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- एक तीर से कई निशाने?
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कुछ वर्ष पहले यह कल्पना से भी बाहर था कि अगर किसी राज्य में कई दिनों तक लगातार हिंसा जारी रहने पर किसी पत्रकार ने कड़ी टिप्पणी कर दी
लोकतंत्र में अगर ऐसी टिप्पणियों में अतिशयोक्ति हो, तब भी उन्हें अपेक्षित और उचित माना जाता है, क्योंकि उससे प्रशासन पर स्थिति को सुधारने के लिए दबाव बनता है। मीडिया का असल दायित्व ही यह है कि वह सच को सामने लाए और इस तरह अधिकारियों को जवाबदेह बनाने में सहायक बने।
कुछ वर्ष पहले यह कल्पना से भी बाहर था कि अगर किसी राज्य में कई दिनों तक लगातार हिंसा जारी रहने पर किसी पत्रकार ने कड़ी टिप्पणी कर दी, तो उसके खिलाफ उस कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया जाएगा, जिसे आतंकवादियों से निपटने के लिए बनाया गया था। लेकिन ऐसा अब आम बात होती जा रही है। ताजा मामला यह है कि पिछले महीने त्रिपुरा में अगर कई दिनों तक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ हिंसा चलती रही। उस पर दिल्ली स्थित एक पत्रकार ने अपने ट्विट में कह दिया कि त्रिपुरा इज बर्निंग। यानी त्रिपुरा जल रहा है। उस पर त्रिपुरा पुलिस ने गैर-कानूनी गतिविधि निवारक कानून (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज कर लिया। उसके अलावा भी 101 लोगों पर सोशल मीडिया पर त्रिपुरा की खबरों को शेयर करने या उन पर टिप्पणी करने के आरोप में यही धारा लगा दी गई है।
जबकि लोकतंत्र में अगर ऐसी टिप्पणियों में अतिशयोक्ति हो, तब भी उन्हें अपेक्षित और उचित माना जाता है, क्योंकि उससे प्रशासन पर स्थिति को सुधारने के लिए दबाव बनता है। मीडिया का असल दायित्व ही यह है कि वह सच को सामने लाए और इस तरह अधिकारियों को जवाबदेह बनाने में सहायक बने। मगर मौजूदा शासन में हर कुछ समय पर किसी ना किसी मामले में ट्विट या सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वाली टिप्पणियों को लेकर कानूनी कार्रवाई की खबर आ जाती है। आखिर सरकार का ये नजरिया क्यों है? क्या वह ऐसा करके अपने लिए असहज सूचना के तमाम माध्यमों को प्रतिबंधित करना चाहती है? या वह ये कार्रवाई करके अपने समर्थक वर्ग में अपनी मजबूती का संदेश देना चाहती है? त्रिपुरा के संदर्भ में ऐसी कार्रवाई से समर्थक वर्ग को इस बात का संतोष जरूर मिल सकता है कि एक समुदाय विशेष को वहां 'ठीक कर दिया गया है'। साथ ही उनके पक्ष में आवाज उठाने वालों को भी ठिकाने लगाया जा रहा है। इन कार्रवाइयों के पीछे एक मकसद इस बात की भी लगातार पुष्टि करते रहना हो सकता है कि आज की सरकार की राजनीतिक विचारधारा से जो लोग सहमत हैं, सिर्फ वही राष्ट्र प्रेमी हैं। बाकी लोग संभल जाएं और यह मान लें कि अब भारतीय परिवेश में उनके लिए खुलेआम कुछ कहने की गुंजाइश नहीं रह गई है।
नया इण्डिया
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