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इन दिनों देश और दुनिया में भारत में बहुआयामी गरीबी के घटने से संबंधित दो रिपोर्टें गंभीरतापूर्वक पढ़ी जा रही हैं। एक, नीति आयोग द्वारा 17 जुलाई को जारी की गई राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) प्रगति समीक्षा रिपोर्ट 2023 और दो, 11 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) के द्वारा वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) की रिपोर्ट 2023। ये दोनों रिपोर्टें भारत में बहुआयामी गरीबी घटने का सुकूनदेह परिदृश्य प्रस्तुत करते हुए दिखाई दे रही हैं। गौरतलब है कि नीति आयोग के द्वारा जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में बहुआयामी गरीब लोगों की हिस्सेदारी वर्ष 2015-16 के 24.85 फीसदी से घटकर वर्ष 2019-21 में 14.96 फीसदी हो गई है। यह सूचकांक आय गरीबी के आकलन की पूरक है। यह सूचकांक स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में सुधार को बताता है, जो इसके सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के अनुरूप है। इसके तहत पोषण, बाल एवं किशोर मृत्युदर, खाना बनाने में उपयोग होने वाले ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, मांओं के स्वास्थ्य, स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति जैसे आधारभूत संकेतक शामिल हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत एसडीजी लक्ष्य 1.2 प्राप्त करने की राह पर निकल गया, जिससे वर्ष 2030 के लिए तय की गई मियाद से बहुत पहले बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधा करने में मदद मिलेगी। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बहुआयामी गरीबों के अनुपात में सबसे अधिक कमी उत्तरप्रदेश में देखी गई, जहां 3.43 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हंै।
इसके बाद बिहार में 2.25 करोड़, मध्यप्रदेश में 1.35 करोड़, राजस्थान में 1.08 करोड़ और पश्चिम बंगाल में 92.6 लाख लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। उल्लेखनीय है कि यूएनडीपी की रिपोर्ट 2023 में कहा गया कि भारत में पिछले 15 वर्षों में गरीबी में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है। भारत में 2005-2006 से 2019-2021 के दौरान कुल 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। 2005-2006 में जहां गरीबों की आबादी 55.1 प्रतिशत थी वह 2019-2021 में घटकर 16.4 प्रतिशत हो गई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2005-2006 में भारत में लगभग 64.5 करोड़ लोग गरीबी की सूची में शामिल थे, यह संख्या 2015-2016 में घटकर लगभग 37 करोड़ और 2019-2021 में कम होकर 23 करोड़ हो गई। खास बात यह है कि भारत में सभी संकेतकों के अनुसार गरीबी में गिरावट आई है। सबसे गरीब राज्यों और समूहों, जिनमें बच्चे और वंचित जाति समूह के लोग शामिल हैं, ने सबसे तेजी से प्रगति हासिल की है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में पोषण संकेतक के तहत बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोग 2005-2006 में 44.3 प्रतिशत थे जो 2019-2021 में कम होकर 11.8 प्रतिशत हो गए। इस दौरान और बाल मृत्यु दर 4.5 प्रतिशत से घटकर 1.5 प्रतिशत हो गई। रिपोर्ट के अनुसार जो खाना पकाने के ईंधन से वंचित गरीबों की संख्या भारत में 52.9 प्रतिशत से गिरकर 13.9 प्रतिशत हो गई है।
