सम्पादकीय

मरमर्स: कई विधाओं का समुच्चय

Rani Sahu
25 Jun 2022 11:25 AM GMT
मरमर्स: कई विधाओं का समुच्चय
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साहित्य को खांचों में डालने का प्रयास किया जाता है

डॉ. विजय शर्मा

सोर्स- अमर उजाला
साहित्य को खांचों में डालने का प्रयास किया जाता है। मगर जैसे व्याकरण भाषा के पीछे चलता है वैसे ही विधाएं साहित्य के बाद आती हैं। अत: कई बार साहित्य को परम्परागत ढ़ांचे में बांधना संभव नहीं होता है। अक्सर रचना साहित्यिक विधा के ताने-बाने, बने-बनाए फ़ार्मूले को तोड़ कर आगे निकल जाती है। कभी-कभी वह विधाओं का सम्मिश्रण होती है और पता नहीं चलता है इसे किस खाते में डाला जाए। शायद इसके लिए विधा की किसी नई संज्ञा की आवश्यकता होती है और इसी तरह विधाओं का विस्तार भी होता है। अमिताव नाग की किताब 'मरमर्स: साइलेंट स्टील्स विथ सौमित्र चैटर्जी' कई विधाओं का समुच्चय है। इसे आप किसी एक विधा में नहीं समेट सकते हैं।
बांग्ला तथा इंग्लिश भाषा पर समान अधिकार
जैसाकि नाम से स्पष्ट है यहां फुसफुसाहट है, चरमराहट है, सरसराहट है। बीच-बीच में कलरव भी है। और यह सब अमिताव नाग ने चुराया है सौमित्र चैटर्जी के साथ। कई बार नाग ने चैटर्जी के एकांत-अंतर में सेंध लगाई है और वहाँ से कुछ नायाब चुरा लाए हैं। ये चुराई बातें वे छिपा कर नहीं रखते हैं, अपने तक सीमित नहीं रखते हैं। जाहिर है सारा नहीं मगर उसमें से कुछ फ़ुसफ़ुसाहट अपनी किताब की शक्ल में पाठकों के साथ साझा करते हैं। अमिताव नाग एक स्वतंत्र लेखक हैं जिनका बांग्ला तथा इंग्लिश भाषा पर समान अधिकार है। इंग्लिश में उनका कविता संग्रह 'फ़ोरएवर मीरा' (2020) प्रकाशित है। कविताओं के साथ वे कहानियां भी लिखते हैं। उन्होंने अनुवाद कार्य किया है।
सौमित्र चैटर्जी की बांग्ला कविताओं का उनके द्वारा किया गया अनुवाद 'वॉकिंग थ्रू द मिस्ट' (2020) नाम से प्रकाशित है। इन्हीं अनुवादों के चक्कर में वे कई बार चैटर्जी से मिले और उन्होंने इसी बातचीत, इस दौरान फ़ैली खामोशी को 'मरमर्स' में पिरोया है। पहली दृष्टि में यह सब बेतरतीब लग सकता है मगर इनकी एक आंतरिक लय है।
पिछले बीस सालों से अमिताव नाग ने सिनेमा पर भी कलम चलाई है, जिसमें से कुछ काम किताब के रूप में प्रकाशित है। 'द सिनेमा ऑफ तपन सिन्हा: एन इंट्रोडक्शन' उनकी ऐसी ही एक किताब है। इसी किताब के कारण मेरे पटल 'सृजन संवाद' पर उनका आना हुआ। इसके अलावा सत्यजित राय पर उन्होंने 'सत्यजित राय'स हीरोज एंड हिरोइन्स' किताब लिखी। सौमित्र चैटर्जी के वे घोर प्रशंसक हैं, 'बियॉन्ड अपु: 20 फ़ेवरेट फ़िल्म्स ऑफ़ सौमित्र चैटर्जी' उनकी एक किताब का नाम है। सिनेमा से जुड़ी उनकी अन्य किताबें हैं, 'स्मृति सत्ता ओ सिनेमा' तथा '16 फ़्रेम्स'। वे 2001 से प्रारंभ हुई 'सिल्हुट' नामक सिने-पत्रिका के संस्थापक सदस्य तथा वर्तमान में उसके संपादक हैं।
किताब पर एक नजर
