सम्पादकीय

नमाजी बने पत्थरबाज!

Rani Sahu
12 Jun 2022 7:06 PM GMT
नमाजी बने पत्थरबाज!
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अल्लाह की इबादत करने, जुमे की नमाज अता करने के बाद, एक भीड़ प्रकट होती है

अल्लाह की इबादत करने, जुमे की नमाज अता करने के बाद, एक भीड़ प्रकट होती है। वह उन्माद और बवाल का माहौल बनाती है। भीड़ के हाथों में पोस्टर-बैनर हैं। जब पत्थर चलने शुरू होते हैं, तो अचंभा होता है। माहौल हिंसक होने लगता है। हमला पथराव तक सीमित नहीं रहता, पेट्रोल बम भी फेंके जाते हैं, तमंचे भी चलाए जाते हैं। इबादत के बाद नमाजी हिंसक कैसे हो जाता है, हम आज तक नहीं जान पाए। पत्थर बाहर से मस्जिद के भीतर लाए जाते हैं अथवा मस्जिद के किसी कोने में उनका ढेर जमा रहता है, इसका सम्यक खुलासा भी सुरक्षा एजेंसियों ने आज तक नहीं किया। पत्थरबाजी नाबालिग किशोर भी करते हैं, भीड़ उन्हें अपनी ढाल बनाकर हमले जारी रखती है, इस रणनीति को भी आज तक समझा नहीं जा सका। यदि जुमे की लगभग हरेक नमाज के बाद भीड़ जमा होकर हमला बोलती रही है और माहौल दंगामय हो जाता है, तो उसके साफ मायने हैं कि हमारे पुलिस और खुफिया-तंत्र के पास कोई 'लीड' नहीं होती। यदि पुख्ता सूचना होती, तो मस्जिद के भीतर छापे मार कर, पत्थर और पेट्रोल बम बरामद किए जा सकते थे, हमले की व्यूह-रचना तोड़ी जा सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और औसतन जुमा लहूलुहान होता रहा है। क्या यह गुस्ताख-ए-रसूल नहीं है? राजधानी दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम ने दिल्ली पुलिस को लिखित आश्वासन दिया था कि कोई गड़बड़ नहीं होगी।

अमन और आस्था के साथ नमाज पढ़ी जाएगी, लेकिन इबादत के बाद जो हुआ, उसे देश ने देखा है। दिल्ली के अलावा, उप्र के सहारनपुर, देवबंद, मुरादाबाद, प्रयागराज, अंबेडकरनगर आदि में और महाराष्ट्र के शहरों, हैदराबाद, झारखंड की राजधानी रांची, बंगाल की राजधानी कोलकाता की बगल में हावड़ा आदि शहरों में जबरदस्त हिंसक भीड़ सड़कों पर उतर आई। ऐसा आभास हुआ मानो एक भीड़ ने देश के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया हो! सिर्फ उप्र और बंगाल में ही 350 से अधिक हमलावर आरोपितों को गिरफ्तार किया जा चुका है। कइयों पर गैंगस्टर कानून और रासुका के तहत केस दर्ज किए गए हैं। ऐसे हिंसक प्रदर्शन देश के अहम हिस्सों में एक प्रवृत्ति बनते जा रहे हैं। पैगंबर, नबी या रसूल को अपमानित करने वाली नूपुर शर्मा और नवीन कुमार की टिप्पणी की औसत देशवासी भर्त्सना करता है, लेकिन यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि हिंदू देवी-देवताओं के प्रति भी करोड़ों लोगों की आस्थामय भक्ति और श्रद्धा है। यदि दोनों पक्षों के आराध्य अपमानित होते रहे, तो यह देश शांत और स्थिर नहीं रह सकेगा। संविधान में धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या भी स्पष्ट है। उसका भी हनन होगा
दुनिया में भारत की छवि 'विभाजनकारी देश' की बनेगी। हासिल क्या होगा? भीड़ तो सजा-ए-मौत की भी मांग कर रही है। तत्काल गिरफ्तारी होनी चाहिए, जिन्होंने पैगंबर को अपमानित किया है। कानून और पुलिस भीड़ के मुताबिक नहीं चला करते। केस दर्ज हैं, पुलिस विवेचना कर रही है। जो कानूनन उचित होगा, वह कार्रवाई होगी, कमोबेश इतना भरोसा कानून और अदालत पर होना चाहिए। नूपुर शर्मा को भाजपा छह साल के लिए पार्टी से निलंबित कर चुकी है और नवीन को तो पार्टी से बर्खास्त ही कर दिया गया है। उन दो पूर्व प्रवक्ताओं के कारण हिंसक प्रदर्शन मुनासिब नहीं हैं। सार्वजनिक संपत्तियां जलाई जा रही हैं, वाहन फूंके जा रहे हैं, पुलिसकर्मी भी घायल कर दिए हैं, हावड़ा आते हुए एक मरीज की मौत हो गई, क्योंकि हिंसक प्रदर्शन के कारण वह अस्पताल तक पहुंच नहीं पाया, रांची में भी दो मौतें हुई हैं, यह सब करके हासिल क्या हो रहा है? मुसलमानों के मौलाना, उलेमा भी मानते रहे हैं कि यह मुल्क उनका है। यकीनन भारत मुसलमानों का मुल्क भी है, तो क्या उसे ज़ख्मी करने या मार देने से मुसलमानों को कोई और देश हासिल हो जाएगा? दरअसल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रदर्शन करने के संवैधानिक अधिकार के मायने गलत लिए जा रहे हैं। हिंसक और हत्यारे प्रदर्शन की कोई गुंज़ाइश नहीं है। जीभ काटने, सरकलम करने, आंखें निकाल लेने पर नकदी इनामों के ऐलान भी असंवैधानिक हैं, लिहाजा घोर दंडनीय हैं।

By: divyahimachal

Rani Sahu

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