वहीं स्वच्छता से वंचित लोग जहां 2005-2006 में 50.4 प्रतिशत थे उनकी संख्या 2019-2021 में कम होकर 11.3 प्रतिशत रह गई है। पेयजल के पैमाने की बात करें तो उक्त अवधि के दौरान बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोगों का प्रतिशत 16.4 से घटकर 2.7 हो गया। बिना बिजली के रह रहे लोगों की संख्या 29 प्रतिशत से 2.1 प्रतिशत और बिना आवास के गरीबों की संख्या 44.9 प्रतिशत से गिरकर 13.6 प्रतिशत रह गई है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत सहित 25 देशों ने भी अपने यहां गरीबों की संख्या में कमी की है। रिपोर्ट के अनुसार भारत उन 19 देशों की लिस्ट में शामिल है जिन्होंने 2005-2006 से 2015-2016 की अवधि के दौरान अपने वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) मूल्य को आधा करने में सफलता हासिल की। गौरतलब है कि डिजिटलीकरण के तहत जिस तरह आधार ने लीकेज को कम करते हुए लाभार्थियों को भुगतान के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर-डीबीटी) में मदद की है, उससे भी गरीबों का सशक्तिकरण हुआ है। भारत में वर्ष 2014 से लागू की गई डीबीटी योजना देश में गरीबी कम करने में एक वरदान की तरह दिखाई दे रही है। भारत में डीबीटी से कल्याणकारी योजनाओं के जरिए महिलाओं, बुजुर्गों और किसानों और कमजोर वर्ग के लोगों को अकल्पनीय फायदा हो रहा है। जहां कोरोनाकाल में 80 करोड़ लोगों का डिजिटल राशन प्रणाली से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत खाद्यान्न निशुल्क दिया गया, वहीं अब विगत एक जनवरी 2023 से 80 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को हर महीने खाद्यान्न निशुल्क प्रदान किया जा रहा है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत आने वाली देश की दो-तिहाई आबादी को राशन प्रणाली के तहत मुफ्त में अनाज देने की पहल दुनिया भर में रेखांकित की जा रही है। 2023 में वर्षभर गरीबों की खाद्य सुरक्षा तथा मुफ्त अनाज का वितरण गरीबी में कमी लाने का अहम उपाय दिखाई दे रहा है। वस्तुत: देश का कृषि उत्पादन देश के गरीबों और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा सहारा बन गया है। कृषि मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर के मुताबिक चालू कृषि वर्ष 2022-23 में 3305.34 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान है। जो देश में अब तक रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन है। खाद्यान्न उत्पादन वृद्धि से गरीबों का सशक्तिकरण हो रहा है। यह बात महत्वपूर्ण है कि देश में गरीबों के कल्याण के लिए लागू की गई विभिन्न सरकारी योजनाएं मसलन सामुदायिक रसोई, वन नेशन वन राशन कार्ड, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत पोषण अभियान, समग्र शिक्षा जैसी योजनाएं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी और स्वास्थ्य व भूखमरी की चुनौती को कम करने में सहायक रही हैं। निश्चित रूप से तेजी से बढ़ती खाद्यान्न कीमतों के मद्देनजर गरीबों को मुश्किलों से बचाने और खाद्य सुरक्षा की सुनिश्चितता हेतु अभी बहुत अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत बनी हुई है।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2023 में भारत 142.86 करोड़ लोगों की आबादी के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बना गया है, अतएव देश की नई आबादी के लिए रोजगार के नए अवसरों का निर्माण करना जरूरी होगा। रोजगार के ऐसे नए अवसर गरीबी नियंत्रण में सहायक होंगे। निश्चित रूप से देश में बहुआयामी गरीबी अभी भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। देश में करीब 23 करोड़ लोग अभी भी गरीब हैं। ऐसे में गरीबी, बेरोजगारी, भूख और कुपोषण खत्म करने के लिए सरकार के द्वारा घोषित नई जनकल्याण योजनाओं, स्वरोजगार योजनाओं, कौशल विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सामुदायिक रसोई व्यवस्था तथा पोषण अभियान-2 को पूरी तरह कारगर व सफल बनाया जाना होगा। मोटे अनाज का उत्पादन और वितरण बढ़ाकर देश में भूख और कुपोषण की चुनौती का सामना करके गरीबों की कार्यक्षमता बढ़ानी होगी। हम उम्मीद करें कि नीति आयोग और संयुक्त राष्ट्र की बहुआयामी गरीबी संबंधी रिपोर्टों के मद्देनजर अब भारत में केंद्र व राज्य सरकारों के रणनीतिक प्रयासों से बहुआयामी गरीबी में और कमी आएगी। ऐसे में देश के आम आदमी की कार्यक्षमता बढ़ेगी और आर्थिक कल्याण के साथ देश के विकास की रफ्तार भी बढ़ेगी।
डा. जयंती लाल भंडारी
विख्यात अर्थशास्त्री
By: divyahimachal
Rani Sahu
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