सम्पादकीय

नंग बड़े परमेश्वर से

Rani Sahu
28 Aug 2023 7:06 PM GMT
नंग बड़े परमेश्वर से
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न जाने आजकल मुझे क्या हो गया है? पिछले कुछ दिनों से जब से मैंने सदन की कार्यवाही और ख़बरिया चैनलों को नियमित देखना आरम्भ किया है, मैं रात के आखिरी पहर में आने वाले सपनों में अपने आपको निर्वस्त्र पाता हूं। बात बिस्तर तक होती तो ठीक था। मैं सपनों में अक्सर इसी हालत में देश भ्रमण पर निकल जाता हूं। दादी कहती थीं कि सुबह के सपने सच्चे होते हैं। एक कहावत है ‘नंग बड़े परमेश्वर से।’ पर पता नहीं इस घोर कलियुग में भी क्यों लोग नंगों को देखते ही विपरीत दिशा में भागना शुरू कर देते हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ राज्य में अनुसूचित जनजाति के फजऱ्ी प्रमाणपत्र पर सरकारी नौकरी हासिल करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग करने वाले युवाओं पर राज्य सरकार द्वारा ध्यान न दिए जाने से नाराज़ होकर जब उन्होंने निर्वस्त्र होकर भागना शुरू किया तो पुलिस उन्हें पकडऩे के लिए उनके पीछे भागने लगी। मुझे लगा कि विरोधस्वरूप निर्वस्त्र भागने वाले युवाओं को पकडऩे के लिए सालों पहले शर्मो-हया तजने वाली पुलिस का व्यवहार उचित नहीं। एक नंगा दूसरे नंगे को पकडऩे के लिए उसके पीछे कैसे दौड़ सकता है। वह भी तब जब पुलिस धर्म और मर्यादा के वस्त्र तजने वालों को पकडऩे की बजाय उन्हें संरक्षण प्रदान कर रही हो। फिर सोचा पुलिस भारतीय दंड संहिता और संविधान के मद्देनजऱ काम करती है। शायद उसी की किसी धारा या अधिनियम के तहत व्यवस्था होगी। नहीं तो जो संस्था सत्ता के तलवे चाटते हुए ख़ुद निर्वस्त्र हो चुकी हो, वह दूसरे निर्वस्त्र के पीछे उसे पकडऩे के लिए कैसे भाग सकती है। इधर, पता नहीं क्यों दिन में दस बार डिज़ायनर ड्रैस बदलने वाले परिधानमंत्री मुझे शुरू से ही निर्वस्त्र नजऱ आते थे। पहले-पहल लगता था कि यह मेरा मति भ्रम है। मैं इलाज के लिए मनोवैज्ञानिक के पास जाने का मन बना रहा था। लेकिन संकोच था कि उसे कैसे बताऊंगा कि मैं सपनों में अपने आपको नंगा पाता हूं।
ग़ालिब चचा ज़मीर को लेकर कहे गए शे’र में आईने पर पड़ी धूल को साफ करने की बात करते हैं। मुझे ध्यान नहीं आता कि उन्होंने कभी अपने उरियां (निर्वस्त्र) होने की बात की हो। पर हाल ही में जब परिधानमंत्री को संसद की सीढिय़ों पर तीन महीने से गृह युद्ध की आग में झुलस रहे मणिपुर में बलात्कार पीडि़तों की नग्न परेड की घटना पर ख़बरिया चैनलों पर कन्नी काट बयान देते हुए सुना तो मेरा शक यक़ीन में बदल गया। सावन महीने की डबल बधाई देते हुए परिधानमंत्री ने जब केवल एक बार ही मणिपुर का नाम लिया तो लगा कि दिन में दस बार कपड़े बदलने के बावजूद कोई नंग लोकतंत्र के मन्दिर से बड़ा हो गया है। उसी दिन पैरोल पर छूटे नामसिद्ध संत काम लहीम और बलात्कारों के आरोपी भाजपा सांसद तथा नंगई के अग्र ध्वजवाहक खरदूषण को जमानत मिलने पर लगा कि अब समाज में भयमुक्त होकर नंगई की जा सकती है। आर्यावर्त ने बरसों के सतत अभ्यास से ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निशान।।’ को चरितार्थ करते हुए नंगई के मामले में विश्वगुरु का ताज पहन लिया है। मुझे पूरा यक़ीन है कि अब मैं अकेला नहीं। परिधानमंत्री के सैट किए नैरेटिव पर जैसे ही उनके मंत्रियों, सांसदो, अंधभक्तों और गोदी मीडिया को थूक चाटते या थूक कर चाटते देखता हूं, मन मुदित हो उठता है। आईना साबुत रहे या उसके सौ टुकड़े हो जाएं, मैं कहीं भी अकेला नजऱ नहीं आऊंगा। पर नंगों की दिन पर दिन बढ़ती भीड़ में अपने आप को बनाए रखना टेढ़ी खीर है। प्रतियोगिता गला काट है। इस प्रतियोगिता को बढ़ावा देने के लिए हर शाम नौ बजे ख़बरिया चैनलों में आयोजित होने वाली मुर्गों की लड़ाई (प्राईम टाईम) में सत्ताई और विपक्षी प्रवक्ताओं के अलावा जब कथित बुद्धिजीवियों को भाग लेते देखता हूं तो लगता है कि अब राष्ट्र को निर्वस्त्र घोषित करने का समय आ चुका है।
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

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