सम्पादकीय

प्राकृतिक सौंदर्य : आकाश के सुरम्य द्वीप हैं पर्वत

Neha Dani
14 Dec 2021 1:51 AM GMT
प्राकृतिक सौंदर्य : आकाश के सुरम्य द्वीप हैं पर्वत
x
परिवर्तनों से पीड़ित होने वाले पहाड़ दुनिया में सबसे पहले भुक्तभोगी हैं।

पश्चिम के रॉकी माउंटेन से लेकर उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र तक विश्व के पर्वतीय क्षेत्रों में हुई अभूतपूर्व त्रासदी के बीच इस वर्ष 11 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाना पड़ा। वैसे इस बार यह दिवस पारिस्थितिक पर्यटन (इको-टूरिज्म) को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित था, जो उसी उपभोक्तावाद का नया नया मंत्र है, जिसमें प्रकृति के संपूर्ण सौंदर्य के उपभोग के बिना तृप्ति नहीं मिलती।

प्राकृतिक सौंदर्य यों तो मानवीय सृजनशीलताओं को पोषित करने के लिए एक प्रकृति-प्रदत्त पहलू है, लेकिन पारिस्थितिक पर्यटन की फिलॉसोफी के केंद्र में यह सौंदर्य मात्र भौतिक आनंद के उपभोग की वस्तु है। और इसके परिणाम? पर्यावरण प्रदूषण, सामाजिक प्रदूषण, सांस्कृतिक प्रदूषण, नैतिक प्रदूषण आदि-आदि। ऐसे में पर्वतों के कुछ अनूठे पहलुओं पर प्रकाश डालना आवश्यक है।
पृथ्वी पर पर्वतों की महिमा अतुलनीय है। पर्वत सुंदरता, शांति, तपस्या, आध्यात्मिकता, पर्यावरण-योग और रचनात्मकता के अद्वितीय उदाहरण हैं। पहाड़ जैविक विविधता, सांस्कृतिक विविधता और भाषायी विविधता के असाधारण परिवेश हैं। दृढ़ता से लंबवत खड़े होकर, पहाड़ पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को चुनौती देते हैं और आकाश से छेड़खानी करते हैं। अपनी विशिष्टता के हर पहलू में पर्वत इस दुनिया से पूरी तरह से अलग-से लगते हैं।
पर्वत आकाश के सुरम्य द्वीप हैं। वे मुख्यधारा की मैदानी दुनिया में अनेकानेक खुशियां भेजते हैं। धरती पर लगभग 20 प्रतिशत भाग पर पहाड़ हैं, लेकिन 50 प्रतिशत से भी अधिक लोग प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से उन पर निर्भर करते हैं। इतना विराट महत्व है, पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्रों का! पर्वत न होते तो कल-कल बहती नदियां न होतीं। नदियां न होतीं तो क्या होता, सोचा भी नहीं जा सकता।
दुनिया के पहाड़ों के बीच, हिमालय मानव मन में एक विशिष्ट छवि रखता है : भूगर्भीय दृष्टिकोण से युवतम, सबसे ऊंची, सबसे सुंदर, नयनाभिराम और सुरम्य पर्वत शृंखला। हिमालय पृथ्वी के दो ध्रुवों – उत्तर और दक्षिण– के बाहर बर्फ का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत है। इसीलिए हिमालय को अक्सर पृथ्वी का 'तीसरा ध्रुव' भी कहा जाता है। हिमालय पर्वतमाला अपने आप में एक सूक्ष्म जगत है।
यह पहाड़ दुनिया के सबसे ऊंची जल मीनारों (वाटर टावर्स) का सृजन करता है, जो लगभग दो अरब लोगों, यानी दुनिया की लगभग एक-चौथाई आबादी के लिए स्वच्छ पेयजल का प्राकृतिक स्रोत है। हिमालय पूर्व में म्यांमार और पश्चिम में अफगानिस्तान तक आठ देशों के संपूर्ण अथवा आंशिक भू-भाग पर 3,500 किमी तक फैला हुआ है। यह सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, सल्वेन (नू), मेकांग और पीली नदी (हुआंग) जैसी सबसे बड़ी एशियाई नदी प्रणालियों का स्रोत है तथा दक्षिण एशिया क्षेत्र में लोगों की घनी आबादी के लिए पानी, पारिस्थितिकी सेवाएं, और आजीविका का आधार प्रदान करता है।
हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम के वासी अपने-अपने प्रदेश को देवभूमि कहते हैं, जो उनके हिमालय के प्रति पवित्र भावों को इंगित करता है। पर्वतीय वातावरण के प्रति सम्मान जगाने के लिए प्राकृतिक पवित्रता के भाव और आध्यात्मिक साधना महत्वपूर्ण है। पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र में पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्स्थापित करने के लिए पवित्र और आध्यात्मिक अवधारणाओं के आधार पर पहाड़ों में विकास कार्यक्रमों में एक इनपुट अनिवार्य है।
दशक 2021-2030 को संयुक्त राष्ट्र के पारिस्थितिक तंत्र पुनर्स्थापना दशक के रूप में मनाया जा रहा है। पवित्रता, आध्यात्मिकता, पर्यावरण-दर्शन और अक्षय विकास के सिद्धांतों को शामिल करते हुए विश्व के सभी पहाड़ों का पारिस्थितिक पुनरुत्थान ग्रह के पारिस्थितिक संतुलन और जलवायु परिवर्तन शमन के लिए महत्वपूर्ण होगा। जलवायु परिवर्तन हो या भूमि और मिट्टी का क्षरण, दुनिया में होने वाले प्रतिकूल परिवर्तनों से पीड़ित होने वाले पहाड़ दुनिया में सबसे पहले भुक्तभोगी हैं।

Next Story