सम्पादकीय

नगा भरोसे की परीक्षा

Rani Sahu
6 Dec 2021 7:03 PM GMT
नगा भरोसे की परीक्षा
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एक लंबे अंतराल से पूर्वोत्तर शांत लग रहा था। उग्रवादी गुटों और भारत सरकार के बीच समझौते किए गए अथवा शांति-प्रक्रिया के लिए संवाद जारी रहे

एक लंबे अंतराल से पूर्वोत्तर शांत लग रहा था। उग्रवादी गुटों और भारत सरकार के बीच समझौते किए गए अथवा शांति-प्रक्रिया के लिए संवाद जारी रहे। नतीजतन कई उग्रवादी चेहरे राजनीति के जरिए मुख्यधारा में आए और विधायक, सांसद तक चुने गए, लेकिन अचानक नगालैंड में एक हिंसक कांड, मौतों की त्रासदी और स्थानीय लोगों के पलटवार ने परिदृश्य को बदल कर रख दिया है। सेना की गोलीबारी में 13 मासूम मौतें हो गईं। पलट हिंसा में 4 और जानें चली गईं। कई सैन्य वाहन फूंक दिए गए। करीब 100-150 ग्रामीणों ने असम राइफल्स के सैनिकों पर हमला बोल दिया, लिहाजा आत्मरक्षा में जवानों को गोली चलानी पड़ी। उसमें भी कुछ घायल हुए हैं। अब यदि राजनीतिक नेतृत्व, सुरक्षा बल-सेना और नागरिक समाज ने नगा लोगों का भरोसा जीतने के प्रयास नहीं किए, तो नगालैंड से अमन-चैन गायब भी हो सकता है। बीते माह मणिपुर में उग्रवादियों ने जिस तरह असम राइफल्स के कमांडिंग अफसर, उनकी पत्नी और बेटे, चार सैनिकों की एक साथ हत्या की थी, उसके बाद नगालैंड में यह हिंसक कांड हुआ है।

अनौपचारिक तौर पर कहा जाता है कि यह मणिपुर हमले का बदला लिया गया है, लेकिन अधिकृत तौर पर असम राइफल्स ने खेद जताया है। सेना का पक्ष है कि उसे उग्रवादी गतिविधियों की सूचना मिली थी, लिहाजा उसे ऑपरेशन चलाना पड़ा। फिलहाल यह जांच का विषय है कि ऑपरेशन का निर्णय सही था अथवा गलत, लेकिन चौतरफा गुस्साई प्रतिक्रियाओं के दबाव में सेना ने खेद व्यक्त किया है। कई स्तरों पर जांच के आदेश दिए गए हैं। नगालैंड के राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी ने 'कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी गठित की है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विशेष जांच दल के गठन का ऐलान किया है। एक निष्पक्ष, तटस्थ और स्वतंत्र जांच का भरोसा दिया जा रहा है। दरअसल यह भारत सरकार, स्थानीय नगा आबादी और सुरक्षा बलों के बीच भरोसे की ही परीक्षा है।
उग्रवाद के एक हत्यारे दौर के बाद 1997 में एनएससीएन (आई-एम) और सुरक्षा बलों के दरमियान युद्धविराम का एक महत्त्वपूर्ण समझौता किया गया था। कई विरोधाभासों और उतार-चढ़ाव के बावजूद वह करार किया गया, क्योंकि सभी पक्ष नगालैंड और आसपास के इलाकों में शांति के पक्षधर थे। नगा उग्रवाद करीब 7 दशक पुराना है। उसके समूल खात्मे के लिए बातचीत काफी निर्णायक स्तर पर मानी जाती रही है, लिहाजा 2015 में एक फ्रेमवर्क समझौते पर भारत सरकार और एनएससीएन ने हस्ताक्षर किए थे। अब यह कांड शांति-प्रक्रिया और युद्धविराम को पटरी से न उतार दे, लिहाजा उसके मद्देनजर बहुत तेजी से फैसले किए जा रहे हैं। सेना के हमले की आलोचना भी हो रही है, क्योंकि पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में चुनावी और राजनीतिक सरगर्मियां जारी हैं। नगालैंड में गुस्से और उदासी का माहौल है। सुरक्षा बल, राजनीतिक नेतृत्व, सामाजिक समुदाय और शेष अन्य समूह हिंसा कांड से परेशान और विक्षुब्ध हैं। यह गुस्सा यथाशीघ्र शांत होना चाहिए। सरकार मृतकों के परिजनों तक पहुंच रही है।
राज्य की एजेंसियों और स्थानीय नगा आबादी के बीच, त्रासदी के बावजूद, भरोसे को नए सिरे से कायम करने की कोशिशें तेज होनी चाहिए। नगा आबादी की पहचान, उसके चेहरे-मोहरे और भाषा के अलगाव तथा ज़मीनी दूरियों के मद्देनजर नगालैंड शेष भारत से अलग, कोई दूसरा भूखंड लगता है, लेकिन वह भारत का ही अविभाज्य, अभिन्न हिस्सा है, यह हमारी संप्रभुता और सीमाओं का यथार्थ है। पड़ोसी देश म्यांमार में बेचैनी, अराजकता और विद्रोहों के कारण मणिपुर और नगा उग्रवादी गुटों को अपनी प्राथमिकताएं बदलनी पड़ी हैं।
म्यांमार उनके लिए अभयारण्य साबित होता रहा है। लिहाजा सीमावर्ती जिलों में अपेक्षाकृत ज्यादा निगरानी और सावधानी की जरूरत है और यह काम असम राइफल्स जैसे सैन्य संगठन ही कर सकते हैं। अत्यधिक दबावों के बावजूद सेना और सुरक्षा बलों को स्थानीय आबादी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होना पड़ेगा। खुफिया एजेंसियों को भी ठोस और पुष्ट 'लीड्स के लिए अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ेगा। पूर्वोत्तर बेहद संवेदनशील क्षेत्र रहा है। कई विभिन्नताओं के कारण उग्रवाद के लिए वह अनुकूल भूखंड रहा है। चूंकि अब उग्रवाद अंतिम सांसें ले रहा है, लिहाजा उसे किसी भी तरह की 'प्राण-वायु प्रदान न की जाए, जिससे वह दोबारा उभर सके। इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का संसद में दिया गया वक्तव्य भी सामने आया है। उन्होंने कहा कि यह गलत पहचान का मामला है। सेना ने संदिग्ध समझकर फायरिंग की। फिर भी मामले की जांच तो होनी ही चाहिए।

Divyahimachal

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