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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
By विवेकानंद शांडिल
समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अब इस दुनिया में नहीं रहे। वह बीते काफी दिनों से बीमार अस्पताल में भर्ती थे। लेकिन उनकी हालत नहीं सुधरी और सोमवार को 82 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
उनकी निधन पर पीएम मोदी ने भी गहरा शोक व्यक्त करते हुए लिखा, "जब हम अपने संबंधित राज्यों की बागडोर संभाल रहे थे, तो मुलायम सिंह यादव जी के साथ मेरी कई बार बातचीत हुई। हमारे बीच एक घनिष्ठ मित्रता था और मैं हमेसा उनके विचारों को जानने के लिए उत्साहित रहता था। उनके निधन से मैं बेहद दुःखी हूँ। उनके परिवारजनों और समर्थकों के प्रति मेरी संवेदना। ओम शांति।"
दोबारा प्रधानमंत्री बनने की कामना
मुलायम सिंह यादव अपने बयानों के लिए जाने जाते थे। साथ ही, एक अलग विचारधारा वाले नेता होने के बावजूद, वह नरेन्द्र मोदी की मेहनत और प्रतिभा के कायल थे। इसे उन्होंने कई मौकों पर जाहिर किया। लेकिन 2019 में 16वीं लोकसभा के अंतिम सत्र के दौरान उन्होंने अपने संबोधन से हर किसी को हैरान कर दिया था।
दरअसल, इस दौरान उन्होंने पीएम मोदी को सबको साथ लेकर चलने वाला बताते हुए, उनके दोबारा प्रधानमंत्री बनने की कामना की थी। उन्होंने यह बयान एक ऐसे वक्त में दिया, जब विपक्ष पीएम मोदी को हराने के लिए महागठबंधन बनाने की तैयारी कर रहा था। उनके इस बयान ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था, लेकिन वे अपने शब्दों पर बने रहे।
अमित शाह से भी थी गहरी घनिष्ठता
मुलायम सिंह यादव की अमित शाह से भी गहरी दोस्ती थी। कहा जाता है कि नरेन्द्र मोदी 2014 में जब पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, तो उस दौरान वह पीछे बैठे हुए थे। लेकिन जैसे ही अमित शाह की नज़र उनपर पड़ी, उन्होंने उनका हाथ पकड़ा और आगे लेकर आए।
पहलवानी से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर
उत्तर प्रदेश के इटावा के सैफई गाँव में एक किसान परिवार में जन्में मुलायम सिंह यादव की लोकप्रियता अपनी पहलवानी को लेकर थी। इसके बाद उन्होंने आध्यपक की भूमिका भी निभायी। लेकिन प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नत्थू सिंह ने उनकी एंट्री राजनीति की दुनिया में करायी और उन्हें 1967 में पहली बार जसवंतनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मौका मिला।
इस चुनाव में उन्हें जीत हासिल हुई और महज 28 साल की उम्र में विधायक बन उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नये अध्याय को जन्म दे दिया। फिर, इसके एक दशक के बाद जब राज्य में रामनरेश यादव की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार बनी, तो सिर्फ 38 साल की उम्र में वह सहकारिता मंत्री बने।
कहा जाता है कि चौधरी चरण सिंह के बेटे तो अपने बेटे अजीत सिंह थे, लेकिन वह अपना राजनीतिक वारिस मुलायम सिंह यादव को ही मानते थे। इसी जद्दोजहद में अजीत सिंह और मुलायम सिंह यादव के बीच प्रतिद्वंदता काफी बढ़ गई, जिसमें अंततः जीत मुलायम सिंह यादव की ही हुई और उन्होंने 5 दिसंबर, 1989 को पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
रक्षामंत्री भी बने मुलायम सिंह यादव
1993 में दूसरी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने 1996 में पहली बार मैनपुरी से लोकसभा चुनाव में हाथ आजमाया और यूनाइटेड फ़्रंट की सरकार में 2 वर्षों तक रक्षामंत्री भी रहे। इसके बाद, उन्होंने संभल और कन्नौज लोकसभा क्षेत्र में भी जीत हासिल की। 2003 में वह तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वहीं, 2019 में उन्होंने मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई।
गलतियां सुधारें अखिलेश
2012 में मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। लेकिन 2017 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद, अखिलेश ने 2019 लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया। इससे मुलायम को एक गहरा धक्का लगा और उन्होंने कहा, "अखिलेश ने मुझे अपमानित किया है। यदि कोई बेटा बाप के प्रति वफ़ादार नहीं है, तो वह किसी का भी नहीं हो सकता है।"
वास्तव में, एक किसान परिवार से वास्ता रखने वाले 'धरती पुत्र' ने अपनी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति से राजनीति की दुनिया में असाधारण उपलब्धियां हासिल की। उनका व्यक्तित्व ऐसा था, जिसका सम्मान हर कोई करता था।
उम्मीद है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने अखिलेश को जो एक सबक सिखाया था, उस पर वह अमल करेंगे और आगामी चुनाव में ऐसी कोई गलती नहीं करेंगे। यही एक बेटे का, अपने पिता को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
Rani Sahu
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