आइए देखें अमिताव नाग अपनी किताब 'मरमर्स' में हमें क्या बता रहे हैं। वे इसमें अपनी और सौमित्र चटर्जी दोनों की बात कर रहे हैं। सौमित्र चटर्जी अपनी रूचियाँ, अपने पसंदीदा लोगों, अपने भय, अपनी चिंताओं के बारे में बता रहे हैं। नाग अपने भय मिश्रित आदर, अपने मन में अभिनेता के प्रति प्यार-सम्मान, कविता से अपने लगाव की बात कर रहे हैं। अमिताव नाग ने अभिनेता के विभिन्न मूड को पकड़ा है। ये सारी बातचीत साक्षात्कार विधा के अंतर्गत नहीं रखी जा सकती है। बहुत सारी बात स्व-कथन है, जिसे नाटक की भाषा में पात्र के मन में चल रही वार्ता, मोनोलॉग के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यहां संवाद हैं, एकालाप है, फ़ुसफ़ुसाहट है और बहुत कुछ है। छोटे-छोटे 20 अध्यायों में बँटी इस रचना की छोटी-सी भूमिका लिखी है प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल ने।
वे लिखते हैं, 'यह महान अभिनेता की अनोखी तस्वीर (पोर्ट्रेट) है। आप उन्हें अतिविशिष्ट अंतरंग फ़ैशन में सुनते, जानते हैं।...' उन्हें सौमित्र को अपनी फिल्म में निर्देशित न कर पाने का अफसोस है, कारण सौमित्र का हिन्दी भाषा न जानना था और सौमित्र चैटर्जी डबिंग के लिए राजी न थे। बेटे आकाश और सौमित्र चैटर्जी को समर्पित इस किताब की भूमिका में श्याम बेनेगल लिखते हैं, 'जब आप सौमित्र चैटर्जी के इन चिंतन को पढ़ना समाप्त करते हैं, तो ऐसा है मानो आप किसी करीबी मित्र को सुन रहे थे, लगभग हमराज की तरह।' इसमें दो राय नहीं कि बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न नाटक-सिने अभिनेता सौमित्र चैटर्जी का व्यक्तित्व सम्मोहक है।
सौमित्र चटर्जी का फ़िल्म में पदार्पण
मेरे सिने अध्ययन-जीवन में भी अभिनेता सौमित्र चटर्जी का प्रवेश बहुत नाटकीय ढ़ंग से हुआ। गेरुआ वस्त्र और गेरुआ शाल ओढ़े हुए, लोगों के कंधे पर सवार मंच की ओर आते हुए सौमित्र चटर्जी का फिल्म में पदार्पण होता है। उसके साथ आ रहे लोग और उसकी प्रतीक्षा में सभा में बैठे हुए लोग जोर-जोर से 'वंदे मातरम्' का नारा लगा रहे हैं। आज सिने-प्रेमियों को मालूम है यह सत्यजित राय की फ़िल्म 'घरे बाइरे' का दृश्य है। चमकती, भावप्रवण-स्वच्छ-उत्सुक, प्रेममयी आँखें, कुलीन उच्च नासिका, गौर वर्ण तथा युवा गढ़ा हुआ सौम्य चेहरा।
यह लंबा युवक मंच पर आता है फ़िर जोशीला भाषण देता है। वह अपने भाषण में लॉर्ड कर्जन की बंग-भंग नीति का कच्चा चिट्ठा खोलता है। चाहता है जनता उसके साथ इसके विरुद्ध आंदोलन करे, स्वदेशी अपनाए। उसका यह उत्तेजनापूर्ण भाषण नायिका बिमला के साथ उस घर की स्त्रियां जालीदार छज्जे से देख-सुन रही हैं। नायिका के साथ मैं भी इस रोमांटिक तथा गरिमामय प्रतिनायक के सम्मोहन में पड़ गई। बाद में उनकी कई फ़िल्में देखी, उन पर और उनकी फिल्मों पर लिखा।
