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सम्पादकीय
Mother's Day 2022: महिलाओं को मानसिक बीमारियों के प्रति संवेदनशील बनाता है मातृत्व, स्ट्रेस मैनेजमेंट है जरूरी
Gulabi Jagat
8 May 2022 1:16 PM GMT
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महिलाओं को मानसिक बीमारियों के प्रति संवेदनशील बनाता है मातृत्व
डॉ. गुरप्रीत कौर विर्क
मदर्स डे (Mother's Day) 8 मई को पूरी दुनिया में मनाया जाता है. आमतौर पर इस दिन माताओं (Mother's) से जुड़ी तमाम स्वास्थ्य चिंताओं और उनकी बीमारियों से जुड़े लेख लिखे जाते हैं, इसके साथ ही इन बीमारियों (Mother Diseases) के सर्वोत्तम उपचार पर भी चर्चा होती है. पहला आर्टिकल ओस्टियोआर्थराइटिस पर है, जो वृद्ध महिलाओं (Old Women) में आम बात है. इसलिए इन महिलाओं को नियमित रूप से वजन बढ़ाने वाले व्यायाम करने की सलाह दी जाती है. दूसरा आर्टिकल मोनोपॉज को लेकर है जो एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन इससे एक औरत की पूरी जिंदगी बदल जाती है.
बीते कुछ वर्षों की बात करें तो मानसिक स्वास्थ्य चिंता का एक प्रमुख विषय रहा है. जब महिलाओं की बात आती है, तो मानसिक समस्याओं का खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता है, खासकर एक बच्चे को जन्म देने के बाद. यह एक निर्विवाद तथ्य है कि मातृत्व एक महिला के जीवन के सबसे खूबसूरत पलों में से एक होता है, लेकिन इस दौरान महिलाओं के शरीर में बहुत सारे बदलाव भी होते हैं. इस वजह से इस दौरान यह महिलाएं परिवार और सामाजिक अपेक्षाओं से निपटने के लिए अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भारी बोझ झेलती हैं.
एक मां होने के नाते इनके पास बड़ी जिम्मेदारियां भी आती हैं, जो महिलाओं को विभिन्न मानसिक बीमारियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाती हैं. पहली बार मां बनने वाली औरतों में पोस्टपार्टम डिप्रेशन की संभावना ज्यादा होती है जो लगभग 3 साल तक रह सकती है. यहां तक कि वह क्रॉनिक डिप्रेसिव डिसऑर्डर का भी शिकार हो सकती हैं. यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें महिलाएं बहुत सारे शारीरिक मानसिक और व्यवहारिक परिवर्तनों को अनुभव करती हैं, जो आमतौर पर गर्भावस्था के चौथे सप्ताह से शुरू हो जाती है.
"परिवार और सामाजिक अपेक्षाओं से निपटना महिला के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भारी बोझ डालता है."
रातों में नींद ना आना, हारमोंस और कई तरह की नई भावनाएं धीरे-धीरे मैटरनल एंजाइटी और डिप्रेशन में बदल जाती हैं. इसके अलावा पोस्टपार्टम मनोविकृति नई-नई मां बनने वाली औरतों के बीच खतरनाक स्थिति ले लेती है. जहां वह वास्तविकता से पूरी तरह से कट जाती हैं. इसके बाद वह ऑडिटरी हल्लुसीनेशंस और भ्रम में जीने लगती हैं. यह भी देखा गया है कि गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन, चिंता, भय और तनाव भी महिलाओं को परेशान करता है. जिसके चलते बच्चे को जन्म देने की जटिलताओं में बढ़ोतरी होती है. ऐसी समस्याएं हर पांच में से एक महिला को प्रभावित करती हैं. अगर सही समय पर इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो धीरे-धीरे यह एक मानसिक बीमारी की ओर बढ़ सकता है और भविष्य में महिला हाई ब्लड प्रेशर, थायराइड जैसी अन्य दीर्घकालिक स्वास्थ्य बीमारियों के शिकार हो सकती है. इसके अलावा प्रेगनेंसी से पहले और बाद में होने वाले शुरुआती डिप्रेशन पर जल्दी किसी का ध्यान नहीं जाता है जो धीरे-धीरे और भी खतरनाक हो जाता है.
नई नई मां बनने वाली महिलाओं में डिप्रेशन के कुछ इस तरह के संकेत दिखाई देते हैं-
मूड स्विंग्स होना
खाने की आदत में बदलाव
नींद आने में परेशानी
कोई भी काम करने में मन न लगना
शरीर में हमेशा थकान और कमजोरी बने रहना
स्ट्रेस और डिप्रेशन को मैनेज कैसे करें
हमारी जीवनशैली हमारे मानसिक स्वास्थ्य के मैनेजमेंट में एक अहम भूमिका निभाती है. इसलिए शुरुआती अवस्था में ही डिप्रेशन और चिंता के खतरों को कम करने के लिए एक स्वस्थ जीवनशैली का पालन करना बेहद महत्वपूर्ण है. इसके लिए आपको इन चीजों पर ध्यान देना होगा-
नियमित जांच
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के खतरे से बचने के लिए यह जरूरी है कि महिलाओं को गर्भावस्था से पहले गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद भी नियमित रूप से हल्के डिप्रेशन के लक्षण की जांच करानी चाहिए. इससे होगा यह कि अगर आपमें डिप्रेशन के हल्के भी लक्षण हैं तो डॉक्टर आपको दवाएं देगा, जिसका आपको सख्ती से पालन करना है.
स्ट्रेस मैनेजमेंट
यह समझना बेहद महत्वपूर्ण है कि डिप्रेशन और चिंता मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, इसलिए महिलाओं को योग और ध्यान जैसी चीजों को अपने दिनचर्या में शामिल करना चाहिए. स्ट्रेस को मैनेज करने के लिए कम से कम उन्हें 8 घंटे की नींद लेनी चाहिए. यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे डिप्रेशन और चिंता दोनों के जोखिम कम होते हैं.
ज्यादातर महिलाओं का वजन बच्चे के जन्म के बाद से बढ़ना शुरू हो जाता है, जिससे मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, थायराइड भी उन्हें अपना शिकार बना सकता है. इसके साथ ही इन बीमारियों की वजह से डिप्रेशन का खतरा भी बढ़ जाता है. इसलिए इन महिलाओं को अपने दैनिक दिनचर्या में किसी न किसी प्रकार से शारीरिक व्यायाम जरूर करना चाहिए. (लेखक मणिपाल हॉस्पिटल पटियाला में सीनियर कंसलटेंट प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं.)
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