सम्पादकीय

अदृश्य पदार्थ की गुत्थी

Subhi
19 July 2022 3:48 AM GMT
अदृश्य पदार्थ की गुत्थी
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अदृश्य पदार्थ की गुत्थी इसलिए भी रहस्य बनी हुई है कि ब्रह्मांड की थाह ले पाना आज भी संभव नहीं हो पाया है। वैसे तो खगोलशास्त्री ज्ञात ब्रह्मांड का सिर्फ छठा हिस्सा ही देख पाते हैं

अभिषेक कुमार सिंह: अदृश्य पदार्थ की गुत्थी इसलिए भी रहस्य बनी हुई है कि ब्रह्मांड की थाह ले पाना आज भी संभव नहीं हो पाया है। वैसे तो खगोलशास्त्री ज्ञात ब्रह्मांड का सिर्फ छठा हिस्सा ही देख पाते हैं, फिर भी अनंत आकाशगंगाओं के नब्बे फीसद से ज्यादा पदार्थ अभी अज्ञात हैं। अदृश्य पदार्थ के बारे में फिलहाल कोई पक्के तौर पर नहीं जानता है कि आखिर वह है क्या!

वैज्ञानिकों के लिए आज भी ब्रह्मांड से ज्यादा रहस्यमय शायद ही कुछ हो। जैसे, असंख्य तारे होते हुए भी रात आखिर अंधेरी क्यों होती है, या इस ब्रह्मांड का कोई ओर-छोर है या नहीं। ऐसे असंख्य सवाल हैं जो आज भी रहस्य ही बने हुए हैं। सबसे बड़ी गुत्थी तो यही है कि ब्रह्मांड आखिर बना किस चीज से है। अक्सर बताया जाता है कि हमारे ब्रह्मांड का तीन चौथाई यानी पचहत्तर फीसद हिस्सा अदृश्य पदार्थ यानी डार्क मैटर से बना है। पर यह अदृश्य पदार्थ क्या है, कहां है, कोई नहीं जानता, क्योंकि अंतरिक्ष में यह कहीं किसी रूप में दिखाई नहीं देता। इसका पता तब चलता है, जब ब्लैकहोल की जानकारी बटोरी जाती है। इसी तरह ग्रहों-तारों के गुरुत्वाकर्षण से उसका अंदाजा लिया जाता है। लेकिन सिद्धांत के रूप में अदृश्य पदार्थ को पारिभाषित करना और इसके रहस्यों को सुलझाना जीव उत्पत्ति की गुत्थी सुलझाने जैसा है। पर अब माना जा रहा है कि शायद वैज्ञानिक इसका कुछ रहस्य जान लें।

इसी महीने की पांच तारीख को स्विटजरलैंड के जिनेवा शहर में दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला- लार्ज हैड्रान कोलाइडर (एलएचसी) को फिर से चालू किया गया है। कण भौतिकी (पार्टिकल फिजिक्स) के क्षेत्र में काम कर रही यह प्रयोगशाला यूरोपियन आर्गनाइजेशन आफ न्यूक्लियर रिसर्च यानी सर्न के नाम से मशहूर है। इसमें कणों को पैदा करने वाली विशालकाय मशीन एलएचसी को पिछले कुछ वर्षों में खासतौर से उन्नत बनाया गया है। माना जा रहा है कि इसका पूरी तरह संचालन शुरू होने पर अदृश्य पदार्थ के वजूद के बारे में ठोस जानकारी मिलना संभव हो सकेगा।

