सम्पादकीय

मुलायम सिंह यादव की अपील, क्या यादव परिवार में बिखराव को रोक पाएगी

Gulabi Jagat
17 April 2022 8:06 AM GMT
मुलायम सिंह यादव की अपील, क्या यादव परिवार में बिखराव को रोक पाएगी
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मुलायम सिंह यादव की अपील
एम हसन |
समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के खिलाफ बढ़ते असंतोष को देखते हुए, सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने डैमेज कंट्रोल करने का प्रयास शुरू कर दिया है, ताकि पार्टी को एकजुट रखा जा सके और 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी सुनिश्चित की जा सके. मैनपुरी लोकसभा सीट के अपने दौरे के दौरान मुलायम सिंह यादव ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि, हार हो या जीत, सभी परिस्थिती में वे एकता बनाए रखें. उन्होंने आगे कहा कि पार्टी को न केवल अखिलेश यादव की अगुवाई में एकजुट रहना चाहिए बल्कि उनके हाथ मजबूत भी करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सभी कार्यकर्ताओं को पार्टी को और मजबूत करने की दिशा में काम करना चाहिए.
मुलायम की यह टिप्पणी, परिवार में जारी कलह और सपा विधायक शिवपाल सिंह यादव के बीजेपी में जाने की अटकलें और आजम खान खेमे में अखिलेश यादव के खिलाफ बढ़ते असंतोष के मद्देनजर आई है, और इसके जरिए मुलायम पार्टी पर नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं, साथ ही वह यादव समुदाय में विभाजन को रोकना चाहते हैं, क्योंकि बीजेपी, शिवपाल यादव के जरिए सपा के यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत में है.
मुस्लिम समुदाय के लिए भी यह संदेश हो सकता
अखिलेश के समर्थन में मुलायम की ये टिप्पणियां, मुस्लिम समुदाय के लिए भी यह संदेश हो सकता है कि उनके हित समाजवादी पार्टी के हाथों में सुरक्षित हैं. हालांकि, मुस्लिम-यादव समीकरण से आगे की सोच रखते हुए भी, मुलायम यह नहीं चाहेंगे कि उनका यादव वोट बैंक विभाजित हो.
बीते विधानसभा चुनावों में करीब 12 फीसदी यादव वोट बीजेपी के खाते में गए थे, मुस्लिम समुदाय में ऐसी आवाजें उठ चुकी हैं कि वे अपनी रणनीति बदलें, जिसमें आगामी चुनावों में बीजेपी को समर्थन देना भी शामिल है. बीते असेंबली इलेक्शन में करीब 8 फीसदी मुस्लिमों ने बीजेपी को वोट दिया था.
यादव परिवार का अंदरूनी संघर्ष
पार्टी में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए यूपी के इस प्रथम यादव परिवार में बिना किसी कायदे कानून के युद्ध चल रहा है. विधानसभा चुनाव के दौरान एक मामूली झटके, जब सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव बिष्ट बीजेपी में शामिल हुईं, के बाद मुलायम के छोटे भाई शिवपाल यादव अब भगवा ब्रिगेड में शामिल होने की तैयार में हैं. साथ ही, परिवार में जिन सदस्यों का अखिलेश यादव के साथ रिश्ता अच्छा नहीं चल रहा, उनके बीजेपी में शामिल होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
इन हालातों में, यादव परिवार में विभाजन की प्रबल संभावना के बीच, सपा यादव समुदाय पर अपनी पकड़ को लेकर चिंतित है. जब 2017 में शिवपाल यादव ने अपने भतीजे अखिलेश से अलग होकर अपनी पार्टी, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाई, तो काफी हद तक यादव समुदाय अखिलेश के साथ ही रहा. लेकिन बीजेपी की छत्रछाया में स्थिति कुछ और हो सकती है. हालांकि अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के बीजेपी में शामिल होने की योजना पर कोई भी टिप्पणी नहीं की है.
