सम्पादकीय

मेरी डफली, मेरा राग

Rani Sahu
18 April 2022 7:17 PM GMT
मेरी डफली, मेरा राग
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भारतीय सरकारी सेवाओं का कटु सत्य है

भारतीय सरकारी सेवाओं का कटु सत्य है कि भले ही साँप और कुत्ते के काटे का ईलाज संभव हो लेकिन बाबू छोटा हो या बड़ा, उसके काटे का कोई उपचार नहीं। इतिहास गवाह है कि अलाउद्दीन खिलजी को अपने राज में गड़बड़ करने वाले बाबुओं के हाथ कटवाने या माथे पर 'चोर' गुदवाने जैसे जघन्य दंड निर्धारित करने के बावजूद उन्हें क़ाबू में रखने में सफलता नहीं मिल पाई थी। उसने अपने राज में बाबुओं के प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं की थी। शायद वह भविष्य द्रष्टा था। उसे पता था कि आधुनिक भारत में प्रशासनिक सेवाओं के प्रशिक्षण के दौरान सुपर बॉस घड़ने के लिए सिखाए जाने वाले तमाम गुर धीरे-धीरे गुणों में परवर्तित हो कर, उनके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा बनने के बाद प्राशसनिक व्यवस्था और गुणवत्ता, दोनों पर ग्रहण लगाएंगे। प्रायः देखने में आता है कि कुछ समय के बाद अखिल भारतीय और प्रादेशिक प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी 'तेरी डफली मेरा राग' के अभ्यास अर्थात लोगों की सेवा करने की बजाय 'मेरी डफली मेरा राग' में सिद्धहस्त हो जाते हैं। शायद अकादमी में उन्हें प्रशिक्षण ही इस बात का दिया जाता है कि दूसरे की डफली छीन कर, उस पर केवल अपना ही राग बजाना और अलापना है, चाहे वह बेसुरा ही क्यों न हो। जन सेवा की आड़ में लोगों को एक ताल, तीन ताल, रूपक, झप ताल या भैरवी, आसवरी, ललित, यमन, कल्याण आदि राग सुनाने का स्वांग भरते हुए, एक ही ताल पर एक ही राग बजाना और अलापना है, अपनी श्रेष्ठता का राग।

प्रशासनिक सेवाओं में दाखिल होने वालों को शायद प्रशिक्षण ही इस बात का दिया जाता है कि किसी भी विभाग में जाने पर केवल अपने को श्रेष्ठ मानते हुए पूरा फोकस अपना टेन्योर पूरा करने पर होना चाहिए। बाक़ी सिस्टम स्वयं संभाल लेता है। प्रशासनिक सेवाओं की कुशलता और सफलता की यह कुंजी सभी विभागों के ज़ंग लगे ताले खोलती है। सबसे क़ाबिल अधिकारी वही कहलाता है जो वर्तमान विभाग में अपनी धौंस क़ायम रखते हुए सभी को हड़काने और यह दर्शाने में माहिर हो कि उसे विभाग ही नहीं दुनिया के सारे नियमों, योजनाओं, कार्यक्रमों और गतिविधियों की गहन जानकारी है। वर्तमान विभाग में 'फूट डालो और राज करो' के सिद्धांत पर कुछ ऐसे चापलूसों को गले लगाए, जो अपनी नालायक़ी छिपाने के लिए सबकी कुंडली खोल कर उसके सामने रख दें। बदले में नए साहिब उन्हें ऐसी सभी इम्पॉरटेन्ट सीटों पर तैनाती दें, जहाँ तमाम अनाप-शनाप काम आसानी से करवाए जा सकें। ऐसे अधिकारी और कर्मचारी जो उससे बुद्धिमान और योग्य हों, को इस तरह हड़काए कि उन्हें नौकरी के लाले पड़ जाएं।
उन्हें किसी भी इम्पॉरटेन्ट सीट पर न रखा जाए। उनके आने-जाने पर पूरी नज़र रखी जाए। अगर वे बाथरूम भी जाएं तो उनकी सीट ख़ाली दिखते ही, उन्हें मेमो इशू किए जाएं। उनकी छुट्टियाँ बंद कर दी जाएं। अगर कोई अधिकारी या कर्मचारी ज़ोर देने के बावजूद कहे कि नियमों के तहत यह काम नहीं हो सकता तो उसे चिट्ठियों में इस तरह उलझाया जाए कि बेचारा सारे नियम भूल कर, तोते की तरह वही कहे और करे, जो उसे कहा जाए। इतना करने के बाद भी न मानने पर उसे टेम्परेरि ड्यूटी के नाम पर अपने स्टेशन से बार-बार दूसरी जगह भेजा जाए या फिर अगले आदेशों तक अपने पास हैडक्वार्टर में तैनात कर दिया जाए। विभागीय प्रशिक्षण की विशेष कार्यशालाएं आयोजित कर, उसे सर्विस रूल और इनसबआर्डीनेशन के बारे में विस्तार से सिखाया जाए कि बॉस चाहे गधा भी हो, तो भी वह बॉस ही रहता है। उसकी एक दुलत्ती से बंदा न केवल अपने स्टेशन से दर-ब-दर हो जाता है बल्कि मेमो और स्पष्टीकरण की उन भूलभुलयों में खो जाता है जिनमें भटकने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं होता। इन्हीं बातों के आधार पर उसकी एसीआर लिखी जाए। लिहाज़ा विभागीय कर्मियों को सुपर बॉस की अगाड़ी और पिछाड़ी दोनों से बच कर रहना चाहिए।
पी. ए. सिद्धार्थ
लेखक ऋषिकेश से हैं
Rani Sahu

Rani Sahu

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