दस साल पहले वर्ष 2012 में एलएचसी ने ही हिग्स बोसोन नामक कण का पता लगाया था, जो इक्कीसवीं सदी की सबसे बड़ी खोजों में से एक थी। हिग्स बोसोन कणों को ब्रह्मांड के निर्माण की आधारशिला माना जाता है। हिग्स बोसोन का किस्सा ब्रह्मांड के जन्म के उन शुरुआती कणों से जुड़ा है, जिन्होंने सबसे पहले द्रव्यमान हासिल किया था। प्रस्थापनाओं के मुताबिक आरंभिक कण जब हिग्स फील्ड कहलाने वाले क्षेत्र में एक दूसरे के संपर्क में आते हैं, तो द्रव्यमान हासिल करते हैं। मोटे तौर पर ये हिग्स क्षेत्र ऊर्जा क्षेत्र होते हैं जो दूसरे इलेक्ट्रान और क्वार्क कणों को द्रव्यमान प्रदान करते हैं। इसी खूबी के कारण हिग्स बोसोन को ईश्वरीय कण यानी 'गॉड पार्टिकल' भी कहा जाता है।

कणों द्वारा द्रव्यमान हासिल करने की प्रक्रिया को महाविस्फोट (बिग बैंग) की उस घटना से जोड़ा जाता है जिससे ब्रह्मांड बनने की मानी जाती रही है। हिग्स बोसोन कणों से संबंधित उपलब्धि के बाद एलएचसी को उन्नत बनाने के जो काम किए गए, उनसे यह प्रयोगशाला अब ज्यादा सक्षम और ताकतवर हो गई है। अब इसमें ज्यादा कण एक दूसरे से टकराएंगे और उनमें ज्यादा घर्षण होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि विश्लेषण के लिए अब ज्यादा आंकड़े उपलब्ध होंगे। एक अहम बात और है जो एलएचसी द्वारा बड़ी मात्रा में ऊर्जा के इस्तेमाल से जुड़ी है। सर्न नामक यह प्रयोगशाला एक साल में एक छोटे शहर के बराबर ऊर्जा की खपत कर लेती है। इस ऊर्जा का इस्तेमाल कणों की रफ्तार बढ़ाने में किया जाता है। वैज्ञानिकों की कोशिश कणों की गति प्रकाश की रफ्तार के बराबर करने की है, ताकि जब ये कण आपस में टकराएं तो छोटे-छोटे कणों बंट जाएं।

फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा पर सत्रह मील लंबी सुरंग में स्थित इस अद्भुत मशीन 'द लार्ज हैड्रान कोलाइडर' अदृश्य ऊर्जा का रहस्य कैसे खोल सकती है, इसके लिए सर्न के संक्षिप्त इतिहास को समझना होगा। असल में इस जगह पर पहले एटम स्मैशिंग मशीन- इंटरनेशनल लीनियर कोलाइडर से और फिर कोलाइडर- लार्ज हैड्रान कोलाइडर (एलएचसी) से परीक्षण शुरू किए गए। इसने वर्ष 2007 में काम करना शुरू किया था। सतह के किसी भी स्पंदन से दूर, जमीन में गहरे दबी सुरंग के आकार में बनी इस विशालकाय में लगभग प्रकाश की गति से भागते इलेक्ट्रान-पाजिट्रान कणों के बीच उच्च आवेशित टकराहट संभव होती है। इसके फलस्वरूप ऊर्जा, प्रकाश और विकिरण का ऐसा जबर्दस्त विस्फोट होता है, जो महाविस्फोट के ठीक बाद के सेकेंड के लाखवें हिस्से तक की स्थितियों का पुन: सृजन कर सकता है। ऐसी ही अवस्था में वह 'गॉड पार्टिकल' यानी हिग्स बोसोन कण उत्पन्न हो सकता है, जिसमें अदृश्य पदार्थ और अदृश्य ऊर्जा, पदार्थ की मूलभूत प्रकृति, अंतरिक्ष और समय से लेकर उन सभी गुत्थियों का रहस्य छिपा है, जो अभी तक अनसुलझी हैं।

