सम्पादकीय

नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन : संपत्ति मुद्रीकरण की जरूरत क्यों

Gulabi
4 Sep 2021 6:18 AM GMT
नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन : संपत्ति मुद्रीकरण की जरूरत क्यों
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विगत 23 अगस्त को जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 60 खरब डॉलर के नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (एनएमपी) की घोषणा की
नारायण कृष्णमूर्ति।
विगत 23 अगस्त को जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 60 खरब डॉलर के नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन (एनएमपी) की घोषणा की, तो इसने कई तरह की बहस को जन्म दिया। जैसा कि अपेक्षित था, इस घोषणा की जहां काफी आलोचना हुई, वहीं इससे बहुत ज्यादा उम्मीदें भी जताई गईं, लेकिन हकीकत इन दोनों के बीच में कहीं है। शुरुआत करने के लिए एनएमपी के तहत चार वर्ष की अवधि (वित्त वर्ष

2022-2025) के दौरान केंद्र सरकार की प्रमुख संपत्तियों की मुद्रीकरण क्षमता का अनुमान लगाया गया है। और इसी में कुछ चिंताएं निहित हैं, इसलिए इस योजना से संबंधित और विवरण को जानने की जरूरत है। वास्तव में इस घोषणा में 'न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन' को हासिल करने की क्षमता है, प्रधानमंत्री अक्सर जिस दर्शन को दोहराते रहते हैं।

अपने आसपास देखें, तो आप संभवतः पाते हैं कि स्थायी नौकरियों और सुरक्षित रोजगार की अवधारणा वाले ज्यादातर उद्यमी, व्यवसायी और छोटी संस्थाएं धीरे-धीरे हमारे बीच से गायब हो रही हैं। मुक्त आर्थिक संस्थानों का उदय हो रहा है और सरकार के लिए व्यवसायों और पूंजीवाद पर नियंत्रण करना मुश्किल होता जा रहा है। बुनियादी ढांचे के विकास और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के परिणाम मिले-जुले रहे हैं। उदाहरण के लिए, दूरसंचार के निजीकरण ने औसत भारतीयों का जीवन बदल दिया है।

फिर उड्डयन क्षेत्र को ही लें, तो वहां भी निजीकरण ने अच्छा काम किया है, और राज्य की निगरानी में वायुमार्गों, हवाई अड्डों एवं सुरक्षा का अच्छा प्रबंधन किया है। आईटी क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र आगे है, जबकि एक महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर दिग्गज बनने की दिशा में सरकार का प्रयास नगण्य ही है। चुनींदा रेल मार्गों के संचालन के निजीकरण के प्रयोगों ने उपभोक्ता के साथ-साथ रेलवे के लिए भी उल्लेखनीय बदलाव किया है। तो, क्या अचानक हमारे प्रमुख क्षेत्रों के कामकाज के तरीके में बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा?

राजनेताओं, नीति निर्माताओं और आम जनता के बीच इस बात को लेकर सबसे बड़ी शंका है कि संपत्तियों का मुद्रीकरण वास्तव में है क्या? क्या इसका मतलब राष्ट्रीय संपत्ति को बेचकर पैसा कमाना है? यदि नहीं, तो क्या यह राष्ट्रीय राजमार्गों पर लगने वाले टोल की तरह है? इसके उत्तर अभी सामने आने बाकी हैं, क्योंकि राष्ट्रीय संपत्ति करदाताओं के पैसे का उपयोग करके और लोगों व उद्योगों द्वारा संपत्ति के उपयोग पर लगाए गए शुल्क के माध्यम से बनाई गई है। हमने पिछले दो दशकों में विनिवेश के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र से राज्य के स्वामित्व वाली संस्थाओं का निजीकरण देखा है। इनमें से कई ने काम किया है, कुछ ने परेशानी पैदा की है और कुछ पर अब भी काम चल रहा है। 2000 के दशक की शुरुआत में आईटीडीस के चुनींदा होटलों, वीएसएनएल और अन्य संस्थानों की संपत्तियों का विनिवेश फिर से करना और उनका मूल्यांकन करना है। हालांकि यह खराब प्रदर्शन वाली संपत्तियों या घर के सारे गहने बेच डालने जैसा नहीं है।

