सम्पादकीय

नेशनल मोनेटाइज पाइपलाइन : अब इंफ्रास्ट्रक्चर को गिरवी रखकर 6 लाख करोड़ जुटाने की नौबत क्यों आ गयी?

Gulabi
24 Aug 2021 2:41 PM GMT
नेशनल मोनेटाइज पाइपलाइन : अब इंफ्रास्ट्रक्चर को गिरवी रखकर 6 लाख करोड़ जुटाने की नौबत क्यों आ गयी?
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नेशनल मोनेटाइज पाइपलाइन

संयम श्रीवास्तव।

हिंदुस्तान की आर्थिक स्थिति (Economic Condition) कोरोना (Corona) के चलते बिगड़ी हुई है, सरकार ने जीडीपी ग्रोथ (GDP Growth) के जो सपने देखे थे और जनता को दिखाए थे, देश फिलहाल उस लक्ष्य से काफी ज्यादा पीछे है. यही वजह कि देश की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए अब सरकार नेशनल मोनेटाइज पाइपलाइन यानि राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (National Monetization Pipeline) लाने की योजना बना रही है. इसमें सूचीबद्ध तरीके से सार्वजनिक क्षेत्र की आधारभूत परिसंपत्तियों को निजी क्षेत्र को पट्टे पर दिया जाएगा. सरल भाषा में इसे समझें तो केंद्र सरकार अपनी संपत्तियों को कुछ समय के लिए निजी क्षेत्र को इस्तेमाल करने का अधिकार देने वाली है. जिसके जरिए सरकार 4 साल में लगभग 6 लाख करोड़ रुपए इकट्ठा करेगी.


केंद्र सरकार (Central Government) का मानना है कि इसकी वजह से सरकार अपना खजाना भर सकेगी और वित्तीय घाटे को भी काबू में रख सकेगी. हालांकि सरकार को इन संपत्तियों का 6 लाख करोड़ रुपए मिलेगा या नहीं यह तो बाजार मूल्य के सामने आने पर ही पता चलेगा. सरकार एनएमपी के तहत वित्तीय वर्ष 2022 से लेकर वित्तीय वर्ष 2025 तक 4 साल के लिए अपनी मुख्य परिसंपत्तियों को निजी क्षेत्रों के हाथों में देकर लगभग 6 लाख करोड़ रुपए इकट्ठा करने की योजना बना रही है.


देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) ने पाइपलाइन की शुरुआत करते हुए कहा कि परिसंपत्ति मुद्रीकरण कार्यक्रम हमारे प्रधानमंत्री के विजन से ही इतना सटीक रूप ले सका है. लेकिन कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि ऐसी क्या मजबूरी आ गई कि केंद्र सरकार को 6 लाख करोड़ इकट्ठा करने के लिए अपना इंफ्रास्ट्रक्चर गिरवी पर रखना पड़ रहा है.

सरकार को क्यों उठाना पड़ा यह कदम
सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर केंद्र सरकार ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को गिरवी रख कर पैसे इकट्ठा करने की जहमत क्यों उठाई. आखिर उसकी ऐसी क्या मजबूरी थी? दरअसल कोरोनावायरस की वजह से भारत सरकार का खजाना खाली हो गया. वित्तीय घाटा भी तेजी से बढ़ रहा है. इसके साथ ही इस मोनेटाइजेशन के कारण जिन एसेट का पूरा वित्तीय इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था, अब उनको प्राइवेट इन्वेस्टमेंट ब्राउनफील्ड के जरिए चालू एसेट बनाया जाएगा.

सरकार का इसमें एक और फायदा है कि कई ऐसे सरकारी गोदाम हैं जो फिलहाल इतने पुराने हो गए हैं कि इस्तेमाल के लायक नहीं है. इसलिए निजी क्षेत्र की कंपनियां इन गोदामों का पुनर्निर्माण करेंगी और तय समय तक उसका इस्तेमाल करेंगी. इसके बाद वह इसे सरकार को सौंप देंगी. इस मौजूदा वित्त वर्ष में केंद्र सरकार लगभग 88,000 करोड़ रुपए इस मोनेटाइजेशन से इकट्ठा करने वाली है.

नेशनल मोनेटाइज पाइपलाइन में क्या-क्या शामिल है
केंद्र सरकार ने इसमें राष्ट्रीय राजमार्ग, रेलवे रूट, स्टेडियम, पावर ग्रिड पाइपलाइन, प्राकृतिक गैस, नागरिक उड्डयन, पत्तन एवं जलमार्ग, दूरसंचार, खाद्य व सार्वजनिक वितरण, खनन, और कोयला समेत 6 लाख करोड़ रुपए के बुनियादी ढांचे की संपत्ति के मोनेटाइजेशन की योजना को अंतिम रूप दिया है. सरकार का मानना है कि इससे इन क्षेत्रों को भी लाभ होगा. सबसे बड़ी बात यह कि सरकार बुनियादी ढांचों को पूरी तरह से निजी क्षेत्र के हवाले नहीं कर रही है, बल्कि तय समय के लिए इसे पट्टे पर दे रही है. यानि एक समय अवधि पूरी होने पर सरकार इसे वापस ले लेगी.

किस बुनियादी ढांचे से कितना पैसा इकट्ठा होगा
केंद्र सरकार का मानना है कि 26,700 किलोमीटर लंबाई की सड़क परियोजनाओं से लगभग 1.6 लाख करोड रुपए मुद्रीकरण होने की संभावना है. वहीं तकरीबन 28,609 सर्किट किलोमीटर की बिजली पारेषण लाइनों का मुद्रीकरण कर सरकार 45,200 करोड़ रुपए जुटाएगी. इसके साथ ही सरकार को 6 गीगा वाट की पनबिजली और सौर ऊर्जा की संपत्तियों से लगभग 39,832 करोड़ रुपए मिलने की संभावना है. गेल के 8,154 किलोमीटर प्राकृतिक गैस पाइपलाइन का मुद्रीकरण कर सरकार 24,662 करोड़ रुपए इकट्ठा करेगी.

वहीं आईओसीएल एचपीसीएल और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा सरकार 3,390 करोड़ रुपए की संपत्तियों का मुद्रीकरण करेगी. सरकारी वेयरहाउस संपत्तियों के मुद्रीकरण से सरकार 28,900 करोड़ रुपए इकट्ठा करेगी. एमटीएनएल बीएसएनएल की 2.86 लाख किलोमीटर फाइबर लाइन और 14,917 दूरसंचार टावरों के मुद्रीकरण से सरकार 35,100 करोड़ रुपए जमा करेगी. वहीं रेलवे से सरकार लगभग 1.52 लाख करोड़ रुपए जुटाने की योजना बना रही है.

राज्यों का भी रखा गया है पूरा ख्याल
केंद्र सरकार का कहना है कि अगर राज्य अपनी संपत्तियों को मोनेटाइज करते हैं तो केंद्र उन्हें इंसेंटिव देगा. केंद्र सरकार का कहना है कि अगर राज्य अपनी किसी कंपनी को बेचता है या फिर उसे शेयर बाजार में लिस्ट करता है तो उससे मिलने वाली रकम का आधा हिस्सा और अगर उसको मोनेटाइज करता है तो केंद्र 33 फ़ीसदी हिस्सा सहायता के तौर पर राज्य सरकार को देगा.
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