आश्चर्य नहीं कि नाग भी उनके व्यक्तित्व से मोहित हैं साथ ही पहले उनके मन में इस 'लार्जर दैन लाइफ' व्यक्ति के प्रति थोड़ा आदर मिश्रित भय यानि श्रद्धा थी। जिसे वे 'लेटर्स एंड इंटरव्यूज' में वर्णित करते हैं। वे उस समय की बात कर रहे हैं जब पत्र लिखना, उसे पोस्ट बॉक्स में डालना और पत्र पहुंचने और पढ़े जाने की आशा-निराशा में लोग झूलते थे। तो उस समय नाग ने एक नहीं दो पत्र लिखे अपने प्रिय अभिनेता को और संकोच मिश्रित कांपते हाथों से उन्हें लाल बेलनाकार डिब्बे में डाला। यह दीगर है कि उन्हें कोई उत्तर न मिला।
6 दशक तक अभिनय
सौमित्र चैटर्जी एक अभिनेता रहे हैं इसके साथ वे बहुत एकांतप्रिय हैं। सत्यजित राय की 'अपुर संसार' से प्रारंभ कर तकरीबन छ: दशक उन्होंने अभिनय किया। सत्यजित राय उन्हें फ़िल्मों में ले कर आए शायद ही कोई दिन जाता था जब वे राय के विषय में नहीं सोचते थे। चैटर्जी के अनुसार उन्होंने राय से एक्टिंग के गुर से अधिक कई अन्य बातें सीखीं। राय ने उनके व्यक्तित्व निर्माण, उनके सौंदर्य आस्वाद, उनकी बुद्धि को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
वे राय को अपना मेंटर मानते थे। इसी गुण सम्पन्न अद्भुत प्राणी के मन-मस्तिष्क को नाग ने अपनी इस किताब में उकेरा है। यह सीधे-सीधे जीवनी नहीं है। इसे पढ़ते हुए हम अभिनेता की सर्वोत्कृष्टता की चाह को देखते हैं। टैगोर अपनी ढ़लती उम्र में चित्रकला की ओर मुड़े चैटर्जी चित्रकला में टैगोर को अपनी प्रेरणा मानते हैं। उन्हें टैगोर की कविता पाठ में महारत हासिल थी और वे स्वयं कविता करते थे और यही कविता नाग और उनके बीच समीपता की कड़ी बनी। कविता पर विचार-विमर्श इस किताब 'मरमर्स' का उत्स है।
सत्यजित राय और रवींद्रनाथ टैगोर के प्रशंसक सौमित्र को फ़ुटबाल और क्रिकेट से भी प्रेम था वे पेले, गैरी सोबर्स और सचिन तेन्दुलकर के प्रशंसक थे। सचिन की विनम्रता और शील के वे कायल थे। अभिनय के क्षेत्र में वे किसी बंगाली अभिनेता के नहीं वरन हिन्दी सिनेमा के बलराज साहनी और नसीरुद्दीन के अभिनय की तारीफ़ करते हैं। यहां हम जितना सौमित्र के विचारों को पाते हैं, वहीं हमें नाग के भीतर चल रहे चिंतन-मनन का ज्ञान भी होता है।

कविता के कारण दोनों के बीच सख्य भाव पनपता है, नाग के मन में इस सख्य भाव में आदर प्रमुख है और अंतत: चैटर्जी अपनी इच्छा व्यक्त करते हैं कि नाग उनकी कविताओं का अनुवाद करें। लंबे विमर्श के बाद वे तीन शब्द कहते हैं, 'तुम क्यों नहीं?' जो आगे चल कर 'वॉकिंग थ्रू द मिस्ट' में फ़लित हुआ। नाग अपने नायक से तमाम प्रश्न पूछते हैं मगर कभी भी उनसे उनके निजी जीवन के विषय में कोई प्रश्न नहीं पूछते हैं। इसका एक कारण सौमित्र के एक कथन लगता है, 'अमिताव, मैं तुम्हारी उम्र जी चुका हूँ।'
अनुभव के धनी
