- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- म्यांमार के बच्चों, इस...
x
म्यांमार के बच्चों
भारत (India) समेत दुनिया के कई देशों में बच्चों के अधिकार (Children Rights) के नाम पर एक आलस्य भरा सन्नाटा पसरा रहता है. ऐसा नहीं है कि कोई इस पर बोलना नहीं चाहता है. सच तो ये है कि ज्यादातर लोग इस बारे में सोचते या जानते भी नहीं हैं. राजनीतिक दल अपने घोषणापत्रों और चुनावी भाषणों में बच्चों के अधिकार की बात नहीं करते क्योंकि बच्चे वोट नहीं होते. घर-परिवार में भी छोटे-बड़े मसलों पर फ़ैसला लेते समय बच्चों की इच्छा नहीं पूछी जाती क्योंकि 'बड़ों के मामलों में बच्चों का दखल ठीक नहीं होता'. इस देश में बच्चों की ना जाने कितनी पीढ़ियां ये सुनते-सुनते जवान हो गई होंगी कि 'तुम रहने दो, ये कोई बच्चों का खेल नहीं है' लेकिन, बात सिर्फ इतनी भर नहीं है.
पहली अप्रैल को जब ख़बर आई कि म्यांमार में तख़्तापलट (Myanmar Coup) के बाद 2 महीने में 43 बच्चों की जान जा चुकी है तो मन में ख्याल आया काश 'सेव द चिल्ड्रन' (बच्चों के अधिकार के लिए काम करने वाली संस्था) की ये ख़बर गलत होती लेकिन हकीकत यही है कि म्यांमार में सेना अपने विरोधियों को कुचल रही है और बच्चे भी कुचले जा रहे हैं. (इन शब्दों को लिखना भी कितना भयानक अहसास है)
बच्चों के ख़िलाफ़ हिंसा सबसे बड़ा अपराध
पुराने ज़माने में युद्ध की भी एक आचार संहिता होती थी. सूर्यास्त होते ही हथियार को विराम देना होता था. महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने अपने दुश्मन पांडवों के शिविर में घुसकर द्रौपदी के पांचों पुत्रों को उस समय मार डाला, जब वो सो रहे थे. इस महापाप के बदले में उसे भगवान कृष्ण ने श्राप दिया कि अश्वत्थामा इस संसार में हमेशा मोक्ष की तलाश में भटकता रहेगा.
महाभारत काल के बाद अब आधुनिक काल में आइए. आज से 102 वर्ष पहले भी एक महिला का सामना दुश्मनों के शिविर में रह रहे बच्चों से हुआ. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 43 वर्ष की ब्रिटिश महिला एग्लैन्टाइन जेब ने जब अखबारों में जर्मनी और ऑस्ट्रिया के भूख से मरते बच्चों की तस्वीर देखी तो वो रो पड़ीं. दरअसल इंग्लैंड और उसके मित्र देशों ने अपने शत्रु देशों के राशन की आपूर्ति रोक रखी थी. जेब ने अपने ही देश की इस अमानवीय हरकत के खिलाफ व्हिसल बजा दिया तो उन्हें कोर्ट में पेश किया गया. इस 'कसूर' के लिए जेब पर जुर्माना किया गया लेकिन जज बच्चों के प्रति जेब के करुणा भाव से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपने पॉकेट से जुर्माना भर दिया. यही जुर्माना 'सेव द चिल्ड्रन' का पहला चंदा था और यही थीं वो एग्लैन्टाइन जेब जिन्होंने इस संस्था की स्थापना की. जेब का कहना था कि किसी भी विपत्ति में बच्चे का पहला अधिकार है कि उसे सबसे पहले राहत मिले.
युद्ध की भेंट चढ़ रहे हर वर्ष 1 लाख बच्चे
'सेव द चिल्ड्रन' की एक रिपोर्ट कहती है कि 2013 से 2017 के बीच दुनिया के 10 हिंसाग्रस्त देशों में 5.50 लाख बच्चे मारे गए यानी हर वर्ष हिंसक संघर्ष में औसतन दुनिया के 1 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत हो रही है. इस संस्था की पूर्व सीईओ हेले थोर्निंग (जो डेनमार्क की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं) ने इस रिपोर्ट को पेश करते हुए कहा था कि 'नैतिकता का सिद्धांत बहुत स्पष्ट है. आप बच्चों पर हमला नहीं कर सकते लेकिन नैतिकता के मामले में हम 21वीं सदी में आकर भी पीछे जा रहे हैं'.
तो ऐसे में सवाल उठता है कि घोर अ-नैतिकता के इस दौर में अश्वत्थामाओं को श्राप मिलने की उम्मीद की जाए या नहीं?