उन दिनों के संदर्भ और स्थितियों को देखते हुए इस प्रयोग ने काम किया था। तो क्या यह ब्रिटेन का अनुकरण है? 1970 के दशक में ब्रिटेन ने भारी आर्थिक चुनौतियों का सामना किया, और राज्य की संपत्तियों के निजीकरण ने वहां चमत्कार कर दिया। मार्गरेट थैचर सरकार के लंबे शासन ने राज्य के स्वामित्व वाले क्षेत्रों का सफल निजीकरण किया था। संपत्तियों को निजी हाथों में देने और बेचने की पूरी प्रक्रिया से अच्छी-खासी रकम कमाई गई और समग्र अर्थव्यवस्था को बहुत जरूरी प्रोत्साहन दिया गया। सरकार का खर्च कम हुआ, इसलिए उसकी उधारी भी कम हुई, और उसकी आय भी बढ़ने लगी। ब्रिटिश ऑयल और सरकार के एक रेडियोएक्टिव उद्यम की सबसे पहले नीलामी हुई। दो दशकों में ब्रिटिश एयरोस्पेस, संबद्ध ब्रिटिश बंदरगाह, ब्रिटिश दूरसंचार, केबल एवं वायरलेस सहित अन्य संस्थाओं में ब्रिटिश सरकार का स्वामित्व काफी कम हो गया।

इनमें से कुछ संगठनों में, कर्मचारियों ने हिस्सेदारी खरीदी, क्योंकि वे निजी स्वामित्व के तहत संगठन के बेहतर भविष्य के साथ-साथ अपने निवेश पर बेहतर रिटर्न के प्रति आश्वस्त थे। ब्रिटिश सरकार द्वारा दो-तीन दशकों में पट्टे, आंशिक बिक्री और पूर्ण बिक्री के माध्यम से संपत्ति मुद्रीकरण प्रक्रिया को पूरा किया गया था। इस लंबी अवधि के दौरान सरकार, लोगों और संपत्तियों को पट्टे पर लेने वाले संगठनों के हक में प्रक्रिया में कई सुधार किए गए। सरकारी स्वामित्व वाले उद्यम में नौकरशाही के प्रभाव और नियंत्रण को देखते हुए, यह उतना आसान नहीं हो सकता है, जितना कि कागज पर लगता है। इसमें रुकावटें आएंगी और विरोध होना भी तय है। मसलन सरकार, जो पहले से ही ईंधन की बिक्री पर राजमार्गों पर उपकर वसूलती है और कभी-कभी कराधान पर सरचार्ज लगाती है, आलोचना के दायरे में आ सकती है, यदि वह जनता के पैसे से बनाई गई चीजों का मुद्रीकरण करने की कोशिश करती है, और उन्हें इन सेवाओं के लिए फिर से भुगतान करने के लिए कहती है।

कुछ क्षेत्रों में अलग तरीके और दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। जैसे, भारत ने 1980 के दशक की शुरुआत में स्वास्थ्य क्षेत्र में निजीकरण की अनुमति दी, जब मद्रास (अब चेन्नई) में पहला अपोलो अस्पताल स्थापित हुआ था। हालांकि इससे स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र और उपचार में बदलाव आया, लेकिन इसने सरकारी अस्पतालों की गुणवत्ता में, प्रतिभाशाली पेशेवरों को रोकने और बुनियादी ढांचे, दोनों मामलों में गिरावट का मार्ग प्रशस्त किया। फिर भी, स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे के विकास में शुरुआती निवेश ने सुनिश्चित किया कि ये सरकारी अस्पताल ही हैं, जो निजी क्षेत्र की तुलना में कोविड-19 महामारी का बेहतर प्रबंधन करने में सक्षम हैं।

हालांकि अभी शुरुआती दिन हैं, लेकिन एनएमपी एक अच्छी योजना है, यह निश्चित रूप से उन संपत्तियों के बारे में संकेत करता है, जो भारत के पास है और उनके मूल्य का मुद्रीकरण किया जा सकता है। हमें इन संपत्तियों की बिक्री या दुरुपयोग पर इस तरह से नजर रखने की जरूरत है कि अर्थव्यवस्था, रोजगार और बुनियादी ढांचे की स्थिति को बढ़ाने के बजाय उनका मूल्य कम न हो जाए।
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