सौमित्र चैटर्जी नाग की उम्र से ईर्ष्या नहीं करते हैं वे बस बता रहे हैं कि उनके पास नाग से अधिक अनुभव है। जब सौमित्र के बच्चे छोटे थे वे बहुत सावधान रहते। कोई ऐसा काम नहीं करते जिससे उनके बच्चों के मन में पिता के लिए आदर कम हो या आदर करने में उन्हें द्विविधा हो। सौमित्र के शब्दों में, 'अगर कोई कीमत नहीं है, तब मैं यहां क्यों हूं' इतना ही नहीं मैं अपना कर्ज कैसे चुका सकता हूँ। जिंदगी ने जो इतना सारा ऐश्वर्य मुझ पर बरसाया है, अगर मैं इसका एक छोटा हिस्सा नहीं चुकाता हूँ, अंत तक अपराध का भाव मुझसे रिसता रहेगा।' ऐसे व्यक्ति हैं सौमित्र।
इन अनोखे, अनौपचारिक साक्षात्कारों का सिलसिला काफ़ी लम्बा, करीब दो साल चला। इनमें सौमित्र उत्तर देने से अधिक आत्म-निरीक्षण में संलग्न हैं। उनका आत्म-चिंतन मौन न हो कर मुखर है। इसी कारण कभी वे बहुत दावे के साथ अपनी बात कहते हैं और कभी बहुत स्पष्ट नहीं हैं, द्विचित्ते हैं। अमिताव नाग अपनी शुरुआत में ही सौमित्र की तुलना एक महावृक्ष से करते हैं। महावृक्ष जिससे उन्हें कालातीत, शाश्वत होने का बोध होता है। नाग के लिए पेड़ गुरुत्वाकर्षण, संतुलन, शांति, विस्तार, सरसराहट का पर्याय है। कैथरीन बर्ज ने बहुत पहले सौमित्र चैटर्जी पर 'गाछ' (वृक्ष, पेड़) नाम से डॉक्यूमेंट्री बनाई है।
पाठकों से अनुभव किया साझा
इसी सिलसिले में नाग अपने सिने-पत्रकार होने का अनुभव पाठकों से साझा करते हैं। असल में नाग अपने कॉलेज के दिनों से यूरोपियन तथा इंटरनेशनल सिनेमा में सिने-समीक्षक के रूप में जुड़े रहे हैं। हालाँकि वे कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में विज्ञान पढ़ रहे थे। 'ट्री', 'टेंशन', 'वाटर', 'केयर', 'पेन', 'एक्टिंग', 'मेकअप', 'रिजेक्शन', 'सिगरेट्स', 'सेचुरेशन', 'फ़ियर ईट्स द सोल', 'होराइजन', 'फ़ादर' कुछ अन्य अध्याय हैं और हाँ, 'नो वन इस्केप्स डेथ' भी है। इसी से बातचीत के दायरे को समझा जा सकता है। नाग इसे जीवनी नहीं मानते हैं, मगर उन्होंने चैटर्जी के जीवन से जुड़े कई प्रश्न पूछे हैं। यहाँ जीवन पर चिंतन-मनन मिलता है।
ब्लू पेंसिल पब्लिशर्स डॉट कॉम से प्रकाशित यह पुस्तिका दो भिन्न आयुवर्ग के लोगों के बीच का संवाद है साथ ही उनका अपना एकालाप भी है, स्वगत कथन भी। दोनों के अनुभव भिन्न हैं, दोनों के काम भिन्न हैं, दोनों का नाम-प्रसिद्धि भिन्न है। यदि दोनों को कुछ जोड़ता है तो वह है कविता। इसमें शक नहीं कि इस पुस्तिका का प्रतिपाद्य सौमित्र चैटर्जी हैं। नाग ने उन्हें इस वार्तालाप के लिए प्रेरित किया है और चैटर्जी इसमें पूरे मन से शामिल हुए हैं।
कवर डिजाइन प्रकाशक ने ही तैयार किया है जिसका रंग संयोजन, चित्र, शीर्षक, वर्तनी सब आकर्षक है। बैक कवर का फ़ोटो बहुत प्यारा है। साथ ही भीतर के फोटो अभिनेता चैटर्जी की अभिनय यात्रा के विभिन्न पड़ाव को दरशाते हैं। इस मौन-मुखर वार्तालाप से गुजरना मेरे लिए काफ़ी सुखद रहा। प्रचलित साहित्यिक विधाओं को तोड़ती, साहित्य विधा का विस्तार करती पुस्तिका 'मरमर्स: साइलेंट स्टील्स विथ सौमित्र चैटर्जी' रोचक है।


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