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- शर्मसार न हो इंसानियत
क्रेडिट बॉय हिंदुस्तान। दिनकर पी श्रीवास्तव अफगानिस्तान का फिर बर्बरता के शिकंजे में चले जाना पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक है। कथित इस्लामी सत्ता की स्थापना के लिए तालिबान जो कर रहा है, उसकी दुनिया में शायद ही किसी कोने में प्रशंसा होगी। दुनिया स्तब्ध है और भारत जैसे देश तो कुछ ज्यादा ही आहत हैं। हम उस इतिहास में जाकर कतई भावुक न हों कि अफगानिस्तान कभी भारत वर्ष का हिस्सा था, जहां सनातन धर्म और बौद्धों का वर्चस्व था, हमें अभी अपने उस तन-मन-धन के निवेश पर गौर करना चाहिए, जो हमने विगत कम से कम बीस वर्षों में वहां किया। एक उदारवादी ताकत के रूप में न जाने कितनी विकास परियोजनाओं में भारत की वहां हिस्सेदारी रही। लगभग तीन हजार भारतीय अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में लगे थे। एक अनुमान के अनुसार, भारत ने वहां 2.3 अरब डॉलर के सहायता कार्यक्रम चला रखे हैं, अब उनका क्या होगा? भारत और भारतीयों द्वारा वहां मानवीय सहायता, शिक्षा, विकास, निर्माण और ऊर्जा क्षेत्र में किए गए निवेश का क्या होगा? आम अफगानियों के मन में भारत के प्रति अच्छे भाव हैं, लेकिन तालिबान का रुख तल्ख ही रहा है।