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- बिहार का मुस्तकबिल
Written by जनसत्ता; आखिरकार बिहार में भाजपा और जनता दल (एकी) का गठबंधन टूट गया। नीतीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दिया और ऐलान कर दिया कि अब महागठबंधन की सरकार बनेगी। दोनों दलों के बीच मनमुटाव लंबे समय से चल रहा था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानसभा अध्यक्ष से खिंचे-खिचे रहते थे। फिर केंद्र के कई फैसले भी उन्हें अपने सिद्धांतों के खिलाफ लगते थे। जातिवार जनगणना को लेकर तो उन्होंने केंद्र को खुली चुनौती दे डाली थी। ऐसे अनेक मौके पिछले कई महीनों में आए, जब नीतीश कुमार और केंद्र सरकार के बीच सैद्धांतिक मतभेद जाहिर होने लगे थे।
ऐसे में लंबे समय से कयास लगाए जा रहे थे कि नीतीश कुमार कभी भी भाजपा का साथ छोड़ सकते हैं। उनका झुकाव भी राष्ट्रीय जनता दल की तरफ अधिक देखने को मिल रहा था। तेजस्वी यादव के प्रति उनका नरम रुख प्रकट होने लगा था। मगर जब जनता दल (एकी) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया तो परदे के पीछे चल रहा खेल सामने उभर कर आ गया। नीतीश कुमार ने केंद्र में होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार में अपने सासंदों के हिस्सा न लेने की घोषणा कर दी। फिर बिहार में विधायकों की बैठक बुलाई गई और उसमें अलग होने का मन बना लिया गया।
अब राजद, कांग्रेस और महागठबंधन के दूसरे कुछ दलों ने नीतीश कुमार को समर्थन दे दिया है। नीतीश कुमार नए गठबंधन के नेता चुन लिए गए हैं और उन्होंने तेजस्वी यादव से कहा कि वे पांच साल पहले की बातें भूल जाएं और अब नए सिरे से शासन चलाने पर ध्यान दें। इस तरह नीतीश कुमार को पहले से अधिक बहुमत मिल गया है और उम्मीद जताई जा रही है कि नए गठबंधन की सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी।
पर नीतीश कुमार से यह सवाल तो पूछा ही जाता रहेगा कि पिछले चुनाव में जब उन्होंने राजद के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था तब खुल कर भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी कहा था और फिर सरकार बनाई तो वे भाजपा को खरी-खोटी सुनाते नहीं थकते थे। मगर फिर क्या हुआ कि उसी भाजपा से गलबहियां कर बैठे और बाकी का कार्यकाल पूरा किया। फिर इस बार का चुनाव भी उन्होंने भाजपा के साथ मिल कर लड़ा था। भाजपा ने उन्हें शुरू में ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था। जद (एकी) की सीटें भाजपा से कम होने के बावजूद उसने अपना वचन निभाया और उन्हें मुख्यमंत्री पद दिया। अब फिर उन्हें भाजपा खटकने लगी और राजद का साथ अच्छा लगने लगा।
राजनीति में अवसर का लाभ उठाने वाले ही बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं। चुनाव के समय तो ऐसा करके नीतीश कुमार ने अपने खिलाड़ी होने का परिचय दे दिया, मगर अब ऐसी क्या सैद्धांतिक अड़चन आ गई कि उन्हें भाजपा का साथ चुभने लगा। खैर, अगर नीतीश कुमार को भाजपा के साथ सैद्धांतिक मेल नहीं बैठ पा रहा था, तो राजद को भी वे भला कितना अपना पाएंगे, कहना मुश्किल है, क्योंकि उसी राजद को कोसते हुए पिछली बार उन्होंने भाजपा का दामन थामा था। वे कहते नहीं थकते थे कि राजद बिहार में जंगलराज कायम करना चाहती है। अब क्या राजद के व्यवहार में अचानक बदलाव आ गया। ऐसा लगता तो नहीं। फिर तेजस्वी यादव ने जिस तरह सरकार बनने से पहले अपनी कड़ी शर्तें रखी हैं, उससे वह नीतीश कुमार को मुक्तहस्त होकर काम करने का अवसर देगी, कहना मुश्किल है।