकृति के आगे नतमस्तक हो चुके हैं।
अतीत में की गए कुकर्मो का पश्चाताप कर रहे हैं। चारों तरफ गंदगी है वातावरण अशुद्ध हो गया है। वातवरण की शुद्धि के लिए प्रकृति मजबूर हो गई और मगरुर हो चुके इंसान का गुरुर तोड़ कर रख दिया है। अनजाने में हुई भूल को माफ किया जा सकता है मगर जानबूझकर की गई गलतियों की सजा प्रकृति ने मानव को दे दी है।
मानव को जीवन और मौत की परिभाषा सिखा दी है। यह प्रलय की आहट है। कुदरत ने भटक चुके मानव को पाप और पुण्य का अंतर समझा दिया है। प्रकृति का एक संदेश है भटक चुके व अहंकारी इंसान के लिए जो कुदरत से खिलवाड़ करता था। प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो हमें अपनी जीवनशैली बदलनी होगी, छेड़छाड़ बंद करनी होगी।
अगर अब भी मानव ने प्रकृति पर अत्याचार बंद नहीं किया तो प्रकृति अपना बदला लेती रहेगी और मानव को सबक सीखाती रहेगी। कुदरत का कहर बरपता रहेगा। यह प्रकृति का एक ट्रेलर ही है, अगर अब भी मानव ने प्रकृति से छेड़छाड़ बंद नहीं की तो प्रकृति पूरी पिक्चर दिखएगी तब होश आएगा वक्त अभी संभलने का है।
कहते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं को रोक तो नहीं सकते परंतु अपने विवेक व ज्ञान से अपने आप को सुरक्षित कर सकते हैं। गत वर्ष उत्तराखंड में प्रकृति का रौद्र तांडव हुआ था, एक अविस्मरणीय त्रासदी थी। प्रलय में असमय व अकाल ही निर्दोष लोग मारे गए थे।
कुछ बच गए थे कुछ लापता हो गए थे। प्रकृति समय-समय पर आगाह करती रहती है मगर फितरती हो चुका मानव खुद को समझकर समझता है मगर प्रकृति ने एक छोटे से झटके से उसको औकात दिखा दी है। सरकार ने मुआवजे की घोषणा कर दी है मगर मुआवजा इसका हल नहीं है। प्रकृति से खेलना बंद करना होगा।
यह प्रलय निरंतर होते रहेंगे। हर त्रासदी के बाद बचाव पर चर्चा होती है, मगर कुछ दिनो बाद जब जीवन पटरी पर चलने लग जाता है तो इन बातों को भुला दिया जाता है। अगर बीती त्रासदियों से सबक सीखा जाए तो आने वाले भविष्य को सुरक्षित कर लिया जा सकता है। मगर हादसों व आपदाओं से न तो लोग सबक सीखते हैं और न ही सरकारें सबक सीखती हैं।
कुछ दिन सरकारी अमला औपचारिकता निभाता है और उसके बाद अगली घटना तक कोई कारगर उपाय नहीं किए जाते। सरकारों को इन आपदाओं पर मंथन करना चाहिए तथा शिविर लगाकर महानगरों, शहरों व गांवों के लोगों को जागरूक किया जाए। तभी तबाही से बचा जा सकता है। देश में प्राकृतिक आपदाओं का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है।
प्रकृति का कहर अनमोल जिंदगियां लील रहा है। देश के हर राज्य में बरसात से त्रासदियां हो रही हैं। इस विनाशकारी प्रकृति के कहर से जनमानस खौफजदा है। सरकार को चाहिए की प्रत्येक गांव से लेकर शहरों तक आपदा प्रबंधन कमेटियां गठित करनी चाहिए, जिसमें डाक्टर नर्स व अन्य प्रशिक्षित स्टाफ रखना चाहिए, ताकि व त्वरित कारवाई करके लोगों केा मौत के मुंह से बचा सके। अक्सर देखा गया है कि जब तक आपदा प्रबंधन की टीमें घटना स्थनों पर पहुंचती हैं तब तक बची हुई सासें उखड़ जाती हैं, लाशों के ढेर लग जाते हैं।
अगर समय पर आपदा ग्रस्त लोगों को प्राथमिक सहायता मिल जाए तो हजारों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार को कालेजों व स्कूलों में भी मॉकड्रिल जैसे आयोजन करने चाहिए, ताकि अचानक होने वाली आपदाओं से अपना व अन्य का बचाव किया जा सके। स्कूलों व कॉलेज में चल रहे राष्ट्रीय सेवा योजना व स्काउट एंड गाइड के स्वयंसेवकों को आपदा से निपटने के लिए पारंगत किया जाए।
अगर यही स्वयंसेवी अपने घर व गांवों में लोगों को आपदा से बचने के तरीके बताएं तो काफी हद तक नुकसान को कम किया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि आपदा से बचाव के लिए प्रत्येक विभाग के कर्मचारियों को पूर्वाभ्यास करवाया जाए, ताकि समय पर काम आ सके। पुलिस व अग्निशमन के कर्मचारियों को भी समयपर ऐसे आयोजन करते रहना चाहिए। अगर सभी लोग आपदा से बचाव के तरीके समझ जाएंगे तो तबाही कम हो सकती है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।