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सुधीश पचौरी: बिहार के 'अधिकांश मंत्री पतित' हैं, 'भ्रष्ट' हैं, बाकी को इससे 'कष्ट' है। हमें तो यह कहानी 'दोस्त दोस्त ना रहा प्यार प्यार ना रहा' वाली नजर आई। जब तक 'दोस्त' थे सब में 'गुन ही गुन' थे और जब दुश्मन हुए तो 'अवगुन ही अवगुन' दिखने लगे! ऐसी 'अवसरवादी' आलोचना 'खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे' की तरह नजर आती है!
चैनलों की बहसों में बिहार का 'विपक्ष' कहिन रहा कि 'जंगलराज' लौट आया है। जवाब में नीतीश कुछ इस तरह कहिन कि 'वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमां, हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।'
एक दिन केंद्रीय मंत्री जी ट्वीटिन कि रोहिंग्याज को बसाएंगे। यूएन के हिसाब से सुविधाएंगे, लेकिन तुरंत गृह मंत्रालय ने संभाला कि ऐसा कोई फैसला नहीं हुआ…ये क्या हो रहा है सर जी? एक मंत्रालय एक नीति 'ओके' करता है, तो बड़ा मंत्रालय उसे 'नकार' देता है!
चैनलों में सरकार का फजीता होने लगता है। अवसर पाते ही 'आप' केंद्र को 'रोहिंग्या नीति' पर ठोकने लगती है… ऐसा ही एक और झटका लगता है बिलकिस बानो के बलात्कारियों के 'बाहर' आ जाने से। कुछ के लिए बलात्कारी भी देवता हो जाते हैं।
जेल के ऐन बाहर उनको मिठाइयां खिलाई जाती हैं। मालाएं पहनाई जाती हैं… प्रतिक्रिया में सबसे मुखर राष्ट्रवादी चैनल का परम राष्ट्रवादी एंकर रात के नौ के कार्यक्रम में चिल्लाता दिखता है कि बिलकिस को चाहिए न्याय और हम दिलाकर रहेंगे।
कई चर्चक पूछते रहे कि सरकार अपील में क्यों नहीं गई? बिलकिस की वकील कहती हैं कि उम्मीद है कि सरकार अपील में जाएगी! एंकर चाहता है कि अपील की जाए, क्योंकि यह स्थिति उसके 'राष्ट्रवाद' के लिए भी चुनौती है!
प्रधानमंत्री लाल किले से सबसे अधिक बार संबोधन करने वाले पीएम बने। उनकी पगड़ी पर तिरंगे के तीन रंग लहराते रहे। तिरासी मिनट में उन्होंने भारत को अगले पच्चीस बरस में विकसित राष्ट्र बनाने के लिए 'पंच प्राण' गिनाए। कई हिंदी चैनल 'प्राण' को 'प्रण' की तरह कहते-लिखते रहे। कुछ अंग्रेजी चैनलों में भी 'प्राण' और 'प्रण' भारी भ्रमात्मक रहा, लेकिन अब तक किसी ने साफ नहीं किया कि प्रधानमंत्री का प्राण 'प्राण' था कि 'प्रण' था?
प्रधानमंत्री के बाद दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के 'राष्ट्रवाद' के बरक्स अपना 'राष्ट्रवाद' पेश किया और अपनी 'मिनीमलिस्ट' शैली में 'एक सौ तीस करोड़' लोगों को संबोधित करते हुए अपने पांच संकल्प दिए, जिन पर अमल करके भारत को 'सबसे ताकतवर और नंबर वन' राष्ट्र बनाया जा सकता है!
इसे देख टीएमसी के प्रवक्ता चिहुंक उठे कि केजरीवाल दो राज्यों में हैं… ममता ही मोदी को चुनौती दे सकती हैं। चैनलों की बन आई। वे गिनाने लगे कि 2024 में मोदी के मुकाबले आठ नेता मैदान में हो सकते हैं, जैसे कि केजरीवाल हैं। ममता हैं। नीतीश हैं। उधर स्टालिन हैं। केसीआर हैं। शरद पवार हैं। अखिलेश भी हैं और फिर सर्वोपरि राहुल हैं। एक ओर एक, दूसरी ओर आठ! है न कमाल की बात!
एक चर्चा में एक एंकर जी कहिन कि केजरीवाल चौबीस की नहीं, आगे की तैयारी कर रहे हैं, यानी वे लंबी रेस के घोड़े हैं। इस मामले में केजरीवाल मोदी के समांतर एकमात्र 'स्मार्ट मूवर' नजर आते हैं। मोदी की तरह वे भी 'एक सौ तीस करोड़ जनता' के लिए सोचते हैं। मोदी तिरासी मिनट बोलते हैं तो ये दस मिनट में सारी बात निपटा देते हैं और इन दिनों तो आप और भाजपा 'मुफ्त सुविधाओं' के बरक्स 'कल्याणकारी योजनाओं' की 'इंच इंच' लड़ाई में आमने-सामने हैं!
इस बीच दो चैनलों ने दो सर्वे दिए। 'सी-वोटर इंडिया टुडे' वाले ने मोदी को अब भी सबसे अधिक लोकप्रिय बताया, तो दूसरे 'टाइम्स नाउ' वाले सर्वे ने भी इसकी पुष्टि-सी की!
इन दिनों चैनल राजस्थान की कानून-व्यवस्था को खास तवज्जो दे रहे हैं और वह भी एक से एक अन्याय और हिंसा की खबरें पेश कर रहे हैं। एक के बाद एक, दो दलितों पर हिंसा की खबर, उसमें भी एक दलित बालक की अध्यापकों के घड़े से पानी पीने पर पिटाई और उसकी मौत की खबर प्रेमचंद की कहानी 'ठाकुर का कुआं' की याद दिलाती दिखी।
इस कहानी का एक 'आल्ट ट्रुथ' वाला नैरेटिव भी सामने आया कि वहां कोई 'घड़ा' नहीं था, दो बालकों में लड़ाई के लिए अध्यापक ने दोनों को पीटा था…चलते-चलते : शुक्रवार की सुबह दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री के घर तथा अन्य स्थानों पर सीबीआइ के छापों की खबर हर चैनल पर छाई रही।