माना जाता है कि हमारे ब्रह्मांड का अस्सी फीसद से ज्यादा हिस्सा अदृश्य पदार्थ से बना है। यह अदृश्य पदार्थ इसलिए कहलाता है क्योंकि यह प्रकाश से संपर्क नहीं करता या उसे अवशोषित कर लेता है। इसलिए इसे आंखों या खगोलीय दूरबीनों से देखा नहीं जा सकता। अदृश्य पदार्थ की गुत्थी इसलिए भी रहस्य बनी हुई है क्योंकि ब्रह्मांड की थाह ले पाना आज भी संभव नहीं हो पाया है। वैसे तो खगोलशोस्त्री ज्ञात ब्रह्मांड का सिर्फ छठा हिस्सा ही देख पाते हैं, फिर भी अनंत आकाशगंगाओं के नब्बे फीसद से ज्यादा पदार्थ अभी अज्ञात हैं।

इनमें भी अदृश्य पदार्थ के बारे में फिलहाल कोई पक्के तौर पर नहीं जानता है कि आखिर वह है क्या। हालांकि इसकी मात्रा का एक अनुमान लगाया जाता है। माना जाता है कि अगर सभी आकाशगंगाओं और तारों के द्रव्यमान को जोड़ दिए जाए, तो यह ब्रह्मांड का सिर्फ चार फीसद हिस्सा है। बाकी सब कुछ अदृश्य पदार्थ है। इसका कुछ अंदाजा सर्न की प्रयोगशाला एलएचसी से कैसे चल सकता है, इसके लिए वैज्ञानिक ब्रह्मांड और आकाशगंगाओं के जन्म के सिद्धांत का उदाहरण देते हैं। वे बताते हैं कि जब चौदह अरब साल पहले ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी, तब अचानक इलेक्ट्रान और प्रोटान की बाढ़ आई। अनुमान है कि इन दोनों कणों में कंपन हुआ और तेरह अरब साल पहले आकाशगंगाएं अस्तित्व में आर्इं। लेकिन यह पता नहीं लग पाया है कि कंपन आखिर क्यों हुआ। माना गया कि यह कंपन हिग्स बोसोन कणों की परस्पर टकराहट से हुआ। अब सवाल है कि एलएचसी से डार्क मैटर का अनुमान कैसे लगेगा। एक सिद्धांत यह भी कहता है कि अदृश्य पदार्थ के कण इतने छोटे हो सकते हैं कि वे पकड़ में ही न आ पाएं। लेकिन टकराहट के दौरान यदि वे अपने साथ कुछ ऊर्जा पैदा करते हैं तो इससे उनके अस्तित्व के बारे में पता लग सकेगा।

अदृश्य पदार्थ बना किस चीज होगा, इसका एक जवाब म्यूनिख विश्वविद्यालय के प्रो हैराल्ड लेश ने दिया है। उनके अनुसार, अदृश्य पदार्थ मृत तारों से बना होगा। हर आकाशगंगा में सौ से दौ सौ अरब तारे होते हैं। उन में से कुछ अपना जीवनकाल पूरा कर चुके होते हैं। ऐसे ब्लैक होल, न्यूट्रान तारे, बुझ चुके तारे ही आकाशगंगाओं के इर्दगिर्द जमा हो जाते हैं। चूंकि वे चमकते नहीं हैं, इसलिए दिखते नहीं है और ये सिर्फ अपने गुरुत्व बल के माध्यम से अपने अस्तित्व का आभास देते हैं। इसी से मिलती-जुलती एक बात जर्मनी स्थित मैक्स प्लांक खगोल भौतिकी संस्थान के निदेशक साइमन व्हाइट ने भी कही है। उनके मुताबिक अभी कोई नहीं जानता कि यह अदृश्य पदार्थ किस तरह का है, लेकिन इसके सबूत वैज्ञानिकों के पास हैं कि ब्रह्मांड में भारी मात्रा में ऐसा कोई पदार्थ है, जो गुरुत्वाकर्षण जैसा प्रभाव पैदा करता है, लेकिन हम उसे देख नहीं पाते। बेशक, अभी तक किसी ने डार्क मैटर को नहीं देखा है, लेकिन अब लगता है कि एलएचसी के जरिए वैज्ञानिकों को इसकी हल्की-सी झलक मिल सकती है।


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