सम्पादकीय

सांसद भी 'देशद्रोही'!

Rani Sahu
26 April 2022 7:15 PM GMT
सांसद भी देशद्रोही!
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अच्छा है कि लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने तुरंत संज्ञान लेकर हस्तक्षेप किया और लोकसभा सचिवालय ने महाराष्ट्र सरकार से 24 घंटे के अंतराल में ही रपट मांगी है

अच्छा है कि लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने तुरंत संज्ञान लेकर हस्तक्षेप किया और लोकसभा सचिवालय ने महाराष्ट्र सरकार से 24 घंटे के अंतराल में ही रपट मांगी है कि महिला सांसद नवनीत राणा कैसी हैं? जेल के भीतर उनके साथ मानवाधिकारी व्यवहार हो रहा है अथवा नहीं? संभव है कि सांसद के खिलाफ आरोपों, खासकर 'राजद्रोह' के मामले, पर लोकसभा सचिवालय ने ब्योरा मांगा हो! स्पीकर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के जरिए रपट मांगी है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के अलिखित आदेशों के आधार पर मुंबई पुलिस ने सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक-पति पर जो भी केस दर्ज किए हैं, वे अब अदालत के विचाराधीन हैं। ट्रायल कोर्ट 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में राणा दंपति को भेजने का फैसला सुना चुकी है। हालांकि बंबई हाईकोर्ट ने सांसद-विधायक दंपति की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने तमाम प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया था।

हाईकोर्ट ने उन्हें ही फटकार लगाई कि जन-प्रतिनिधि की जिम्मेदारी ज्यादा होती है। जो सार्वजनिक जीवन में हैं, वे ज्यादा जवाबदेह होते हैं, लिहाजा 'हनुमान चालीसा' पर राणा दंपति की जिद बुनियादी तौर पर गलत थी। बहरहाल अदालती जिरह और मामले अब अदालतें ही तय करेंगी, लेकिन हमारा सवाल अलग है कि क्या एक निर्वाचित सांसद को 'देशद्रोही' करार दिया जा सकता है? यदि सांसद ही 'राजद्रोही' है, तो फिर संसद में क्यों है? मुंबई पुलिस ने राणा दंपति के खिलाफ 'राजद्रोह' का केस भी धारा 124-ए के तहत दर्ज किया है। पुलिस ने यह केस अलग से दर्ज किया है। साफ है कि मुख्यमंत्री दफ्तर से आदेश मिले होंगे, तो 'देशद्रोह' भी चस्पा कर दिया गया। एक सांसद हमारे गणतंत्र के बुनियादी स्तंभ 'विधायिका' का अंतरंग हिस्सा होता है। वह कानून-निर्माता है। क्या नवनीत राणा ने महाराष्ट्र और देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता और व्यवस्था को खंडित किया है? क्या सांसद-विधायक दंपति ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सत्ता के खिलाफ युद्ध सरीखी साजि़श की और सरकार को अस्थिर किया? क्या राणा दंपति ने सामाजिक-सार्वजनिक तौर पर अराजकता फैलाई और जन-व्यवस्था का संकट पैदा किया? बेशक अदालत में पुलिस को ऐसे सवालों के स्पष्टीकरण देने पड़ेंगे, लेकिन 'देशद्रोही' के आरोपित सांसद ने मानवाधिकार संबंधी कुछ अहम सरोकार खड़े किए हैं। ये सरोकार एक औसत कैदी के भी होते हैं। स्पीकर को लिखी चिट्ठी में निर्दलीय सांसद नवनीत ने खुलासा किया है कि जेल में रात भर उन्हें पानी पीने को नहीं दिया गया। जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया।
चिट्ठी के मुताबिक, पानी मांगने पर पुलिसवाले ने कहा-'नीची जात के लोगों को हम पानी नहीं देते….गिलास भी पीने के लिए नहीं देंगे।' जब नवनीत ने बाथरूम जाने के लिए इजाजत मांगी, तो वहां मौजूद पुलिसवाले ने पहले तो ध्यान ही नहीं दिया। फिर बोला-नीची जात वालों को हम अपना बाथरूम इस्तेमाल नहीं करने देते। हालांकि यह गौरतलब है कि बंबई हाईकोर्ट ने नवनीत के जाति संबंधी दस्तावेजों को 'फर्जी' करार दिया है। संसद के रिकॉर्ड में वह अब भी अनुसूचित जाति की सांसद हैं। सर्वोच्च अदालत में सांसद की अपील विचाराधीन है, लिहाजा निर्णायक तौर पर उन्हें 'बोगस' करार नहीं दिया जा सकता, जैसा शिवसेना के प्रवक्ता और कार्यकर्ता टीवी चैनलों पर चिल्ला रहे हैं। मुंबई पुलिस का दावा है कि सीसीटीवी फुटेज में साफ है कि सांसद को पानी दिया गया। उन्हें प्रताडि़त नहीं किया गया। यदि सांसद के आरोपों में सच्चाई है, तो यह स्थिति एक कैदी के मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है, लिहाजा दंडनीय है। सवाल यह भी गंभीर है कि क्या 'हनुमान चालीसा' के पाठन की बात कहना ही 'देशद्रोह' है? यदि ऐसा है, तो एक राजनीतिक के तौर पर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्रियों को 'चप्पल' मारने तक के बयान दे चुके हैं। शिवसैनिक न जाने कितने हुड़दंग सार्वजनिक जीवन में मचा चुके हैं! क्या उन्हें भी 'राजद्रोही' करार दे देना चाहिए? बीते दिनों देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रमन्ना जेल में पुलिस की ज्यादतियों पर टिप्पणी कर चुके हैं। उन्होंने यहां तक कहा था कि कोई भी कैदी हो, वह किसी न किसी स्तर पर पुलिस के 'थर्ड डिग्री' टॉर्चर का शिकार होता ही है। कायदे-कानून के बावजूद पुलिस की फितरत नहीं बदली है।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचा


Rani Sahu

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