सम्पादकीय

कोरोना काल में आंदोलन

Triveni
26 May 2021 4:37 AM GMT
कोरोना काल में आंदोलन
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तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए किसानों के आंदोलन को आज (बुधवार को) छह महीने पूरे हो रहे हैं।

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए किसानों के आंदोलन को आज (बुधवार को) छह महीने पूरे हो रहे हैं। इस दौरान आंदोलन में उतार-चढ़ाव काफी आए, इसके रूप और तेवर में भी बदलाव आए, लेकिन यह आंदोलन जारी रहा। संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मई को काला दिवस के रूप में मनाते हुए देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों का आह्वान किया है। देश के 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने इस आह्वान को अपना समर्थन दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा की अपील पर पंजाब और हरियाणा से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली बॉर्डर की ओर कूच भी कर चुके हैं। जाहिर है, किसान संगठन इस अवसर का इस्तेमाल करते हुए मंद पड़ते अपने आंदोलन को दोबारा तेज करने के मूड में हैं। तो क्या कोरोना की विनाशकारी दूसरी लहर के समाप्त होने से पहले ही देश में किसान आंदोलन की दूसरी लहर शुरू होने वाली है? कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी का प्रकोप देशवासियों को कैसी भयावह स्थिति में डाल सकता है, यह हमने अभी-अभी देखा है। उस स्थिति से अभी ठीक से उबरे भी नहीं हैं। बड़े शहरों के आंकड़े कुछ सुधरते दिख रहे हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति का सही-सही अंदाजा भी नहीं मिल रहा। ऐसे में किसानों के जत्थे का राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर इकट्ठा होना या देश के अलग-अलग हिस्सों में समूहों में निकलकर विरोध प्रदर्शन करना बेहद खतरनाक है।

भूलना नहीं चाहिए कि दूसरी लहर के भीषण रूप अख्तियार करने के पीछे एक बड़ी भूमिका पांच राज्यों के चुनावों के दौरान हुई बड़ी-बड़ी रैलियों और हरिद्वार में कुंभ के नाम पर जुटी श्रद्धाओं की विशाल भीड़ की महत्वपूर्ण भूमिका बताई जाती है। ऐसी भीड़ में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करना या करवाना लगभग नामुमकिन होता है। वैसे भी विशेषज्ञ देश में कोरोना की तीसरी लहर का अंदेशा अभी से जताने लगे हैं। इन सबके बीच अगर देश में सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन की यह प्रक्रिया शुरू हुई तो सरकारी तंत्र का ध्यान बंटेगा और कोरोना को काबू करने की मुश्किल लड़ाई और ज्यादा मुश्किल होगी। जहां तक किसानों की मांगों का सवाल है तो उस पर सहमति-असहमति से अलग हटकर यह कहा जाता रहा है कि किसानों को शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक ढंग से अपनी बात रखने या सरकार का विरोध करने का अधिकार है। लेकिन मौजूदा हालात में लॉकडाउन और कोरोना प्रोटोकॉल की अवहेलना करते हुए सड़कों पर उतरना न केवल उन प्रदर्शनकारी किसानों के लिए बल्कि सबके लिए घातक है। सरकार को भी चाहिए कि किसानों के साथ बातचीत की बंद पड़ी प्रक्रिया शुरू करे ताकि इस लंबित पड़े मामले में कोई शांतिपूर्ण और समझदारी भरा रास्ता निकाला जा सके। उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी संबंधित पक्ष हालात की गंभीरता को समझते हुए जिम्मेदारी का परिचय देंगे और ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे देश में कोरोना का यह संकट और गहरा हो जाए।


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