सम्पादकीय

नंदीग्राम का महासंग्राम: ममता की जिद क्या शुभेंदु को नया राजनीतिक इतिहास लिखने देगी

Gulabi
7 March 2021 2:59 PM GMT
नंदीग्राम का महासंग्राम: ममता की जिद क्या शुभेंदु को नया राजनीतिक इतिहास लिखने देगी
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क्या नया राजनीतिक इतिहास लिखने देगी

क्या यह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का अति आत्मविश्वास है या फिर हार का डर कि इस चुनाव में वह अपने पारंपरिक भबानीपुर विधानसभा क्षेत्र को छोड़ कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया है.

ममता बनर्जी ने वृहस्पतिवार को आगामी पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की जिसके बाद से भबानीपुर और नंदीग्राम पर लोगों की उत्सुकता बढ़ गयी है.
ममता बनर्जी ने न सिर्फ भबानीपुर सीट लगातार दो बार 2011 और 2016 में जीता था, बल्कि वह इसी क्षेत्र से मतदाता भी हैं, उनका घर भबानीपुर क्षेत्र में ही पड़ता है. जहाँ भबानीपुर उनका जन्मभूमि है तो वहीँ सिंगुर और नंदीग्राम पूर्व में उनकी कर्म भूमि रही है. वाममोर्चे की सरकार द्वारा किसानों की ज़मीन अधिग्रहण के फैसले के बाद हुए आन्दोलन जहाँ वामदलों के 34 वर्ष बाद हार का कारण बना, वहीँ ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस के लिए सत्ता का दरवाज़ा भी खोल दिया. किसानों में रोष को राजनीतिक रंग देने का काम तृणमूल कांग्रेस ने किया जिसका ममता बनर्जी को लाभ मिला.

क्यों छोड़ा भवानीपुर

भबानीपुर कभी कांग्रेस पार्टी का गढ़ माना जाता था लेकिन जबसे ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी से अलग हो कर तृणमूल कांग्रेस के नाम से अपनी पार्टी बनायीं, भबानीपुर तृणमूल कांग्रेस का गढ़ बन गया. पर इस बार पूरे पश्चिम बंगाल में और खास कर भबानीपुर में भारतीय जनता पार्टी सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर चुकी है, जिसमें रविवार को प्रधानमंत्री की कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड में रैली के बाद और तेजी आने वाली है. बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, जो पश्चिम बंगाल के प्रभारी भी हैं, का मानना है कि हार की डर से ममता बनर्जी ने भबानीपुर की जगह नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया है.

केजरीवाल को दोहराएंगे शुभेंदु

बड़े नेता को उसी के पारंपरिक निर्वाचन क्षेत्र से हराने की सभी प्रतिद्वंद्वी दलों की इक्षा होती है. 2014 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में नवगठित आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से चुनौती देने का फैसला किया. बहुतों ने इसे केजरीवाल की बेवकूफी कहा, पर केजरीवाल जीत गए और दिल्ली का राजनीतिक इतिहास बदल गया. लगातार दो बार आम आदमी पार्टी भारी बहुमत से दिल्ली विधानसभा चुनाव जीत चुकी है और कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व दिल्ली में खतरे में आ गया है.
बीजेपी की नज़र काफी सालों से गाँधी परिवार का गढ़ माने जानेवाले अमेठी पर थी. 2014 में तो बीजेपी सफल नहीं रही पर 2019 के चुनाव में जब राहुल गाँधी कांग्रेस पार्टी के घोषित प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार थे, बीजेपी ने पूरी जोर लगा दी और राहुल गाँधी अमेठी से चुनाव हार गए. कांग्रेस पार्टी अब अपने सबसे बुरे दिनों से गुजर रही है.

भबानीपुर में भी बीजेपी का जोर

बीजेपी ममता बनर्जी को भबानीपुर से घेरने के फ़िराक में थी पर तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ने भबानीपुर की जगह नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. तृणमूल कांग्रेस ने वरिष्ट नेता सोभनदेव चट्टोपाध्याय को भबानीपुर से अपना प्रत्यासी घोषित किया है , जबकि बीजेपी ने भबानीपुर से अपने उम्मीदवार के नाम की अभी घोषणा नहीं की है. इतना तो तय है कि बीजेपी भबानीपुर सीट पर पकड़ बनाने की कोशिश में ढील नहीं देने वाली है.
पर सवाल यही है कि क्या वाकई में ममता बनर्जी को भबानीपुर से हारने का डर सता रहा था कि उन्होंने नंदीग्राम का रुख कर लिया? बीजेपी भले जो भी कहे, पर प्रतीत ऐसा होता है कि नंदीग्राम से ममता बनर्जी का चुनाव लड़ने का फैसला एक साहसिक पर खतरे से भरा कदम हो सकता है.
ममता बनर्जी ईगो और बदले की राजनीति के लिए जानी जाती है. यानि वह जिद्दी किस्म की नेता हैं. शुभेंदु आधिकारी कभी ममता बनर्जी के करीबियों में गिने जाते थे. पर ममता बनर्जी ने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को अपना उत्तराधिकारी बनाने के चक्कर में शुभेंदु आधिकारी की अनदेखी करने लगी. नाराज़ शुभेंदु आधिकारी बीजेपी में शामिल हो गए और अब नंदीग्राम में ममता बनर्जी और शुभेंदु आधिकारी के बीच महासंग्राम दिखने वाला है जहाँ दूसरे चरण में 11 अप्रैल को मतदान होगा.

जोरदार होगा नंदीग्राम का संग्राम
नंदीग्राम आन्दोलन में शुभेंदु आधिकारी ही ममता बनर्जी के सिपहसालार हुआ करते थे. उस क्षेत्र मे उनकी पकड़ और लोकप्रियता काफी है. लगता तो ऐसा है कि ममता बनर्जी भबानीपुर से डर कर नहीं भागी हैं बल्कि शुभेंदु आधिकारी को सबक सिखाने के इरादे से चुनाव लड़ रही हैं. राहुल गाँधी की तरह ममता बनर्जी भी दो चुनाव क्षेत्रो से चुनाव लड़ सकती थी, पर वह ऐसा नहीं कर रही हैं. पर इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि नंदीग्राम का महासंग्राम नजदीकी का रहने वाला है.


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