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- म्यांमार के 'पुलिस'...
भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में जिस तरह विगत 1 फरवरी को तख्ता पलट करके सैनिक शासन लागू किया गया उससे भारतीय उपमहाद्वीप में राजनीतिक अस्थिरता को हवा मिली है और लोकतन्त्र का शमन करने के प्रयासों का पर्दाफाश हुआ है।
म्यांमार में यह पहले भी होता रहा है और यहां सैनिक शासन जनता के मूल नागरिक अधिकारों का दमन करता रहा है। बेशक यह मामला म्यांमार का आन्तरिक मामला है मगर भारत की सरकार की नीति आजादी के बाद से ही बड़ी स्पष्ट रही है कि यह किसी भी देश में वहां के लोगों की उस इच्छा का सम्मान करती है जो अपने लिए शासन प्रणाली चुनती है। विगत वर्ष नवम्बर महीने में म्यांमार में हुए चुनावों में म्यांमार के लोगों ने यहां की जन नेता 'आंग-सान सू-की' के नेतृत्व वाली पार्टी को प्रचंड बहुमत दिया था।
परन्तु इसके बाद घटे राजनीतिक घटनाक्रम में सत्ता में शामिल यहां की फौज ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था को धत्ता बताते हुए पूरे शासनतन्त्र को अपने हाथ में ले लिया और जनता की नेता सांग-सू-की को जेल में डाल दिया। सू-की पहले भी लम्बे अर्से तक नजरबन्दी में रही हैं मगर वे लगातार लोकतन्त्र के लिए संघर्ष करती रहीं।