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- पर्यावरण की गरिमा को...

भारत की सभ्यता व संस्कृति में पृथ्वी को मां माना गया है। प्रकृति मानव की पालक-पोषक व जननी है। विकास व आधुनिकता की अंधी दौड़ में आज के मानव ने प्रकृति की गरिमा व उसके वजूद को खतरे में डाल दिया है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के खतरों का हम साक्षात सामना भी कर रहे हैं। अचानक से मौसम में अनेकों परिवर्तन देखने को मिल रहे हंै। नदियां, झरने, ग्लेशियर, कुएं व सुंदर सुशील गगनचुंबी पर्वत श्रृंखलाएं धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही हंै। आज हमें प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों में जाना पड़ता है, जहां पर मानव की क्रियाएं प्रभावी न रही हों। ऐसी परिस्थितियां मानव ने उस पृथ्वी के साथ की हैं जिसे हम मां मानते थे। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का एक अमर वाक्य 'मानव ने चंद्रमा पर कदम रख दिए, लेकिन धरती पर जीना नहीं सीख पाया' आज जिस तरह से पर्यावरण का हनन मानव द्वारा किया जा रहा है, यह आने वाली हमारी पीढि़यों के जीवन के लिए अंधकारमय भविष्य को उजागर कर रहा है। हर वर्ष की भांति 5 जून को दुनिया में अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 'केवल एक पृथ्वी' थीम के साथ पर्यावरण दिवस को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। लेकिन दो-चार दिनों में ही हमारे पर्यावरण संरक्षण के सारे वायदे व स्वप्न अपने जीवन की भागदौड़ में लीन हो जाएंगे। विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने के पीछे संयुक्त राष्ट्र संघ का गहन चिंतन व भविष्योन्मुखी विजन था, लेकिन धरातल पर सही ढंग से पर्यावरण के संरक्षण की गरिमा मानव की आदतों का हिस्सा नहीं बन पाई है। पर्यावरण दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने और उन्हें संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
सोर्स- divyahimachal
