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- नमाजी बने पत्थरबाज!
अल्लाह की इबादत करने, जुमे की नमाज अता करने के बाद, एक भीड़ प्रकट होती है। वह उन्माद और बवाल का माहौल बनाती है। भीड़ के हाथों में पोस्टर-बैनर हैं। जब पत्थर चलने शुरू होते हैं, तो अचंभा होता है। माहौल हिंसक होने लगता है। हमला पथराव तक सीमित नहीं रहता, पेट्रोल बम भी फेंके जाते हैं, तमंचे भी चलाए जाते हैं। इबादत के बाद नमाजी हिंसक कैसे हो जाता है, हम आज तक नहीं जान पाए। पत्थर बाहर से मस्जिद के भीतर लाए जाते हैं अथवा मस्जिद के किसी कोने में उनका ढेर जमा रहता है, इसका सम्यक खुलासा भी सुरक्षा एजेंसियों ने आज तक नहीं किया। पत्थरबाजी नाबालिग किशोर भी करते हैं, भीड़ उन्हें अपनी ढाल बनाकर हमले जारी रखती है, इस रणनीति को भी आज तक समझा नहीं जा सका। यदि जुमे की लगभग हरेक नमाज के बाद भीड़ जमा होकर हमला बोलती रही है और माहौल दंगामय हो जाता है, तो उसके साफ मायने हैं कि हमारे पुलिस और खुफिया-तंत्र के पास कोई 'लीड' नहीं होती। यदि पुख्ता सूचना होती, तो मस्जिद के भीतर छापे मार कर, पत्थर और पेट्रोल बम बरामद किए जा सकते थे, हमले की व्यूह-रचना तोड़ी जा सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और औसतन जुमा लहूलुहान होता रहा है। क्या यह गुस्ताख-ए-रसूल नहीं है? राजधानी दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम ने दिल्ली पुलिस को लिखित आश्वासन दिया था कि कोई गड़बड़ नहीं होगी।
By: divyahimachal