अखिलेश यादव पर आरोप, वे ही नहीं चाहते कि आजम खान जेल से बाहर आएं
पिछले हफ्ते, पार्टी के मुस्लिम नेता और आजम खान के करीबी फसाहत खान ने कहा था, "मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सही कहा था कि अखिलेश यादव ही नहीं चाहते कि आजम खान जेल से बाहर आएं." फसाहत ने ये बात रामपुर में पार्टी बैठक के दौरान की थी. हाल ही में आजम खान ने रामपुर से विधानसभा में अपनी सीट बरकरार रखने के लिए लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. उनके बेटे अब्दुल्ला आजम ने सपा के टिकट पर स्वार विधानसभा सीट जीती थी.
फसाहत खान के मुताबिक, "सपा प्रमुख आजम खान से सिर्फ एक बार जेल में मिले." यह कहते हुए कि आजम खान विपक्ष के नेता के पद के लायक हैं, फसाहत खान ने कहा कि विधानसभा चुनाव के बाद, अखिलेश यादव मुस्लिम समुदाय से दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं.
हालांकि, सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि उन्हें पार्टी नेतृत्व के खिलाफ ऐसी किसी टिप्पणी की जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा, "आजम खान सपा के साथ हैं और पार्टी उनके साथ खड़ी है."
आजम खान दो साल से अधिक समय से जेल में हैं और 80 मामलों का सामना कर रहे हैं, सरकार ने उनसे उन जमीनों को भी वापस ले लिया है जिन्हें कथित तौर पर आजम ने 2012 में अपनी सरकार के दौरान विभिन्न लोगों से जबरन हासिल कर लिया था. फसाहत खान की इन टिप्पणियों ने संकेत दिया कि खान खेमा बीजेपी के साथ समझौता करने के प्रयास में है.
दूसरी ओर, सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने एक वीडियो स्टेटमेंट में कहा, "पार्टी मुसलमानों के लिए काम नहीं कर रही है." मुख्यमंत्री के कामकाज की शैली के बारे में उनका कहना है, "मुख्यमंत्री योगी यूपी में अपने तरीके से काम कर रहे हैं, और मुसलमानों के साथ न्याय नहीं हो रहा है."
मुस्लिम समुदाय को अपनी "बीजेपी विरोधी पहचान" छोड़ देना चाहिए
अब, ऑल इंडिया तंजीम उलेमा-ए-इस्लाम के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी ने मुस्लिम समुदाय से अपील की है कि वह सपा के अलावा दूसरे विकल्पों पर ध्यान दे और यहां तक कि उन्होंने बीजेपी को भी बतौर विकल्प चुनने पर विचार करने की बात कही. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय को अपनी "बीजेपी विरोधी पहचान" छोड़ देना चाहिए. उन्होंने सपा पर समाज के वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी करने का भी आरोप लगाया.
हालांकि, चुनाव के बाद सपा एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी है, लेकिन ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव को पार्टी को आगे ले जाने के लिए खुद को फिर से तैयार करना होगा. उनकी कार्यशैली को लेकर पार्टी में पहले से ही असंतोष फैला हुआ है. एक सपा नेता ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, "वह मुलायम सिंह यादव जितने लचीले और आम कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध नहीं हैं, जितना मुलायम अपने नेतृत्व के दौरान थे."
ग्रामीण इलाकों में यादवों और दलितों, या यादवों और अगड़ी जातियों (ब्राह्मण-ठाकुर) के बीच पारंपरिक मनमुटाव की वजह से, 2014 के बाद से ये जातियां सपा को समर्थन देने में बचती रही हैं. 2014 के पहले जब बीजेपी राज्य में कमजोर थी तब यह जातीय प्रतिद्वंदिता एक तरह से छुपी हुई थी और अगड़ी जाति के लोग सपा को वोट दिया करते थे, लेकिन 2014 के बाद, जब बीजेपी दोबारा मजबूत हुई तो इसने यूपी में राजनीतिक समीकरण बदलकर रख दिए.
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