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- नंदीग्राम का संग्राम
जनता से रिश्ता वेबडेसक | विधानसभा चुनाव वैसे तो पांच राज्यों में हो रहे हैं, लेकिन जिस एक विधानसभा सीट पर न सिर्फ पूरे देश, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में दिलचस्पी रखने वाले बाहर के लोगों की निगाहें भी केंद्रित हो गई हैं, वह है पश्चिम बंगाल की नंदीग्राम सीट। तृणमूल कांगे्रस की मुखिया और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आज यहां से अपना नामांकन दाखिल कर रही हैं, जबकि उनके मुकाबले में भाजपा ने हाल ही में तृणमूल छोड़कर आए शुभेंदु अधिकारी को उतारा है। शुभेंदु इस इलाके से लंबे समय से संसद व विधानसभा में पहुंचते रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने 80 हजार से भी अधिक वोटों से वाम मोर्चे के प्रत्याशी को हराया था। इसके बावजूद ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला करके शायद अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने का काम किया है कि वह जोखिम से घबराने वाली नेता नहीं हैं। ममता बनर्जी के राजनीतिक उत्थान में सिंगूर और नंदीग्राम का काफी महत्व है। वाम मोर्चे की साढे़ तीन दशक पुरानी सत्ता को खत्म करने में नंदीग्राम आंदोलन ने कितनी बड़ी भूमिका निभाई थी, यह देश जानता है। पिछले एक दशक से यह तृणमूल का गढ़ रहा है। ऐसे में, इस पर किसी अन्य दल को पांव जमाने से रोकने के लिए ममता के पास इससे बेहतर और कोई दांव हो भी नहीं सकता था। इस चुनावी संग्राम को जैसे उन्होंने तृणमूल के वजूद से जोड़ दिया है। लेकिन इस बार उनके सामने वह भाजपा है, जो प्रचुर संसाधनों, धारदार प्रचार अभियानों के साथ-साथ 'अभी नहीं, तो कभी नहीं' की रणनीति पर हर चुनाव लड़ने में यकीन रखती है। पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव किस तरह विकास के स्थानीय मुद्दों के बजाय ध्रुवीकरण के खेल में उलझ गया है, इसको नंदीग्राम बता रहा है। इस विधानसभा क्षेत्र में बहुसंख्यक मतदाता अधिक हैं, और भाजपा 'जय श्रीराम' के नारे के साथ उन्हें अपने पाले में करने के लिए काफी प्रखर चुनाव अभियान चला रही है। ममता बनर्जी ने कल नंदीग्राम की जनसभा में जिस तरह से 'चंडी पाठ' किया और लोगों से कहा कि वह 'शिवरात्रि' भी उनके बीच ही मनाएंगी, यह उजागर करता है कि धार्मिक धु्रवीकरण की चुनौती उनके लिए कितनी अहम हो चली है।