सम्पादकीय

म्यांमार का मानवीय संकट !

Subhi
1 April 2021 4:48 AM GMT
म्यांमार का मानवीय संकट !
x
भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में जो परिस्थितियां बन रही हैं उन्हें देखते हुए इस देश में मानवता का संकट लगातार गहराता जा रहा है।

भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में जो परिस्थितियां बन रही हैं उन्हें देखते हुए इस देश में मानवता का संकट लगातार गहराता जा रहा है। इस देश की फौज आम नागरिकों पर जिस तरह जुल्म ढहा रही है उससे 1971 के पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना द्वारा ढहाये गये जुल्मों की यादें ताजा हो रही हैं। भारत के मिजोरम राज्य में म्यांमार से वहां के नागरिकों का लगातार आना जारी है और वे अपनी जान की रक्षा की भीख मांगते देखे जा रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि भारत की सरकार उनकी मदद करेगी और उन्हें वापस म्यांमार मरने के लिए नहीं भेजेगी। इससे पहले भी भारत में म्यांमार के ही रोहिंग्या नागरिक लाखों की संख्या में शरणार्थी के तौर पर आ चुके हैं। इससे जाहिराना तौर पर यह कहा जा सकता है कि म्यांमार में मानवीय अधिकारों का संरक्षण वहां की सरकार नहीं कर पा रही है। परन्तु विगत 1 फरवरी को जिस तरह म्यांमार की फौज ने लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुई आग-सान-सु की की सरकार का तख्ता पलट करके हुकूमत अपने हाथों में ली उससे साफ हो गया कि इस देश में कुछ एेसी ताकतें सक्रिय हैं जो प्रजातन्त्र को फलने-फूलने नहीं देना चाहती हैं। कूटनीतिक रूप से और फौजी तौर पर भी चीन के सम्बन्ध म्यांमार से बहुत प्रगाढ़ रहे हैं। चीन के हित इस देश में आर्थिक तौर पर गहराई में हैं।

यह समझने वाली बात है कि चीन भारत के पड़ोसी देशों के साथ किस स्तर के सम्बन्ध कायम कर रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप के सभी देश (केवल मालदीव को छोड़ कर) एक समय में विशाल भारत के ही अंग रहे हैं। 1919 तक श्रीलंका भारत का ही हिस्सा था। 1935 तक म्यांमार भी ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा था और 1947 तक पाकिस्तान (बंगलादेश समेत) भी भारत का ही अंश था। इन सभी देशों पर चीन अपनी आर्थिक व सैनिक ताकत का दबाव जमाने के चक्कर में रहता है। परन्तु म्यांमार के सन्दर्भ में यह समझने की जरूरत है कि कालान्तर में इस देश में लोकतन्त्र विरोधी ताकतों को अन्दरखाने चीन ही फौजी सहयोग के जरिये मदद करता रहा है। बेशक भारत की नीति किसी भी देश के आन्तरिक मामलों में दखल देने की नहीं है मगर यह भी घोषित नीति है कि भारत किसी भी देश में उसके लोगों के अपनी सरकार चुनने के अधिकार का समर्थक रहा है।
भारत का मानना रहा है कि किसी भी देश के लोगों को अपनी मनपसन्द सरकार चुनने का पूरा हक होता है और एेसा करते समय भारत मानवीय अधिकारों को पूरा सम्मान देता है। दुनिया में मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में से भी एक देश है। मानवाधिकारों की रक्षा के लिए भारतीय फौजें भी कृतसंकल्प रहती हैं और दुनिया भर में शान्ति स्थापित करने हेतु फौजी मदद में भी आगे रहती हैं। एेसा हमने 1986 में श्रीलंका में भी किया जब वहां तमिल समस्या बहुत गहराने लगी थी और लिट्टे जैसे संगठन ने कोहराम मचा रखा था। मगर पिछले दशक में जब नेपाल में राजशाही के विरुद्ध जनान्दोलन खड़ा हुआ तो भारत ने स्पष्ट किया कि यह नेपाल के लोगों की इच्छा का ही सम्मान करेगा। म्यांमार के सन्दर्भ में यही विषय उभर रहा है कि जब वहां के लोग लोकतन्त्र की वापसी चाहते हैं और वहां की फौज उन पर जुल्मो-सितम का बाजार गर्म कर रही है तो भारत की भूमिका क्या होनी चाहिए? यह इस वजह से और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है कि म्यांमार में चल रही मार-काट और उथल-पुथल से सीधे भारत ही प्रभावित हो रहा है और इसके ही उत्तर-पूर्व के राज्यों में शरणार्थियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह कोई साधारण घटना नहीं कही जा सकती म्यांमार के विभिन्न शहरों मे लोग लोकतान्त्रिक सरकार की वापसी में आंदोलन कर रहे हैं और फौज उन्हें गोलियों से भून रही है। एेसी ही घटना में पिछले दिनों 114 नागरिकों की हत्या की गई। इतना ही नहीं जब इन मारे गये लोगों में से एक युवा के अन्तिम संस्कार में लोग यंगून शहर के निकट जुटे और उन्होंने मृत व्यक्ति को सम्मान देने के लिए लोकतन्त्र के समर्थन में नारे लगाये तो फौज ने उन पर भी बेतहाशा गोलियां चलाईं। हालांकि अमेरिका समेत कई अन्य यूरोपीय देशों ने म्यांमार के खिलाफ प्रतिबन्ध लगाने शुरू कर दिये हैं परन्तु इसके बावजूद इस देश में फौज अपनी क्रूरतम कार्रवाइयों से बाज नहीं आ रही है। वास्तव में म्यांमार का संकट केवल लोकतन्त्र का संकट नहीं कहा जा सकता बल्कि यह मानवीयता के संकट की तरफ बढ़ता दिखाई पड़ रहा है जो विश्व के सभी लोकतान्त्रिक देशों के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है। इस चुनौती का मुकाबला करना विभिन्न देशों की महापंचायत राष्ट्रसंघ का कर्त्तव्य भी बनता है। भारत को अपने भौगोलिक व कूटनीतिक हितों को केन्द्र में रखते हुए अपनी प्रभावी भूमिका अदा करनी पड़ सकती है। यह सब हालात पर निर्भर करता है।


Next Story