सम्पादकीय

मु़गल और आक्रांता

Rani Sahu
16 Nov 2021 6:56 PM GMT
मु़गल और आक्रांता
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सलमान खुर्शीद के बाद अब मणिशंकर अय्यर ने एक बेमानी बहस छेड़ दी है

सलमान खुर्शीद के बाद अब मणिशंकर अय्यर ने एक बेमानी बहस छेड़ दी है। बेमानी इसलिए है कि जिन घटनाओं और चेहरों का संबंध 500-600 साल पुरानेे कालखंड से हो और आज उनकी प्रासंगिकता भी कुछ न हो, मणिशंकर ने उनका जि़क्र किया है। उन्होंने मुग़ल शासकों को 'अपना' माना है। उनका दावा है कि मुग़लों ने धर्म पर अत्याचार नहीं किए और न ही धर्मान्तरण कराए। मुग़ल शासक अकबर ने तो हिंदुस्तान पर 50 साल राज किया। बाबर सिर्फ 4 साल भारत में रहा। उसे भारत पसंद नहीं आया। मणिशंकर यह भी दावा कर रहे हैं कि मुग़लों ने 666 साल तक हिंदुस्तान पर राज किया। उनके बाद 1872 में ब्रिटिश हुकूमत ने हमारे देश में पहली बार जनगणना कराई, तो मुस्लिम आबादी करीब 24 फीसदी थी और हिंदू 72 फीसदी थे। आज तक मुस्लिम आबादी भारत में बढ़ी नहीं है, बल्कि घटी है और हिंदू 80 फीसदी से अधिक हैं। यदि मुग़लों ने धार्मिक अत्याचार किए होते और जबरन धर्मान्तरण कराए होते, तो मुसलमान आबादी का आंकड़ा कुछ और होना चाहिए था। मणिशंकर गर्व महसूस करते हैं कि केंद्रीय मंत्री और सांसद के तौर पर वह दिल्ली के अकबर रोड वाले सरकारी आवास में रहे। उनकी कांग्रेस पार्टी का मुख्यालय भी अकबर रोड पर है। उन्हें अकबर, महाराणा प्रताप या शाहजहां के नामांे से कोई फर्क नहीं पड़ता।

मुग़लों ने भारत को 'अपना' समझा और हमें लालकिला, कुतुबमीनार, ताजमहल सरीखे भवन-निर्माण के अद्भुत नमूने दिए। मुग़लों ने ही हमें लिबास, खान-पान और कला संबंधी लियाकत दी। हम अपनी 10,000 साल प्राचीन सभ्यता और संस्कृति में क्या भूखे, नंगे और जंगली थे? हमारे ऐतिहासिक मंदिरों की नक्काशी, वास्तु-कला और शिल्प विश्व की सांस्कृतिक धरोहरों में शामिल नहीं हैं? दरअसल इन तमाम कथनों और दावों का आज क्या औचित्य है? 14-15वीं सदी को आज 2021 में दोहराने के पीछे मंसूबे क्या हो सकते हैं? क्या अयोध्या के भव्य राम मंदिर की सियासी काट ढूंढी जा रही है? क्या उप्र चुनावों में कांग्रेस हिंदुत्व के प्रभाव और धु्रवीकरण को कुंद करके मुस्लिम वोट बटोरना चाहती है? क्या आज का प्रगतिशील मुसलमान भी बाबर, हुमायूं, अकबर और औरंगज़ेब को 'अपना' मानता है? दरअसल कुछ ऐतिहासिक घटनाएं साक्ष्य के रूप में हमेशा हमारे सामने मौजूद रही हैं, जो तुरंत साबित करती हैं कि मुग़ल 'अपने' थे अथवा आक्रांता थे? महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के बीच 1575 के करीब हल्दी घाटी का युद्ध लड़ा गया था। इतिहास में दर्ज है कि युद्ध से पहले ही करीब 30,000 क्षत्राणियों ने जौहर किया था। यानी जि़ंदा आग में जलकर भस्म हो गई थीं। हजारों गैर-मुसलमानों की हत्याएं कराई गईं। क्षत्राणियां भी इनसान थीं। उन्हें आभास था कि अकबर और उसके सैनिक उनकी इज़्ज़त को नहीं छोड़ेंगे। ये सब विदेशी और तटस्थ इतिहासकारों के ब्योरे हैं। उस दौर में कांग्रेस, भाजपा और वामपंथी कोई भी नहीं था।
क्या कोई 'अपना' इतने बड़े स्तर पर कत्लेआम मचा सकता है? 14 नवंबर, 1675 को सिखों के नवें गुरु तेगबहादुर जी का औरंगज़ेब ने गला कटवा दिया था। गुरु धर्मान्तरण के खिलाफ थे। उन्हीं की याद में शीशगंज गुरुद्वारा बनाया गया है। सिखोें के ही गुरु अर्जुन देव जी की हत्या किसने कराई? मुग़ल सुल्तान औरंगज़ेब ने ही…! तो इन मुग़ल शासकों को किस आधार पर 'अपना' माना जा सकता है? उस दौर का इतिहास लिखने वाले अमरीकी विद्वानों ने कहा है कि मानवीय सभ्यता का सबसे खून-खराबे वाला दौर मुग़लों का था, जो भारत में उन्होंने बिताया। वे विदेशी थे, हमलावर और आक्रांता थे। चूंकि भारत 'सोने की चिडि़या' कहलाता था, लिहाजा लुटेरों ने जमकर उसे लूटा और स्वर्णिम संसाधन विदेश पहुंचाते रहे। शर्मिन्दगी का विषय यह है कि आज स्वतंत्र और गणतांत्रिक भारत में भी मुग़ल आक्रांताओं के पैरोकार मौजूद हैं। जो संवैधानिक अधिकार 80 फीसदी आबादी के हैं, वे ही अधिकार 14-15 फीसदी मुसलमानों को हासिल हैं और एक फीसदी या उससे भी कम जैन, बौद्ध, पारसी आबादियों को भी वे ही अधिकार प्राप्त हैं, लिहाजा मुग़लों को 'अपना' करार देकर मणिशंकर अय्यर और कांग्रेस को कुछ सियासी फायदा होने वाला नहीं है।

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