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मध्य प्रदेश में इन दिनों स्कूलों में फीस वसूली को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। स्कूलों के प्रबंधक चाहते हैं
संजय पोखरियाल| मध्य प्रदेश में इन दिनों स्कूलों में फीस वसूली को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। स्कूलों के प्रबंधक चाहते हैं कि कोरोना काल के पूर्व की तरह ही छात्र-अभिभावक फीस देते रहें, जबकि अभिभावक सवाल कर रहे हैं कि जब एक साल से स्कूल खुले ही नहीं तो फीस किस बात के लिए दी जाए। इस बीच स्कूलों ने नए सत्र के नाम पर बीस से चालीस फीसद तक फीस बढ़ा दी है। सरकार का स्कूल शिक्षा विभाग इस विवाद में कोई स्पष्ट राय नहीं बना पा रहा है। कभी वह स्कूल प्रबंधकों की तरफ लुढ़कता दिखता है तो कभी अभिभावकों वाली बात कह देता है।
मंगलवार को इसी विषय को लेकर राजधानी भोपाल में एक ऐसी घटना हुई जिसने शिक्षा विभाग में बनी अनिर्णय की स्थिति को उजागर कर दिया। फीस वृद्धि के प्रस्ताव के विरोध में तर्क दे रहे अभिभावकों के एक समूह को स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) इंदर सिंह परमार ने झुंझलाहट में कह दिया कि 'मैं क्या करूं, मरना हो तो मर जाओ, जो करना हो करो।' मंत्री के इस रूखे व्यवहार ने विपक्ष को सरकार को घेरने का मौका दे दिया है। कांग्रेस ने इसे असंवेदनशील टिप्पणी ठहराया है। अभिभावकों का संगठन भी इस बयान के विरोध में आंदोलन की तैयारी कर रहा है। फीस वृद्धि को लेकर स्कूल प्रबंधकों एवं अभिभावकों के बीच विवाद को दूर करने के लिए सरकार को जल्द ही कड़े कदम उठाने होंगे।
वैसे तो कोरोना काल शुरू होने के साथ ही एक साल से स्कूल-कालेज बंद हैं। छात्रों की आवाजाही पूरी तरह ठप है। स्कूलों में सन्नाटा बढ़ गया है, पर उनकी जिम्मेदारी में कमी नहीं आ पाई है। स्कूलों ने शिक्षकों एवं कर्मचारियों को वेतन देने के लिए अपने तरीके से फार्मूला निकाल रखा है। कहीं आधा वेतन मिल रहा है तो कहीं नाम मात्र का। उनकी दलील है कि पूर्व की तरह पूरी फीस नहीं मिल रही है, इसलिए पूरा वेतन नहीं दे पाएंगे। सरकार का स्कूल शिक्षा विभाग उनकी बातों से लगभग सहमत होते हुए पूरा वेतन देने का दबाव नहीं बना पा रहा है। इसे अनिर्णय की स्थिति ही कहेंगे कि वह एक तरह से दो पाटों में पिस रहा है। एक तरफ अभिभावक दलील दे रहे हैं कि कोरोना काल में उनके बच्चे स्कूल नहीं गए और उनके रोजगार पर भी संकट खड़ा हो गया, ऐसे में वे मनमाना फीस क्यों चुकाएं। दूसरी तरफ स्कूलों के प्रबंधक तर्क दे रहे हैं कि यदि फीस नहीं बढ़ाई गई तो स्कूल आगे चला पाना मुश्किल है।
फीस वृद्धि न करने और केवल ट्यूशन फीस ही लिए जाने की मांग को लेकर अभिभावक काफी दिनों से स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों और मंत्री का दरवाजा खटखटा रहे हैं। सुनवाई नहीं हुई तो मंगलवार को अभिभावकों का एक समूह राज्यमंत्री परमार के बंगले पर पहुंच गया। उसने अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाया तो राज्यमंत्री भी तैश में आ गए। उनकी टिप्पणी ने फीस वृद्धि के विवाद को अब और गहरा कर दिया है।
राज्यमंत्री की झुंझलाहट के दो प्रमुख कारण चर्चा में हैं। पहला यह कि स्कूल चाहते थे कि एक जुलाई से शैक्षणिक गतिविधियां शुरू की जाएं। इससे शिक्षा विभाग के अधिकारी एवं खुद राज्यमंत्री भी सहमत थे। प्रस्ताव बनाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भेजा, लेकिन उन्होंने हरी झंडी नहीं दी। कोरोना काल में छात्रों की सुरक्षा को सबसे जरूरी मानते हुए मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव लौटा दिया। दूसरा कारण यह कि फीस कम नहीं करने को लेकर निजी स्कूल संचालकों का शिक्षा विभाग पर दबाव है। राज्यमंत्री चाहते हैं कि कोई रास्ता निकले, ताकि स्कूलों की व्यवस्था भी चलती रहे
फीस का विवाद नवंबर 2020 में जबलपुर हाई कोर्ट के समक्ष भी उठा था। तब जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने पांच नवंबर, 2020 को कहा था कि स्कूल तब तक छात्रों से सिर्फ ट्यूशन फीस लेंगे, जब तक सरकार यह घोषणा नहीं करती है कि कोरोना महामारी खत्म हो चुकी है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि शिक्षक और गैर शिक्षक कर्मचारियों के वेतन का नियमित भुगतान किया जाए। जरूरी होने पर उनके वेतन में अधिकतम 20 फीसद की कटौती की जा सकती है। इसके बावजूद स्कूल शिक्षकों एवं कर्मचारियों को 50 फीसद तक ही वेतन दे रहे हैं। कई स्कूल 30 फीसद से भी कम वेतन दे रहे हैं।
हाई कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने भी दिशानिर्देश जारी किया था, जिसके कारण स्कूलों ने अभिभावकों से सिर्फ ट्यूशन फीस ली थी। अब स्कूलों की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि ऐसा करने से उन्हें 20 से 35 फीसद का नुकसान हुआ है। इसलिए नए सत्र में ट्यूशन फीस के साथ ही अन्य शुल्क (भवन मरम्मत, लाइब्रेरी, लैब, स्पोर्ट्स, बस किराया आदि) भी लेना चाहते हैं। उन्होंने नए शैक्षणिक सत्र में 20 से 40 फीसद तक फीस बढ़ा भी दी है, जिसका अभिभावक विरोध कर रहे हैं। प्रदेश में एक दशक की कवायद के बाद निजी स्कूलों के लिए फीस नियंत्रण कानून वर्ष 2017 में बनाया गया और इसके नियम जनवरी 2021 में जारी किए गए, लेकिन समस्या यह है कि अब तक उसे उचित ढंग से लागू नहीं किया जा सका है।
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