भूखे बच्चे को खाना दो, अनाथ को आसरा
1924 में लीग ऑफ नेशंस (बाद में जिसकी जगह यूनाइटेड नेशंस यानी संयुक्त राष्ट्र ने ली) के जेनेवा सम्मेलन में एग्लैन्टाइन जेब ने बच्चों के अधिकार पर अपना छोटा सा दस्तावेज़ पेश किया. इसे याद रखना और पढ़ना बेहद आसान और ज़रूरी है. जेब ने कहा कि, 'अगर बच्चा भूखा है तो उसे खाना खिलाइए, अगर बच्चा बीमार है तो उसकी देखभाल कीजिए, अगर वो पिछड़ गया है तो उसकी मदद कीजिए, अगर उससे कोई गलती हो गई है तो उसमें सुधार कीजिए और अगर वो अनाथ हो गया है तो उसे आसरा दीजिए'. जेब का ये विचार बच्चों के मानवाधिकार के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ. संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने 20 नवंबर 1989 को जो 'बाल अधिकार समझौता' यानी Convention on the Rights of the Child (CRC) पारित किया, उसकी मूल आत्मा यही है. 2 सितंबर 1990 को ये समझौता अमल में आया.
इस पर दुनिया के 193 देशों के हस्ताक्षर हैं. म्यांमार ने भी इस पर 1991 में साइन किया था, जिसका मतलब हुआ कि वो इसके पालन के लिए वचनबद्ध है लेकिन म्यांमार या सीरिया या इराक के बच्चों की आवाज़ इस दुनिया में कौन सुन रहा है?
सोमालिया, साउथ सूडान और अमेरिका का 'जी-3'
ध्यान देने की बात ये है कि लोकतंत्र के स्वघोषित ठेकेदार अंकल सैम भी बच्चों के खिलाफ हो रही निर्ममता पर बोलना जरूरी नहीं समझते. अमेरिका सोमालिया और साउथ सूडान के साथ उस अघोषित 'ग्रुप-3' का सदस्य है, जिसने बच्चों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के समझौते को मंज़ूरी नहीं दी है. 2008 में तब के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने खुद कहा कि 'अमेरिका को सूडान के साथ खड़ा देख शर्मिंदगी होती है.'
एक ज़माने में इंग्लैंड में खोटे सिक्कों की भरमार हो गई तो महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने नए सिक्के जारी किए. हैरानी की बात ये है कि नए सिक्के गायब होने लगे और फिर से वही घिसे-पिटे सिक्के बाज़ार में चलने लगे. जब बार-बार यही होता रहा तो महारानी ने अपने सलाहकार टॉमस ग्रेशम से पूरे मामले की पड़ताल करने को कहा. इस पर ग्रेशम को जो बात पता चली वो गौर करने वाली है. दरअसल इंग्लैंड के लोग नए सिक्कों को छिपा लेते थे यानी बाज़ार से हटा लेते थे और इस तरह से खोटे सिक्कों का बोलबाला बना रहता था. 'ग्रेशम का सिद्धांत' हमें सिखाता है कि बुराई के लिए अच्छाई को बाहर कर देना आसान होता है.
अमेरिका समेत दुनिया के तमाम आधुनिक होते समाज ग्रेशम के इसी सिद्धांत पर चल रहे हैं, जहां अच्छाई, भलाई और नेकी आउटडेटेड हैं. लोक कल्याणकारी सरकारों के लिए अब सबसे बड़ा रुपैया है. उम्र के आधार पर रेलवे में बच्चों के लिए बनाई गई 'हाफ टिकट' की व्यवस्था ख़त्म कर दी जाती है क्योंकि सरकार को पैसा चाहिए. शराब पीने की उम्र 25 से घटाकर 21 कर दी जाती है क्योंकि सरकार को पैसा चाहिए.
म्यांमार और सीरिया के बच्चों का इस दुनिया में कोई नहीं है?
CRC का आर्टिकल 19 कहता है कि किसी भी देश को ऐसे कानूनी, प्रशासनिक, सामाजिक और शैक्षिक उपाय बरतने चाहिए, जिनसे बच्चों के ख़िलाफ़ कोई शारीरिक या मानसिक हिंसा ना हो, बच्चे जख्मी ना हों, कोई बच्चों को अपशब्द ना बोल पाए और उनका यौन शोषण भी ना हो सके लेकिन जब इन बुनियादी बातों की ही परवाह नहीं तो म्यांमार और सीरिया के बच्चों की किसे चिंता है?
कुछ वर्ष पहले युद्धग्रस्त सीरिया के एक बच्चे की तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें वो खून से लथपथ होता है. बताया गया कि बम धमाके में घायल बच्चे ने मौत से पहले कहा कि ऊपर जाकर भगवान से मिलूंगा तो तुम सबकी शिकायत करूंगा. बाद में पता चला कि ये खबर गलत थी लेकिन कल्पना कीजिए, जिस दुनिया में हर वर्ष एक लाख बच्चे बारूद और बम के बीच दम तोड़ रहे हैं, वहां ऐसी शिकायतें चीख, आंसू या मौन की शक्ल में गुम नहीं हो जाती होंगी?
हे सैंटा क्लॉज! अबकी दिसंबर में जब अपनी बर्फ गाड़ी पर चॉकलेट बांटने के लिए निकलना तो कहीं जाओ या मत जाओ सीरिया और म्यांमार जैसे देशों में ज़रूर चले जाना. शायद वहां के बच्चों का इस दुनिया में कोई नहीं है.
Next Story