सम्पादकीय

नैरैटिव हुआ सेट!

Gulabi
15 Dec 2021 5:15 AM GMT
नैरैटिव हुआ सेट!
x
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में उस नैरैटिव को साफ कर दिया
आर्थिक रूप से कमजोर और सामाजिक दुर्भाव से पीड़ित किसी देश की आबादी का कैसा भविष्य हो सकता है? मुमकिन है कि अभी और आने वाले कुछ वर्षों तक ये सवाल आम हिंदू मानस को ना छुये। लेकिन देर-सबेर सबको अहसास होगा कि भविष्य के बजाय अतीत की राजनीति की कीमत क्या होती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में उस नैरैटिव को साफ कर दिया, जिस पर भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा का अगला चुनाव लड़ेगी। पांच साल पहले उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान ही मोदी ने श्मशान बनाम कब्रिस्तान की बहस छेड़ी थी। इस बार उन्होंने औरंगजेब बनाम शिवाजी की कहानी लोगों के सामने पेश की। मतलब यह कि भाजपा का मुख्य कथानक एक बार फिर हिंदू बनाम मुसलमान होगा। इस कथानक में अंतर्निहित है कि भाजपा मुसलमानों को सामने खतरे के रूप में रख कर बहुसंख्यक हिंदू समुदाय की रक्षक के रूप में अपने को पेश करती है। कहा जा सकता है कि यही पार्टी की मुख्य ताकत है। इसलिए यूपी जैसे बड़े और महत्त्वपूर्ण राज्य के चुनाव में उसने अगर अपनी ताकत के बिंदु पर खेलने का फैसला किया है, तो उसमें कोई अचरज की बात नहीं है। अब तक पार्टी की ये रणनीति उसके लिए लाभदायक रही है। इस रणनीति के जरिए उसने देश में जनमत का ऐसा ध्रुवीकरण किया है कि फिलहाल राजनीतिक रूप से वह अपराजेय स्थिति में दिखती है।
अब ये दीगर प्रश्न है कि इस रणनीति का भारत के भविष्य पर कैसा असर होगा। भाजपा की रणनीति अगर यह होती कि वह बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के आर्थिक-सामाजिक उत्थान को अपना केंद्रीय राजनीतिक मुद्दा बनाती, तो फिर उसमें एक बेहतर भविष्य की कुछ उम्मीदें निहित होतीं। और अगर बहुसंख्यक समुदाय का भला होता, तो ट्रिकल डाउन सिद्धांत से उसका फायदा अन्य समुदायों को भी मिल सकता था। लेकिन भाजपा ने हिंदुओं के भविष्य को लेकर नहीं, बल्कि अतीत और इतिहास पर अपनी राजनीति को केंद्रित किया है। इतिहास के कुछ प्रकरणों और उससे जुड़ी उनकी शिकायतों को वर्तमान में उभार कर वह अपनी सियासी ताकत बनाने की रणनीति पर चल रही है।
इससे अतीत का कुछ प्रतिशोध तो हो सकता है, लेकिन किसी बेहतर भविष्य की राह नहीं निकल सकती। इस बात की पुष्टि देश की बदहाल होती अर्थव्यवस्था से होती है, जिसका दुष्परिणाम आखिर हिंदुओं को भी भुगतना पड़ रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर और सामाजिक दुर्भाव से पीड़ित किसी देश की आबादी का कैसा भविष्य हो सकता है? मुमकिन है कि अभी और आने वाले कुछ वर्षों तक ये सवाल आम हिंदू मानस को ना छुये। लेकिन देर-सबेर सबको इस बात का अहसास होगा कि भविष्य के बजाय अतीत की राजनीति आखिर किसी देश और समुदाय को कहां लेकर जाती है।
नया इण्डिया
Next Story