सम्पादकीय

एन. रघुरामन का कॉलम: निर्माता का काम करेंगे, तो आप अपने खुद के व्यवसाय में लगा सकते हैं एक बड़ी छलांग

Gulabi
18 Jan 2022 8:39 AM GMT
एन. रघुरामन का कॉलम: निर्माता का काम करेंगे, तो आप अपने खुद के व्यवसाय में लगा सकते हैं एक बड़ी छलांग
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‘लाइटिंग टेक्नोलॉजीज़’ कर्मचारी कम करना चाहती थी और मोनिश भी उन लोगों में था


मोनिश देसाई ने 2015 में मुंबई से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पूरी की। उसे पहली नौकरी अहमदाबाद में मिली, वापस मुंबई आने के लिए वो नौकरी बदलता रहा। आखिरकार नवंबर 2019 में फुटकर ग्राहकों को एलईडी लाइट बेचने के लिए उसने 'लाइटिंग टेक्नोलॉजीज़' जॉइन की। पहले दिन से उसका शानदार प्रदर्शन था। नौकरी पर रखने वाले उसके बॉस चेतन त्रिवेदी उससे बहुत प्रभावित थे। पर कुछ कारणों से वह दूसरी कंपनी 'लेडलम' में निदेशक बनकर चले गए।

मोनिश अगले कुछ महीनों तक नौकरी करता रहा, पर दुर्भाग्य से मार्च 2020 में कोविड ने पूरा देश ठप कर दिया। जब बिजनेस धीरे-धीरे खुले, तो उसने 200% काम किया। वह बाइक से घूमता और कंपनी के लिए बिक्री के मौके लाता। उसके नए बॉस भी बेहद खुश थे कि ये नया ग्रैजुएट सैकड़ों संभावित ग्राहक ला रहा था, जिसके बारे में कंपनी के स्थायी कर्मचारियों ने कभी नहीं सोचा था। कोविड के दौर में वह तमाम औद्योगिक इलाकों में घूमा, जिससे कंपनी को बहुत लाभ हुआ।

'लाइटिंग टेक्नोलॉजीज़' कर्मचारी कम करना चाहती थी और मोनिश भी उन लोगों में था, जिन्हें छोड़ने के लिए कहा गया। बिक्री का रिकॉर्ड अच्छा होने के बावजूद दूसरे बॉस उसे नहीं बचा सके। पर त्रिवेदी ने अपने कॉन्टैक्ट्स देकर उसकी मदद की और स्वयं के व्यवसायिक संपर्कों का उपयोग करके अपनी एजेंसी शुरू करने के लिए कहा। तब मोनिश ने अलग-अलग कंपनियों की लाइट बेचने का बिजनेस शुरू किया, जिसमें इंटीरियर बेहतर बनाने के लिए 'लेडलम' समेत बाकी लाइट भी इस्तेमाल होती थीं।

चार महीनों तक उसने बहुत मेहनत की। उसे ज्यादा ऑर्डर इसलिए मिले क्योंकि उसने कभी भी लाइट नहीं बेची बल्कि 'लाइटिंग सॉल्यूशंस' बेचा! इसका मतलब है कि वह सही आइडिया देता था कि उस जगह बेहतर माहौल के लिए कौन सी व कितनी लाइट की जरूरत है। पर असल मोड़ तब आया, जब उसे मुंबई में एक अमीर फ्लैट का काम मिला। पर कुछ लाइटिंग कंपनियों से आपूर्ति कम होने के कारण उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची।

तब उसने तय किया कि वो लाइट खोलकर खुद असेंबलिंग सीखेगा। जब उसने ये सफलतापूर्वक कर लिया, तो आत्मविश्वास आ गया कि जब कंपनियां ऑर्डर पूरा नहीं कर पाएंगी तो वो खुद कर लेगा। उसने फिलिप्स जैसी ख्यात कंपनियों के कम से कम 15 किस्म की इंटीरियर लाइट के सारे पुर्जे खरीदे और असेंबलिंग शुरू की। इससे पूरा बिजनेस बदल गया। उसने न सिर्फ 'लाइटिंग समाधान' के साथ प्रचलित बाजार में कम कीमत पर लाइट बेचीं बल्कि मुनाफा भी दोगुना हो गया।

प्रीमियम ब्रांड्स की लाइट चाह रहे लोगों के लिए वह सीधे 'लेडलम' जैसी कंपनी से उत्पाद खरीदता था और जो लोग सीमित खर्च में अपना घर या दफ्तर रोशन करना चाहते थे, वह उनके लिए असेंबलिंग करके खुद लाइट बनाता। वह हर उत्पाद पर बाकियों की तरह दो साल की वही गारंटी देता और दिलचस्प बात ये कि लाइट गारंटी अवधि के बाद भी चलीं।

उसने स्थानीय इलेक्ट्रीशियंस को सैंपल लाइट देकर उन्हें आकर्षित किया, जो अंतत: उसके पास ग्राहक लेकर आए। बोल-बोल के प्रचार से मोनिश को और ज्यादा बिजनेस मिला। उसके भविष्य की योजना बिजनेस में पीछे जाकर असेंबलिंग और मैन्युफैक्चरिंग इकाई स्थापित करने की है। मैं गर्व से कहूंगा कि एमबीए में मैंने उसे उद्यमिता पढ़ाई। मैं छात्रों से कहा करता था, 'बिजनेस में मैन्युफैक्चरिंग हमेशा फलती-फूलती है।'

फंडा यह है कि जब आप 'रिवर्स इंजीनियरिंग' (पीछे सोचना)के बारे में सोचते हैं कि कैसे आपूर्ति करने वाले या निर्माता का काम करेंगे, तो आप अपने खुद के व्यवसाय में एक बड़ी छलांग लगा सकते हैं।


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