सम्पादकीय

संकीर्णता का दायरा

Subhi
27 Jun 2022 5:40 AM GMT
संकीर्णता का दायरा
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हाल ही में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में गुरुद्वारे पर हुए हमले ने वहां रह रहे अल्पसंख्यक, विशेषकर हिंदू और सिखों की दयनीय और भयावह स्थिति को उजागर किया है।

Written by जनसत्ता: हाल ही में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में गुरुद्वारे पर हुए हमले ने वहां रह रहे अल्पसंख्यक, विशेषकर हिंदू और सिखों की दयनीय और भयावह स्थिति को उजागर किया है। अफगानिस्तान में पिछले कई दशकों से गैर-मुसलिमों पर अत्याचार बढ़ा है।

अफगानिस्तान, जिसका वर्णन महाभारत आदि ग्रंथों में गांधार के रूप में मिलता है और जहां हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म फला फूला, एक खुशहाल भूभाग था। गजनवी के आक्रमणों और उसके हाथों पराजित होने के बाद इस क्षेत्र का मजहबी स्वरूप बदलना आरंभ हुआ। इसी मानसिकता से प्रभावित जिहादी संगठनों ने काबुल के एक गुरुद्वारे पर हमला कर 2020 में पच्चीस निरपराध लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। बीते हफ्ते भी राजधानी काबुल में इसी मकसद से एक गुरुद्वारे पर हमला किया गया।

भारतीय उपमहाद्वीप, खासकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के पंजाबी, सिख और हिंदू जो शुरू से ही शांतिप्रिय, प्रगतिशील और खुशहाल रहे, उनके ऊपर ये उत्पीड़न और अत्याचार अत्यंत दुखद व कष्टदायक है। क्या शांतिप्रिय होना और सभी धर्मों का सम्मान करना इन्हें कमजोर बनाता है। इस जिहादी और आतंकी मानसिकता के खिलाफ कठोर कदम उठाने होंगे।

अग्निपथ योजना से देश को लाभ होगा- इतना कह देने मात्र से देश लाभान्वित नहीं हो जाता है। सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि इस योजना से सेना में नौकरियां नहीं घटेंगी और सैनिकों में सबको बराबरी का बर्ताव मिलेगा। देश उद्वेलित है। नौजवान बेचैन हैं। गुस्सा सड़क पर है। इस गुस्से की लपटें तेजी से फैल रही हैं। ऐसे में देश के प्रधानमंत्री को सामने आना चाहिए।

उन्हें यह स्पष्ट करना होगा कि सेना में भर्ती उनकी रोजगार देने संबंधी घोषणा का हिस्सा है। यह नौकरी देने वाली योजना है। नौकरी देकर छीनने वाली नहीं है। क्या हर महत्त्वपूर्ण मौके पर चुप रहने वाले प्रधानमंत्री गुस्साए नौजवानों से बातचीत की पहल करेंगे?


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