सम्पादकीय

इस सत्र की अनेक मुद्राएं

Gulabi
10 Dec 2021 5:19 AM GMT
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जब कभी तपोवन विधानसभा परिसर में सत्र का आयोजन होगा हिमाचल के राजनीतिक शिल्पकार

Divyahimachal.

जब कभी तपोवन विधानसभा परिसर में सत्र का आयोजन होगा हिमाचल के राजनीतिक शिल्पकार, वीरभद्र सिंह याद आएंगे। आज से आहूत विधानसभा सत्र भले ही इसकी मकदार में छोटा है, लेकिन जिस विशालता से पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कांगड़ा जिला को यह मुकुट पहनाया, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसी तर्ज पर कांग्रेस के मुददे, मसले और सियासी मकसद, विधानसभा सत्र के आगाज को अंजाम तक पहुंचाने की करवटें लेंगे। पिछली सरकार के जिन वादों से वर्तमान सरकार मुकर गई या जिस हालात में विकास के पहिए क्षेत्रवाद की सौगात ढोते रहे, उनके कुछ चि_े खुलेंगे। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार के संबोधन अपने ही आंकड़ों से मेलजोल करेंगे, तो विपक्ष के श्वेत पन्नों पर अंकित पड़ताल का जिक्र भी होगा। सरकार के पास प्रदेश में सौ फीसदी वैक्सीनेशन का आंकड़ा है, तो एम्स, पीजीआई सेटेलाइट सेंटर की बुनियाद का जश्न भी रहेगा। घोषणाओं के कई अपवाद और घोषणाओं के कसूरवार जब आपस में मुकाबला करेंगे, तो विपक्ष भी अपनी रिक्तियां भरेगा। कांग्रेस के लिए यह सत्र जुबान और जायदाद का भी है, क्योंकि सदन के भीतर जो बोला जाएगा उसे बाहर राजनीतिक संपत्ति के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

अंतिम वर्ष में सत्ता के लिए अपने ही निष्कर्षों से युद्ध और पैरवी में वे तमाम इश्तिहार जो बेडिय़ां पहनकर चल रहे हैं। यानी सदन में इस बार विधायकों की शिनाख्त में अगर कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है या पार्टी का एक सदस्य बढ़ गया है, तो इस लम्हे और लहजे में विपक्ष के कठघरे में सत्ता की चमक तो रहेगी ही। चार उपचुनावों में सत्ता की हार के कारण चाहे कांग्रेस की जीत की वजह न हों, फिर भी चुनावी अभियान की चुगली में सत्र तपेगा जरूर। महंगाई की डायन उपचुनावों से चलकर विधानसभा सत्र तक को अपना हाल बताएगी तो कानून व्यवस्था के छिलकों पर फिसलने का माहौल विपक्ष पैदा करेगा। बेशक चुनावी हार के बाद भाजपा ने न संगठन और न ही सरकार के किसी ओहदे को ताबूत में बंद किया, लेकिन इससे कांगे्रस का आत्मबल तो सामने आएगा ही।
सरकार ने उपचुनावों के बाद अपनी गति को विस्तार देते हुए कई विधानसभा क्षेत्रों में उपचार शुरू किया है, तो करोड़ों के वादे-दावों के बीच कुछ उद्घाटन व कुछ शिलान्यास करके जो चमक पैदा की जा रही है, उसका उल्लेख भी तो होगा। इसी दौरान जेसीसी बैठक से निकला घोषणापत्र सरकार को कहने के लिए उच्च स्थान देता है। आखिर इसी साल 7500 करोड़ का हिसाब-किताब करते हुए वह कर्मचारियों को अंतिम चुग्गा दे रही है, तो बजट से बड़ी खैरात का कुछ तो असर होगा। यह दीगर है कि कांग्रेस अपनी विपक्षी भूमिका में यह चिंता करेगी कि राज्य की बजटीय कंगाली के लिए अनावश्यक ऋण क्यों लिया जा रहा या यह भी कि आर्थिक सुधारों की शून्यता पर फिजूलखर्ची का आलम क्यों। शीतकालीन सत्र के दौरान भागते अनेक आंदोलन अगर तपोवन पहुंच रहे हैं, तो विपक्ष की भाषा में इनका प्रतिनिधित्व होगा और सवाल सदन तक पहुंचते हुए सवर्ण आयोग के गठन या पुलिस जवानों के पे बैंड तक पूछे जा सकते हैं।
जाहिर है सत्ता का कांगड़ा आगमन एक वार्षिक परीक्षा है और इस रिवायत की पलके खुलते ही वीरभद्र याद आएंगे। इस बार सदन में वीरभद्र सिंह को स्मरण करते विषय होंगे, लेकिन जिन विषयों को लेकर वीरभद्र सिंह ने तपोवन के अस्तित्व में प्रदेश का राजनीतिक-आर्थिक संतुलन शिमला से धर्मशाला तक जोड़ा था, वह लावारिस क्यों है। धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा कांगड़ा की घोषित योजनाओं-परियोजनाओं पर सन्नाटा या केंद्रीय विश्वविद्यालय के अस्तित्व की खामोशी को लेकर प्रश्र तो पूछने होंगे। पूछना यह भी होगा कि वित्तायोग से धन प्राप्त करके भी कांगड़ा एयरपोर्ट का विस्तार क्यों अटक गया। कांगड़ा-शिमला और कांगड़ा-मंडी फोरलेन के अलावा पठानकोट-मंडी रेल लाइन का ब्रॉडगेज होना क्यों पहेली बन चुके हैं। ऊना से हमीरपुर रेल लाइन, धर्मशाला से राष्ट्रीय खेल छात्रावास, नादौन स्पाइस पार्क, धर्मशाला आईटी पार्क व पौंग पर्यटन परियोजनाएं कहां चली गईं, लेकिन सबसे बड़ा प्रश्र तो यही कि क्या पांच दिवसीय सत्र इस हालात में होगा भी कि प्रश्र उठ जाएं। इतनी कम अवधि के सत्र को दो हफ्ते का विस्तार देने की जरूरत पर अगर पक्ष-प्रतिपक्ष, अपना-अपना औचित्य बढ़ा लें, तो यह पहल सार्थक होगी। कांग्रेस के भीतर वीरभद्र सिंह की रिक्तता के बाद सदन में एकजुटता, आपसी संवाद-तालमेल और सत्ता को घेरते नेताओं को सुनना, इस बार नई ऊर्जा से मुखातिब होगा।
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