सम्पादकीय

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस: विज्ञान को जनजीवन से जोड़ना होगा

Neha Dani
28 Feb 2022 1:53 AM GMT
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस: विज्ञान को जनजीवन से जोड़ना होगा
x
तभी हम आने वाले समय में विज्ञान की बेहतर दिशा तय कर पाएंगे।

इस बार का राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 'समेकित दृष्टिकोण से विज्ञान द्वारा सतत विकास व भविष्य' पर केंद्रित है। इसका अर्थ यह भी समझा जा सकता है कि शायद हम कहीं विज्ञान में समेकित भावनाओं को नहीं जोड़ पाए। यह सच भी है, क्योंकि विकास की भूमिका को इस रूप में ज्यादा देखा जाना चाहिए कि ये किस तरह से समृद्धि लाए। ये किसी भी तरह एकपक्षीय न हो। आज हम विज्ञान को जोड़ते समय किसी उत्पाद पर केंद्रित होते हैं, लेकिन उस उत्पाद को पाने या उसे उपयोगी बनाने के लिए हम दूसरी अन्य चीजों को खो देते हैं।

अगर हम पिछले तीन सौ वर्षों में विज्ञान की दिशा को देखने की कोशिश करें, तो विज्ञान के उत्पाद या उसकी शैली में या तो बाजार बड़े रूप में जुड़ा रहा या फिर उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन ज्यादा हुआ, जो हमारी विलासिताओं से जुड़ी थी। आज बाजार बड़े रूप में विज्ञान चालित है। नए-नए उत्पादों के साथ हम बाजार में आते हैं। एक खास वर्ग विज्ञान को इसी रूप में जानता है। बाजार में बिक रहे गैजेट्स, सामान या वे तमाम सुविधाओं वाले उत्पाद विज्ञान से ही जुड़े हुए हैं या उसकी तकनीकी से। पर हमने सदियों में जो दिशा तैयार की, उनमें हमने बहुत कुछ अनदेखा किया।
उदाहरण के लिए, आज भी हम पूरी तरह से समाज के एक बड़े वर्ग को विज्ञान से नहीं जोड़ पाए। मसलन, गांव और उससे जुड़े हुए तमाम विषय। यह इसलिए भी नहीं हुआ, क्योंकि विज्ञान को सरकारों का दायित्व माना गया, जिसमें बाजार का उतना महत्व नहीं था। यही कारण है कि गांव के विज्ञान पर या तो समुचित कार्य नहीं हुआ या जो हुआ भी, वह गांवों तक नहीं पहुंच पाया। इसी से शहर और गांव की परिभाषा तय की गई। जहां सुविधाओं का भंडार था, वह शहर बनता गया और जहां सुविधाओं का अभाव था, वह गांव रह गया। हम विज्ञान के मूल स्वभाव तय नहीं कर पाए। हमने हवा, मिट्टी, पानी, जंगल जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों को लेकर बड़ी चिंताएं नहीं कीं। आज तक समेकित विज्ञान को लेकर काम नहीं हुआ। जैसे कि पानी की कमी होना विज्ञान के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं, पर व्यापक रूप में इसका समाधान खोजने के बजाय बोतलबंद पानी के जरिये पानी के व्यापार का रास्ता खोल दिया गया।
ऐसे ही, दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और देश का बड़ा हिस्सा वायु प्रदूषण की चपेट में है। लेकिन विज्ञान ने इसके समाधान की वैसी चिंता नहीं की, हां, एयर प्यूरीफायर को एक बड़ी वैज्ञानिक सफलता के रूप में जरूर दर्ज किया गया। सड़क निर्माण को विकास का हिस्सा माना गया, पर इसके निर्माण से होने वाले नुकसानों की भरपाई के लिए काम नहीं किए गए। नतीजा यह है कि आज पहाड़ों में सड़कों को लेकर ही बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। एक तरफ विज्ञान चंद्रमा और मंगल को छूना चाहता है, दूसरी तरफ देश के गांव अविकसित हैं, अनेक नदियों पर अब भी पुल खड़े नहीं हुए। बेहतर होता कि हमारा विज्ञान घर, गांव और आम आदमी की आवश्यकता से जुड़ा होता। इसके बजाय विज्ञान बाजार से प्रभावित हुआ है। अपने देश में शहर जहां खड़े होते चले जा रहे हैं, वहीं गांव खाली होते चले जा रहे हैं। इसके लिए कहीं न कहीं विज्ञान भी जिम्मेदार है। हम यह मानकर चलें कि आने वाले समय में जब तक विज्ञान ग्राम केंद्रित नहीं होगा, तब तक वह न्याय नहीं कर पाएगा। गांवों में आर्थिक असमानता तो दिखाई देती ही है, पारिस्थितिकीय असमानता भी भीषण हो रही है।
विज्ञान समाज में समानता लाने का भी आधार होना चाहिए। ऐसा क्यों है कि वैज्ञानिक प्रगति और इसके आविष्कारों का लाभ उठा चुके तमाम लोग समाज के समृद्ध ही हैं? हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमने आज तक उद्योग, ढांचागत विकास या विज्ञान पर आधारित जो कुछ भी खड़ा किया है, उसके कुछ न कुछ नुकसान भी हमें दिखाई दे रहे हैं। इसलिए यह जरूरी है कि अब हम विज्ञान को उन सभी पहलुओं से जोड़कर देखें और समानता का आधार बनाएं। शहर और गांव, दोनों इसका बड़ा लाभ उठा सकें। इस चुनौती के साथ अगर हम राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाते हैं, तभी हम आने वाले समय में विज्ञान की बेहतर दिशा तय कर पाएंगे।

सोर्स: अमर उजाला


Next Story