सम्पादकीय

समापन की ओर आंदोलन

Gulabi
10 Dec 2021 1:06 PM GMT
समापन की ओर आंदोलन
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केंद्र सरकार से लिखित आश्वासन लेने के बाद ही संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान आंदोलन को फिलहाल खत्म करने का एलान किया है
लगभग चौदह महीने की जद्दोजहद के बाद किसान आंदोलन का आखिरकार समापन तक पहुंचना राहत और स्वागत की बात है। 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के साथ ही साफ संकेत मिल गया था कि सरकार अब किसानों की मांग के आगे झुकने को तैयार है। हालांकि, तब किसान वापसी के लिए तैयार नहीं हुए थे। शायद सरकार पर विश्वास कम था, तो किसानों ने संसद से कानून के रद्द होने का इंतजार किया। 29 नवंबर को लोकसभा और राज्यसभा में तीन कृषि कानूनों का निरस्तीकरण हुआ। इसके बाद भी किसान दिल्ली की सीमाओं से नहीं हटे, क्योंकि वे बाकी मांगों को भी लगे हाथ मनवाना चाहते थे। किसानों में एक भय भी था, जिसे संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश सिंह टिकैत ने जाहिर भी कर दिया था कि जो भी जल्दी घर जाएगा, वह जेल जाएगा। यह किसानों की एक बड़ी चिंता थी कि आंदोलन के दौरान दर्ज हुए मुकदमे सरकार पहले वापस ले। जबकि सरकार चाहती थी कि किसान पहले आंदोलन खत्म करें, तब मुकदमे वापस होंगे, लेकिन किसानों ने मुकदमा वापस लेने के आश्वासन मिले बिना आंदोलन खत्म करने से इनकार कर दिया। जिस ढंग से किसानों ने इस समग्र आंदोलन को चलाया है, उसकी आलोचना भले संभव है, पर आंदोलन को सफल मानने की अनेक वजहें दर्ज हो चुकी हैं।
केंद्र सरकार से लिखित आश्वासन लेने के बाद ही संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान आंदोलन को फिलहाल खत्म करने का एलान किया है। दिल्ली की सीमा और अन्य कम से आधा दर्जन जगहों से किसानों के प्रमुख जमावड़ों की वापसी 11 दिसंबर से शुरू हो जाएगी। दिल्ली की ओर जाने वाले तमाम रास्ते 15 दिसंबर तक पूरी तरह खुल जाने की उम्मीद है। बड़ा दिल दिखाते हुए किसान नेता शिवकुमार कक्का ने कहा है कि हम देश के उन तमाम लोगों से माफी मांगते हैं, जिन्हें इस आंदोलन के चलते परेशानी हुई है। जिन इलाकों में लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था, उनके लिए तो आंदोलन का खत्म होना किसी खुशखबरी से कम नहीं है। निश्चित रूप से आंदोलन के खत्म होने से आवागमन ही नहीं, आम लोगों और अर्थव्यवस्था को भी मदद मिलेगी। साथ ही, यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि ऐसे आंदोलनों की लागत बहुत होती है, भविष्य में फिर कभी ऐसी नौबत न आए, यह सुनिश्चित करने का काम सरकार का है।
आंदोलन खत्म हो रहा है, लेकिन किसानों की समस्याओं के समाधान में अभी वक्त लगेगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर समिति बने, किसानों की मर्जी से ही मूल्य तय हो, देश के सभी किसानों को अपनी फसलों का यथोचित मूल्य मिले, लोग यही चाहते हैं। कृषि पर सरकार इतना ध्यान दे कि कृषि को लोग जीविका का लाभदायक साधन मानें। किसानों के हित में कृषि उत्पादों की कीमतों में इजाफे के लिए सभी को तैयार रहना चाहिए। हर राज्य सरकार को अपने-अपने स्तर पर देखना चाहिए कि उनके यहां किसानों का शोषण रुके, लागत की भरपाई के साथ ही न्यायपूर्ण आर्थिक लाभ भी जेब में आए। 40 किसान संगठनों की ऐतिहासिक एकता इस आंदोलन की सफलता पर ही खत्म नहीं होनी चाहिए। किसानों का शोषण करने वाले व्यापारियों और नेताओं पर लगाम लगाए रखने की जिम्मेदारी भी किसान संगठनों को उठानी पड़ेगी।
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