सम्पादकीय

नैतिक शिक्षा ही सामाजिक मूल्यों की स्थापना का सशक्त माध्यम

Gulabi Jagat
7 April 2022 10:25 AM GMT
नैतिक शिक्षा ही सामाजिक मूल्यों की स्थापना का सशक्त माध्यम
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नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए नया राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा विकसित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है
नरपतदान चारण। नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए नया राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा विकसित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस संबंध में डा. के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में एक समिति विचार विमर्श कर रही है। इसमें बचपन से ही बच्चों में वैज्ञानिक सोच के विकास पर ध्यान दिया जाएगा। साथ ही बच्चों में गणना संबंधी सोच और तर्क करने की क्षमता के विकास पर ध्यान दिया जाएगा। इसमें मौलिक कर्तव्य व अधिकार से जुड़े आयाम शामिल होंगे। लेकिन इन तमाम बातों के बीच एक अहम विषय की कोई चर्चा नहीं हो रही।
हम बात कर रहे हैं नैतिक शिक्षा के अनिवार्य शिक्षण के रूप में रूपरेखा के निर्माण की। दरअसल नई शिक्षा नीति और नवीन पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को शिक्षण विषय के रूप में शामिल करने की कोई बात नहीं की गई है। जबकि नैतिक शिक्षा ही सामाजिक मूल्यों की स्थापना का सशक्त माध्यम होती है। यह स्वीकार करना पड़ेगा कि अब तक हमारी शिक्षा प्रणाली मानवीय मूल्य और नैतिक चरित्र कायम करने में कहीं न कहीं नाकाम रही है। यही वजह है कि शिक्षितों के तबके में मानवीयता, संवेदना, विश्वास, सम्मान आदि नैतिक तत्वों का अभाव परिलक्षित हो रहा है। हर रोज अखबारों की खबरें यह प्रमाण देने में काफी है कि उच्च शिक्षित होने का दंभ भरने वाले समाज में दैत्य वृत्ति, निर्दयता, लालच, शोषण, घात, कत्ल, भ्रष्टाचार, ठगी आदि किस तरह से सामाजिक तानेबाने को खोखला कर रहे हैं।
समाज में आज हर जिम्मेदार नागरिक स्वयं को व्यथित पाता है।
क्या आपने इस बात पर कभी गौर किया कि अपराध के लिए कठोरतम सजा का प्रविधान है। कानून की सख्ती है, फिर भी अपराधों के ग्राफ में इजाफा हो रहा है। संज्ञेय अपराध बढ़े हैं। ऐसी दशा में हमें उन अन्य बातों पर विचार करना होगा जो समाज के अपराध मुक्ति में सहायक हो। इस स्थिति में शिक्षा से इसके सहसंबंध को देखा जाना महत्वपूर्ण हो जाता है। विशेषतया नैतिक शिक्षा की उपयोगिता को। यह भी हैरानी वाली बात है कि नैतिकता को अक्सर नैसर्गिक गुण बताकर इसे किसी को सिखाने से परहेज करने के कुतर्क को अक्सर हवा मिलती रही है। लेकिन सही अर्थ में नैतिकता सामाजिक गुण है, जिसे समाज द्वारा किसी व्यक्ति में प्रतिस्थापित किया जा सकता है। इस तरह अपराध नियंत्रण में नीतिपरक शिक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। नीति और मूल्य आधारित शिक्षा द्वारा चरित्र निर्माण होने पर सरकार को अपराध नियंत्रण पर कोई अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ेगा।
समझना होगा कि समाज के नैतिक पतन का सीधा सा संबंध शिक्षा से जुड़ा है। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की यह खामी है कि देश में जिस तरह के नैतिक आचार-व्यवहार का परिचय दिया जाना चाहिए उसे यह प्राप्त करने में असफल रही है। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में भौतिकता की अधिकता है और नैतिकता का अभाव। दरअसल शिक्षा ही मानवीय और नैतिक मूल्यों की स्थापना का सशक्त माध्यम है। हमारी शिक्षा का दर्शन सामाजिक और मानवीय होना चाहिए। यह एक सीमा तक सही है कि हम रोजगारपरक शिक्षा से डाक्टर, इंजीनियर, विज्ञानी, उद्यमी तैयार कर रहे हैं, मगर नकारात्मक पहलू यह है कि इसी शिक्षा पद्धति से हम अपने संस्कारों और समाज के मूल्यों को हटा रहे हैं। जरूरत है ऐसी शिक्षा व्यवस्था की जो पूर्णतया शोषणमुक्त और न्यायसंगत समाज का निर्माण करने में सहायक हो। यह लक्ष्य तभी पूरा किया जा सकता है जब स्कूल और कालेज में नैतिक शिक्षा का पाठ अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाए। यहां नैतिक शिक्षा देने से मतलब केवल पाठ्यपुस्तक और परीक्षा से नहीं है। इसका मतलब आदर्श मूल्यों, आदर्श पुरुषों, आदर्श महिलाओं, आदर्श कार्यों से जुड़ी सीख अकादमिक शिक्षा के साथ देने से है।
स्मरणीय यह भी है आज से करीब तीन चार दशक पहले तक नैतिक शिक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता था। बाद में इसे किसी षड्यंत्र के तहत हटाया गया। विगत कई वर्षों से शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बच्चों को रोजगार और आजीविका के लिए सक्षम बनाना रह गया है। यदि हम अपने वेदों और पुरातन साहित्य में वर्णित प्राचीन शिक्षा के प्रकार पर विमर्श करें तो पाएंगे कि उनमें वर्णित शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को जीवन के लिए तैयार करना था, मात्र जीविका के लिए नहीं। और शायद यही कारण था कि ऐसी शिक्षा से उत्पन्न हुई पीढ़ी नैतिक मूल्यों से सुसज्जित समाज का निर्माण करती थी। यदि एक देश का विद्यार्थी नैतिक मूल्यों से रहित होगा, तो उस देश का कभी विकास नहीं हो सकता। शरीर विज्ञान के अनुसार नैतिकता पर आधारित चरित्रवान व्यक्ति का मानसिक संतुलन सदैव बना रहता है। पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा अनिवार्य करने से छात्रों में राष्ट्रीय चरित्र विकसित होगा।
उच्च आदर्श चरित्र निर्माण ही राष्ट्र की रीढ़ है। इसलिए बच्चों को सदाचारी और जिम्मेदार जीवन जीने की शिक्षा दी जानी चाहिए, न कि केवल आजीविका कमाने की। यह भी जानना चाहिए कि नैतिक मूल्यों का विस्तार व्यक्ति से विश्व तक और जीवन के सभी क्षेत्रों में होता है। व्यक्ति-परिवार, समुदाय, समाज, राष्ट्र से मानवता तक नैतिक मूल्यों की यात्रा होती है। एक-एक अच्छे व्यक्ति से एक अच्छा परिवार बनेगा, एक-एक अच्छे परिवार से एक अच्छा समाज और एक अच्छा समाज सुसभ्य देश की पहचान बनेगा।
[शिक्षा मामलों के जानकार]
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