सम्पादकीय

हत्या और सवाल

Subhi
31 May 2022 5:08 AM GMT
हत्या और सवाल
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पंजाबी गायक और कांग्रेस नेता शुभदीप सिंह सिद्धू उर्फ सिद्धू मूसेवाला की हत्या ने राज्य सरकार को सवालों के घेरे में ला दिया है। यह वारदात कानून व्यवस्था की हालत तो बता ही रही है

Written by जनसत्ता: पंजाबी गायक और कांग्रेस नेता शुभदीप सिंह सिद्धू उर्फ सिद्धू मूसेवाला की हत्या ने राज्य सरकार को सवालों के घेरे में ला दिया है। यह वारदात कानून व्यवस्था की हालत तो बता ही रही है, उससे भी बड़ा सवाल राज्य सरकार के हाल के उस फैसले पर खड़ा हो गया है जिसमें सरकार ने अचानक से चार सौ ज्यादा महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा वापस ले ली। यह घटना गंभीर इसलिए भी है कि इसके तार कनाडा और आर्मेनिया में बैठे अपराधियों से जुड़े होने की बातें सामने आई हैं।

इससे तो लग रहा है कि पंजाब गैंगवार के चंगुल में फंस गया है और इसमें लिप्त अपराधी दूसरे देशों में बैठ कर ऐसे हत्याकांडों को अंजाम दे रहे हैं। सिद्धू मूसेवाला की हत्या की जिम्मेदारी गैंगस्टर लारेंस विश्नोई और कनाडा में बैठे उसके साथी गोल्डी बराड़ ने ली है। हालांकि सरकार ने घटना की जांच हाईकोर्ट के मौजूदा जज से कराने का एलान किया है। इस काम में केंद्रीय जांच ब्यूरो व राष्ट्रीय जांच एजंसी की मदद लेने की बात कही है। इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि घटना के पीछे का सच सामने आएगा।

सिद्धू मूसेवाला पर जिस तरह से हमला हुआ, उससे लगता है कि वारदात को अंजाम देने की तैयारी पहले से रही होगी और हत्यारे सिर्फ मौके की तलाश में होंगे। जैसे ही सरकार ने महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा में कमी करने या हटाने का कदम उठाया, सिद्धू मूसेवाला के पीछे पड़े लोगों को मौका मिल गया। हालांकि जैसा बताया गया है कि सिद्धू मूसेवाला को अभी भी दो सुरक्षाकर्मी मिले हुए थे, जबकि पहले चार थे। जैसा कि उनके पिता बलकौर सिंह ने पुलिस में दर्ज शिकायत में बताया कि हत्या से ठीक से पहले जब सिद्धू अपने घर से निकले, तब उनके साथ दोनों सुरक्षाकर्मी नहीं थे, न ही उन्होंने बुलेटप्रूफ जैकेट पहनी थी। यह जांच का विषय है कि आखिर वे बिना सुरक्षाकर्मियों के अचानक घर से कैसे निकल गए?

इसमें कोई संदेह नहीं कि पंजाब अभी भी बेहद संवेदनशील राज्य है। इसे खतरा सिर्फ सीमापार आतंकवाद और खालिस्तानी अलगाववादियों से नहीं है, बल्कि नशे के कारोबारियों और गैंगवार से जुड़े अपराधियों का भी यहां दबदबा है। गौरतलब है कि राज्य में पिछले चार साल में गैंगवार में आठ लोगों की हत्या हो चुकी है और चौंकाने वाली बात यह कि इन सभी की साजिश कनाडा और आर्मेनिया में रची गई थी। पर लगता है कि सरकारें सोती रहीं। जिस राज्य में ऐसे दहला देने वाले अपराध होते रहें, नशे के कारोबारी सक्रिय हों, खालिस्तानी गुटों और आतंकवाद का खतरा हो, वहां जाहिर है राजनीति करने वालों की जान को भी खतरा कम नहीं होगा।

डेरों में संघर्ष और हिंसा की घटनाएं भी छिपी नहीं हैं। ऐसे में चार सौ से ज्यादा उन लोगों, जिनकी जान को हमेशा खतरा हो, की सुरक्षा वापस लेने या उसमें कटौती करने के फैसले पर सवाल उठना स्वाभाविक है। पंजाब में जिन लोगों की सुरक्षा वापस ली गई है, उनमें विधायक, पुलिस अधिकारी, डेरों के मुखिया आदि भी शामिल हैं। यह सही है कि ऐसे लोगों की सुरक्षा पर खर्चा मामूली नहीं होता और यह पैसा करदाताओं का ही होता है। इसलिए इसे लेकर भी सवाल उठते ही रहे हैं। पर लगता है कि पंजाब सरकार ने ऐसे लोगों की सुरक्षा को लेकर खतरे के स्तर को कहीं न कहीं नजरअंदाज कर दिया। लगता यह भी है कि इतनी जल्दबाजी में सरकार ने यह कदम कहीं सिर्फ सुर्खियां बटोरने के लिए ही तो नहीं उठाया, जिसका नतीजा सिद्धू मूसेवाला की हत्या के रूप में सामने आया।


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