- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- समर्थ देशों की आपसी...
x
अपने आठ साल पूरे कर रही मोदी सरकार की प्रमुख कूटनीतिक उपलब्धियों में एक क्वाड की मजबूती भी है
एस जयशंकर,
अपने आठ साल पूरे कर रही मोदी सरकार की प्रमुख कूटनीतिक उपलब्धियों में एक क्वाड की मजबूती भी है। अभी-अभी टोक्यो में दूसरी बार इसके नेताओं ने आमने-सामने मुलाकात की। कुछ मायनों में एक समूह के तौर पर क्वाड का गठन पूर्व नियोजित था, क्योंकि यह उन महत्वपूर्ण रिश्तों से जुड़ा है, जो शीत युद्ध की समाप्ति के बाद विकसित हुए हैं। मगर जिस रणनीतिक दृष्टि और कूटनीतिक कौशल ने इसे संभव बनाया है, उसे इसका उचित श्रेय जरूर मिलना चाहिए।
एक मंच के रूप में क्वाड और एक क्षेत्र के रूप में हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) बताते हैं कि यह दौर वैश्वीकरण का है। ये स्पष्ट करते हैं कि हिंद और प्रशांत महासागरों को अब अलग-अलग विभाजित नहीं किया जा सकता। ये समकालीन अवधारणाएं हैं, जो एशिया के उदय, बड़ी शक्तियों के रुख में बदलाव, उनकी बदली क्षमताएं व दृष्टिकोण, आपूर्ति शृंखला की प्रकृति और प्रौद्योगिकी व कनेक्टिविटी की महत्ता को दर्शाती हैं। भारतीय नजरिये से यह हिंद महासागर से परे इसके बढ़ते हितों की एक अभिव्यक्ति है।
क्वाड के कुछ आलोचकों ने जान-बूझकर शीत युद्ध वाली छवि पेश करने की कोशिश की है। मगर अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की यह साझेदारी उनकी वास्तविक क्षमताओं पर आधारित है। क्वाड के सभी सदस्य देश लोकतांत्रिक राजनीति, बाजारवादी अर्थव्यवस्था और बहुलवादी समाज को जीते हैं। इस नैसर्गिक जुड़ाव के अलावा, आपसी संबंधों के संरचनात्मक पहलुओं में समानता भी इस मंच को मजबूती प्रदान करती है। इसमें शिखर सम्मेलन स्तर के नियमित आयोजन होते हैं, और एक-दूसरे के साथ रक्षा व विदेश मंत्रियों की 'टू प्लस टू' बैठकें होती हैं। इतना ही नहीं, चारों देश आसियान के नेतृत्व वाले मंचों के भी सदस्य हैं, जिनमें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, आसियान क्षेत्रीय मंच और रक्षा मंत्रियों की बैठक उल्लेखनीय हैं। जहां तक हिंद-प्रशांत का संबंध है, क्वाड देश आसियान की केंद्रीय भूमिका को दृढ़ता से स्वीकारते हैं। वे अन्य साझीदारों के साथ कई त्रिपक्षीय समूहों का हिस्सा हैं। ये सभी एक-दूसरे को लॉजिस्टिक मदद देते हैं, जिससे समुद्री सुरक्षा के लिहाज से एक बेहतर समन्वय बनता है। 'यूएनसीएलओएस 1982' के लिए भी उनकी साझा प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण है, जिसे महासागरों का संविधान कहा जाता है।
क्वाड के कामकाज में वैश्वीकरण के परिणामों, वैश्विक जरूरतों और हिंद-प्रशांत में बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के बावजूद साझा हितों को ध्यान में रखा गया है। मालाबार नौसैनिक अभ्यास को अक्सर इसकी प्रमुख गतिविधि बताई जाती है, लेकिन यह इस समूह के साथ अन्याय है, क्योंकि यह वैश्विक कल्याण में भी व्यापक योगदान देता है।
