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- आग के मुहाने
Written by जनसत्ता: पिछले दिनों राजस्थान के अलवर जिले के सरिस्का अभयारण्य में लगी आग ने लगभग दस वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया। अभयारण्य संरक्षित क्षेत्र की श्रेणी में आते हैं। वहां भी ऐसी लापरवाही देखने को मिल रही है कि दावानाल जैसी घटनाएं आम होती जा रही हैं। वे वन्य जीवों के लिए घातक सिद्ध हो रही हैं, खासकर लुप्तप्राय जीवों का वन अग्नि में स्वाहा हो जाना, राष्ट्रीय संपदा की क्षति है।
आजकल पर्यटन के नाम पर जिस तरह संरक्षित क्षेत्रों में रिजार्ट और होटलों का अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है, वह एक गंभीर और चिंताजनक विषय है। मनुष्य अपनी मौज-मस्ती के लिए, अभयारण्य जैसे वन्य जीवों लिए संरक्षित क्षेत्रों को भी नहीं छोड़ रहा है और सरकारी तंत्र आंखें मूंदे बैठा रहता है, जब तक कोई बड़ी दुर्घटना न हो जाए। मानवीय भूलों का खमियाजा मूक जानवरों को भुगतना पड़ता है।
पिछले कुछ वर्षों में जिस तेजी से जंगलों और वनों में ट्रैकिंग जैसे खेलों की आड़ में पहले अस्थायी तंबुओं का निर्माण किया जाता है और धीरे से तंबुओं का स्थान आलीशान होटल और रिजार्ट ले लेते हैं। पर्यटक घूमने-फिरने के दौरान इतनी आसवधानी बरतते हैं कि जंगल और वनों में कहीं भी 'कैंप फायर' करके आग जली छोड़ कर चले जाते हैं। वह धीरे-धीरे हवा द्वारा पूरे वन क्षेत्र में फैल जाती है और यह जरा-सी असावधानी वन्य जीवों पर बहुत भारी पड़ती है।
सरकार को इसके लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। वन विभागों को मुस्तैद होकर वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कार्य करना होगा, क्योंकि इन क्षेत्रों में जीवों की ऐसी कई प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। आम लोगों में ऐसे जीवों के प्रति जागरूकता का अभाव है। वे नहीं जानते कि प्रकृति से एक भी जीव की संख्या का कम होना किस तरह जीवों की पूरी आहार शृंखला को प्रभावित कर सकता है। अभयारण्यों में मानवीय हस्तक्षेप सीमित करने और ऐसे संरक्षित क्षेत्रों में पर्यटन के नाम पर होने वाले प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर रोक लगाना समय की मांग है।
अच्छी बात है कि पंजाब में भगवंत मान की सरकार ने नेताओं को सिर्फ एक पेंशन देने का फैसला किया है। सभी विधायक, मंत्री और नेता कई पेंशन एक साथ ले रहे थे, जो बिलकुल तर्क संगत नहीं था। इन्हीं नेताओं ने मिल कर कर्मचारियों की पहले ही पेंशन बंद कर दी थी। सच्चा सेवक बनने के लिए शासक की भूमिका से दूर होकर, त्याग-तपस्या, परिश्रम और सादगी के रास्ते ही यह सब संभव है। फिर आज देश की नाजुक आर्थिक हालत को देखते हुए तो अन्य फिजूलखर्चियों पर भी तुरंत लगाम लगाने की जरूरत है।
बीते रविवार को चौरानबेवें आस्कर का भव्य आयोजन हुआ। दुनिया भर के दर्शकों में कुछ अलग ही उत्साह का माहौल था। मगर इस समारोह में वह हुआ, जो आज तक कभी नहीं हुआ। हालीवुड स्टार विल स्मिथ के व्यवहार ने न सिर्फ आयोजकों, बल्कि दुनिया भर के दर्शकों का दिल तोड़ दिया। जिस तरह उन्होंने हास्य अभिनेता क्रिस राक को मंच पर थप्पड़ मारा, वह एक बेहूदा कृत्य तो था।
दुनिया भर के लोगों को लग रहा था कि आखिर एकेडमी आफ मोशन पिक्चर आर्ट्स ऐंड साइंसेज ने अब तक कोई करवाई क्यों नहीं की? अब पता चला है कि उसने उसी समय अभिनेता विल स्मिथ को सभा छोड़ कर चले जाने को कहा था, पर वे नहीं गए।
अब उन पर अकादमी ने अनुशासनात्मक करवाई करने का मन बना लिया है। उनकी सदस्यता भी जा सकती है। हो सकता है, उनके किसी फिल्म में काम करने पर भी रोक लगा दी जाए। इस तरह का असभ्य और अमानवीय व्यवहार करने का अधिकार किसी को नहीं मिलना चाहिए, वह चाहे कितना भी लोकप्रिय कलाकार क्यों न हो।