सम्पादकीय

पर्यावरण की गरिमा को समझना चाहिए

Rani Sahu
5 Jun 2022 7:10 PM GMT
पर्यावरण की गरिमा को समझना चाहिए
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भारत की सभ्यता व संस्कृति में पृथ्वी को मां माना गया है

भारत की सभ्यता व संस्कृति में पृथ्वी को मां माना गया है। प्रकृति मानव की पालक-पोषक व जननी है। विकास व आधुनिकता की अंधी दौड़ में आज के मानव ने प्रकृति की गरिमा व उसके वजूद को खतरे में डाल दिया है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के खतरों का हम साक्षात सामना भी कर रहे हैं। अचानक से मौसम में अनेकों परिवर्तन देखने को मिल रहे हंै। नदियां, झरने, ग्लेशियर, कुएं व सुंदर सुशील गगनचुंबी पर्वत श्रृंखलाएं धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही हंै। आज हमें प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों में जाना पड़ता है, जहां पर मानव की क्रियाएं प्रभावी न रही हों। ऐसी परिस्थितियां मानव ने उस पृथ्वी के साथ की हैं जिसे हम मां मानते थे। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का एक अमर वाक्य 'मानव ने चंद्रमा पर कदम रख दिए, लेकिन धरती पर जीना नहीं सीख पाया' आज जिस तरह से पर्यावरण का हनन मानव द्वारा किया जा रहा है, यह आने वाली हमारी पीढि़यों के जीवन के लिए अंधकारमय भविष्य को उजागर कर रहा है। हर वर्ष की भांति 5 जून को दुनिया में अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 'केवल एक पृथ्वी' थीम के साथ पर्यावरण दिवस को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। लेकिन दो-चार दिनों में ही हमारे पर्यावरण संरक्षण के सारे वायदे व स्वप्न अपने जीवन की भागदौड़ में लीन हो जाएंगे। विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने के पीछे संयुक्त राष्ट्र संघ का गहन चिंतन व भविष्योन्मुखी विजन था, लेकिन धरातल पर सही ढंग से पर्यावरण के संरक्षण की गरिमा मानव की आदतों का हिस्सा नहीं बन पाई है। पर्यावरण दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने और उन्हें संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।

धरती पर लगातार बेकाबू होते जा रहे प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसे कारणों के चलते वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे की शुरुआत हुई थी। हर वर्ष एक नए थीम के साथ पर्यावरण दिवस को मनाया जाता है। लेकिन इन थीमों के माध्यम से पर्यावरण को बचाने में कितने कामयाब हो पाते हैं इसका आकलन करना भी जरूरी हो चुका है। वर्ष 2021 का विषय था पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली। अर्थात पृथ्वी को एक बार फिर से अच्छी अवस्था में लाना। एक वर्ष का आकलन करके देखिए, हमने पर्यावरण को बचाने के लिए क्या किया। 5 जून 2021 को बड़े-बड़े मंचों से पर्यावरण को बचाने की शपथें दिलाई गईं, बड़े-बड़े वायदे किए गए, लेकिन धरातल पर कितना संरक्षण हम पर्यावरण का करवा पाए, यह सभी को पता है। पर्यावरण को बचाने के लिए हमें जमीनी स्तर पर बिना किसी दिखावे के साथ पूर्ण सजगता व ईमानदारी के साथ सामूहिक प्रयास करने होंगे। तभी हम इस पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित कर पाएंगे, जिसमें हर भारतीय को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। विश्व पर्यावरण दिवस 2020 की थीम 'जैव-विविधता' थी। इस थीम के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि जैव विविधता संरक्षण एवं प्राकृतिक संतुलन होना मानव जीवन के अस्तित्व के लिए बेहद आवश्यक है। शायद कोरोना वायरस के समय काल में प्रकृति के साथ समय व्यतीत करने का मानव को काफी लंबे समय के बाद ऐसा अवसर प्राप्त हुआ था। लेकिन आज का मानव डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपने आप को सजग व सुरक्षित महसूस पाता है। ऐसे में शायद इस वर्ष का पर्यावरण दिवस भी डिजिटल दुनिया के माध्यम से ही देश व प्रदेश की अधिकतर जनता मनाएगी। कोई बुराई नहीं है कि मानव डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रकृति के उत्थान व मानव जीवन को सुगम बनाने के मार्ग को प्रशस्त करे, लेकिन कहीं न कहीं मानव ने अपने सुखों व लालच की पूर्ति के लिए प्रकृति के साथ अनेकों अन्याय किए हैं, जो कि मानव के अस्तित्व के लिए ही घातक साबित हो रहे हैं। कोरोना वायरस भी मानव द्वारा प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ का ही परिणाम था।
जब मानव ने अपनी भूख को खत्म करने के लिए जंगली व वन्य प्राणियों को अपने भोजन में सम्मिलित करने का दुस्साहस किया तो वह यह भूल गया कि कहीं जाने-अनजाने में यही जंगली जानवर उसके जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभर सकते हैं। यही मानव की सबसे बड़ी भूल आज वैश्विक स्तर पर मानव के अस्तित्व को समाप्त करने को उतारू दिख रही है। कुछ ऐसा ही परिदृश्य कोरोना वायरस के उद्भव में भी देखने को मिलता है। कोरोना वायरस के उत्पन्न होने का तथ्य यह है कि यह वायरस चमगादड़ों तथा जंगली जानवरों के सेवन करने के कारण मानव में आया और काफी हद तक यह सत्य भी साबित हुआ है, तो ऐसे में मानव को यह सबक प्रकृति ने जरूर सिखाया है कि यदि प्रकृति के साथ अवैध छेड़छाड़, अप्राकृतिक चीजों का सेवन व दिनचर्या को अपनाएंगे तो स्वतः ही एक दिन नष्ट हो जाएंगे। भारत के मानचित्र पर कभी हिमाचल प्रदेश जैसे प्राकृतिक संपदा से समृद्ध राज्य स्वच्छ हवा, ऋषि-मुनियों की तपोभूमि तथा देवभूमि की उपमा से विश्वविख्यात थे, लेकिन वर्तमान समय में यह पावन धरा भी प्रदूषण की चपेट में आ चुकी है। हिमाचल के 6 शहर बुरी तरह से प्रदूषण की चपेट में आ चुके हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी क्षेत्र में भी प्रदूषण बेलगाम होता जा रहा है। पर्यावरण दिवस के दिन सोशल मीडिया तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पोस्टर, वॉलपेपर, स्लोगन्स, चुटकुले तथा कविताओं के माध्यम से पर्यावरण को जागरूक करने वाले अनेकों संदेश मिल जाते हैं, लेकिन कुछ ही दिनों में यह सब कुछ ईद का चांद हो जाता है। इस आदत को बदलना होगा। हमें निरंतर पर्यावरण को बचाने का प्रयास करना होगा। यदि पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तभी मानव धरा पर अपना जीवन-यापन सुख-समृद्धि से कर पाएगा। सभी भारतीय शपथ लें कि वे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।
कर्म सिंह ठाकुर
लेखक सुंदरनगर से हैं

सोर्स- divyahimachal


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