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उन्हें इस बुनियादी बात पर भी गौर करना चाहिए कि उसी कृषि उपज के बेहतर दाम मिलते हैं, जिसकी बाजार में मांग अधिक होती है।
केंद्रीय कैबिनेट ने खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी(MSP) की घोषणा कर देश के किसानों को यही संदेश दिया है कि वे परंपरागत फसल चक्र से निकल कर फसल विविधीकरण की दिशा में आगे बढ़ें और उन फसलों को प्राथमिकता के आधार पर उगाएं, जिनकी देश में कमी हो जाती है। वास्तव में इसी कारण जहां धान, बाजरा, मक्का जैसी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य अपेक्षाकृत कम रखे गए हैं, वहीं दलहन और तिलहन के मूल्यों में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। ऐसा करना समय की मांग थी, क्योंकि देश को दलहन और तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर बनाना आवश्यक हो गया है।
पिछले कुछ वर्षों से सरकार इस पर विशेष ध्यान दे रही है कि देश में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़े। दलहन के मामले में तो एक बड़ी हद तक सफलता मिली है, लेकिन तिलहन उत्पादन में कुछ कामयाबी मिलने के बावजूद देश अभी भी लक्ष्य से पीछे चल रहा है। इसका परिणाम यह है कि प्रति वर्ष करीब एक लाख करोड़ रुपये खाद्य तेल के आयात पर खर्च करने पड़ते हैं।
भारत सरीखे कृषि प्रधान देश के लिए यह आदर्श स्थिति नहीं कि बड़े पैमाने पर खाद्य तेल का आयात करना पड़े। तिलहन के उत्पादन को प्रोत्साहित करना इसलिए भी जरूरी हो गया है, क्योंकि यूक्रेन युद्ध के चलते विश्व बाजार में खाद्य तेल के दाम तेजी से बढ़े हैं। इसी कारण उनके ऊंचे दाम एक समस्या बने हुए हैं। किसानों को इस समस्या के समाधान में सहायक बनना चाहिए और दलहन के साथ-साथ तिलहन की खेती पर जोर देना चाहिए। उन्हें इस बुनियादी बात पर भी गौर करना चाहिए कि उसी कृषि उपज के बेहतर दाम मिलते हैं, जिसकी बाजार में मांग अधिक होती है।
सोर्स: दैनिक जागरण
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