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- म्यांमार का संकट
भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में जो परिस्थितियां बन रही हैं उन्हें देखते हुए इस देश में मानवता का संकट लगातार गहराता जा रहा है। इस देश की फौज आम नागरिकों पर जिस तरह जुल्म ढहा रही है उससे 1971 के पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना द्वारा ढहाये गये जुल्मों की यादें ताजा हो रही हैं। भारत के मिजोरम राज्य में म्यांमार से वहां के नागरिकों का लगातार आना जारी है और वे अपनी जान की रक्षा की भीख मांगते देखे जा रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि भारत की सरकार उनकी मदद करेगी और उन्हें वापस म्यांमार मरने के लिए नहीं भेजेगी। इससे पहले भी भारत में म्यांमार के ही रोहिंग्या नागरिक लाखों की संख्या में शरणार्थी के तौर पर आ चुके हैं। इससे जाहिराना तौर पर यह कहा जा सकता है कि म्यांमार में मानवीय अधिकारों का संरक्षण वहां की सरकार नहीं कर पा रही है। परन्तु विगत 1 फरवरी को जिस तरह म्यांमार की फौज ने लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुई आग-सान-सु की की सरकार का तख्ता पलट करके हुकूमत अपने हाथों में ली उससे साफ हो गया कि इस देश में कुछ एेसी ताकतें सक्रिय हैं जो प्रजातन्त्र को फलने-फूलने नहीं देना चाहती हैं। कूटनीतिक रूप से और फौजी तौर पर भी चीन के सम्बन्ध म्यांमार से बहुत प्रगाढ़ रहे हैं। चीन के हित इस देश में आर्थिक तौर पर गहराई में हैं।