सम्पादकीय

आंदोलन हक, मगर जनजीवन बाधित न हो: अदालती नसीहत

Gulabi
18 Dec 2020 2:56 PM GMT
आंदोलन हक, मगर जनजीवन बाधित न हो: अदालती नसीहत
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कृषि सुधारों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की दहलीज पर जारी किसान आंदोलन पर देश की शीर्ष अदालत ने कहा है कि

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कृषि सुधारों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की दहलीज पर जारी किसान आंदोलन पर देश की शीर्ष अदालत ने कहा है कि विरोध करना किसानों का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन इससे दूसरों के जीवन के अधिकार बाधित नहीं होने चाहिए। तीन सप्ताह से दिल्ली की आवाजाही और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बाधित होने के बीच दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबड़े ने कहा कि हमें किसानों के साथ सहानुभूति है, लेकिन आंदोलन का तरीका बदलते हुए इसके समाधान की दिशा में आगे बढ़ना होगा। अदालत ने साफ किया कि वह सुधार कानूनों की वैधता पर फैसला नहीं देगी, लेकिन हम किसान आंदोलन के चलते रोकी गई सड़क और उसके नागरिक अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों पर सुनवाई करेंगे। वैधता के सवाल पर अभी प्रतीक्षा करनी होगी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम इस बाबत कमेटी के बारे में विचार कर रहे हैं ताकि वार्ता को सुविधाजनक बनाया जा सके। हम चाहते हैं कि स्वतंत्र और निष्पक्ष समिति बने। दोनों पक्ष बातचीत कर सकते हैं और विरोध भी जारी रह सकता है।

पैनल में कृषि विशेषज्ञों, किसान व सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल किया जा सकता है। अदालत ने किसानों को बातचीत के लिये आगे आने को भी कहा। दरअसल, सुनवाई के दौरान किसान प्रतिनिधियों के शामिल न होने के कारण कमेटी के गठन पर फैसला नहीं हो सका। अदालत ने यह भी कहा कि किसानों से बातचीत करके ही कोई फैसला सुनाया जा सकता है। ऐसे वक्त में जब सुप्रीम कोर्ट में सर्दियों की छुट्टियां हो रही हैं, तो लगता है कि आगे अब मामले की सुनवाई वैकेशन बेंच करेगी। इस बीच केंद्र के वकील ने कहा कि आंदोलन से रास्ता बंद होने से दिल्ली की जनता को भारी परेशानी हो रही है और कीमतों में तेजी से उछाल आया है। वहीं अटॉर्नी जनरल ने आशंका जतायी है कि आंदोलन स्थल पर सावधानी न बरते जाने से कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ा है।


अदालत ने सुनवाई के दौरान इस संभावना को तलाशने की बात कही कि क्या सरकार कृषि सुधार कानूनों पर रोक लगा सकती है। क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट को यह भरोसा दिला सकती है कि इस मामले में सुनवाई होने तक वह इस मामले को अमल में नहीं लायेगी? इस बाबत अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो किसान चर्चा के लिये नहीं आयेंगे। साथ ही यह भी कि इस बाबत वे सरकार से निर्देश लेंगे। वहीं किसानों को आंदोलन का तरीका बदलने की नसीहत दी गई। चीफ जस्िटस ने कहा कि आंदोलन करना तब तक ही बुनियादी हक है जब तक इससे किसी की जान व संपत्ति को खतरा न हो। वहीं दूसरी ओर पंजाब सरकार का पक्ष रख रहे पी. चिदंबरम ने सवाल उठाया कि अगर किसान हिंसक होते हैं तो उसका जिम्मेदार किसे माना जायेगा। बहरहाल, हाल-फिलहाल आंदोलन पर तत्काल कोई हल निकलता तो नहीं दिखता, लेकिन समाधान की तमाम संभावनाएं बनी हुई हैं।
विगत में तमाम पेचीदा मामले शीर्ष अदालत के समक्ष आये हैं और उनका सर्वमान्य समाधान भी निकला है। न्यायालय की विश्वसनीयता को देखते हुए उम्मीद तो की जा सकती है कि चाहे विशेष पैनल बनने से ही निकले, कोई कारगर हल निकलेगा। जिस तरह कई महीनों से पंजाब में और तीन सप्ताह से दिल्ली सीमा पर जारी किसान आंदोलन के बाद कई दौर की औपचारिक व अनौपचारिक बातचीत से जब कोई समाधान होता नजर नहीं आया तो देश की शीर्ष अदालत पर ही उम्मीद जा लगी थी। ऐसे में विश्वास किया जाना चाहिए कि राजनीति से इतर संवैधानिक प्रावधानों की छाया में देर-सवेर कोई सर्वमान्य समाधान निकलेगा, जिससे कोरोना संकट के बीच और रक्त जमाती सर्दी में बैठे किसान अपने घरों को लौट सकेंगे। आंदोलन का लंबा खिंचना देश की कानून-व्यवस्था और सामान्य नागरिक जीवन के हित में कदापि नहीं हो सकता। इसके लिये जरूरी है कि सरकार व किसान संगठन आग्रह-दुराग्रहों से निकलकर शांत मन से समस्या का समाधान तलाशने की दिशा में आगे बढ़ें।


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