जैसा कि टोक्यो शिखर सम्मेलन बताता है कि समूह का एजेंडा तेजी से आगे बढ़ा है। क्वाड महत्वपूर्ण उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में आपसी सहयोग कायम करता है, एक वैविध्यपूर्ण खुले दूरसंचार पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करता है और सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन पर चर्चा करता है। यह पर्यावरण हितैषी नौपरिवहन गलियारे को बढ़ावा देता है, हरित हाइड्रोजन पर सहयोग का समर्थन करता है और आपदाओं से उबरने के बेहतर तरीके तैयार करने को लेकर जागरूकता पैदा करता है। टिकाऊ बुनियादी ढांचे व पारदर्शी कनेक्टिविटी पर भी इसके सामूहिक प्रयास सराहनीय हैं।
महामारी को देखते हुए क्वाड के लिए वैक्सीन साझेदारी को आगे बढ़ाना स्वाभाविक है। 'स्टेम फेलोशिप' सदस्य देशों के बीच शैक्षिक जुड़ाव को दर्शाती है, तो 'डाटा सैटेलाइट पोर्टल' अंतरिक्ष संबंधी जुड़ाव को। वर्ष 2004 की सुनामी के इतिहास को देखते हुए मानवीय सहायता और आपदा से निपटने में सहयोग की इसकी पहल नई है। आतंकवाद की रोकथाम व साइबर सुरक्षा जैसे विषयों पर भी इसके कामकाज का विस्तार किया गया है, जो महत्वपूर्ण है।
टोक्यो शिखर सम्मेलन बेहद सफल आयोजन रहा है, जिसने न सिर्फ क्वाड की अब तक की यात्रा का महत्व निरूपित किया, बल्कि भविष्य में इसके विकास की क्षमता को भी रेखांकित किया है। क्वाड सदस्यों ने अगले पांच वर्षों में हिंद-प्रशांत में 50 बिलियन डॉलर से अधिक की बुनियादी ढांचागत सहायता और निवेश के प्रति प्रतिबद्धता जताई है। क्लाइमेट एक्शन के संबंध में 'क्वाड क्लाइमेट चेंज ऐंड एडेप्टेशन मिटिगेशन पैकेज' की शुरुआत भी महत्वपूर्ण है। क्वाड साइबर सुरक्षा दिवस मनाने का फैसला डिजिटल चिंताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने को लेकर किया गया है। 5जी आपूर्तिकर्ता विविधीकरण और ओपन-आरएएन पर बनी आपसी समझ से इस क्षेत्र में दूरसंचार को सुरक्षित बनाने में मदद मिलेगी।
शिखर सम्मेलन से इतर दो अन्य उल्लेखनीय पहल का जिक्र भी यहां जरूरी है, जो बताती हैं कि क्वाड ने किस तरह से व्यापक क्षेत्रीय सहयोग में मदद की है। 'इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क' की पहल से व्यापार, आपूर्ति शृंखला, बुनियादी ढांचे और वित्त में साझा हितों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। इसी तरह, समुद्री क्षेत्र में 'इंडो-पैसिफिक पार्टनरशिप फॉर मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस' प्राकृतिक आपदा के दौरान मदद और गैर-कानूनी रूप से मछली पकड़ने जैसी चुनौतियों से निपटने में क्षेत्रीय भागीदारी सुनिश्चित करेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहें, तो क्वाड का मकसद वैश्विक भलाई है। इसके लिए एक सहयोग भरे प्रयास की दरकार होगी। जाहिर है, उच्च क्षमतावान और साझा हितों वाले राष्ट्रों को समय की जरूरत को देखते हुए आगे बढ़ना होगा। भारत को इनमें से एक राष्ट्र होना ही चाहिए। यह इसके विकास, आत्मविश्वास और विश्व-दृष्टिकोण को देखते हुए एक स्वाभाविक समझ है। दुनिया को एक परिवार मानते हुए भारतीय हितों को केंद्र में रखने के मोदी सरकार के दृष्टिकोण को भी क्वाड जाहिर करता है। देखा जाए, तो टोक्यो शिखर सम्मेलन इस नजरिये की ताजा स्वीकृति है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सोर्स-Hindustan Opinion
Rani Sahu
Next Story