सम्पादकीय

बॉलीवुड में नैतिक गिरावट

Gulabi
22 July 2021 4:02 PM GMT
बॉलीवुड में नैतिक गिरावट
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सामाजिक रिश्तों पर चरित्र के मामलों से बॉलीवुड पिछले लम्बे समय से बदनाम रहा है, लेकिन

सच कहूं। सामाजिक रिश्तों पर चरित्र के मामलों से बॉलीवुड पिछले लम्बे समय से बदनाम रहा है, लेकिन इसकी हद तो तब हो गई जब अभिनेत्री कंगना रणौत ने बॉलीवुड को 'गट्टर' करार दे दिया। ताजा मामला अभिनेत्री शिल्पा शैट्टी के पति राज कुन्द्रा पर अश्लील फिल्में बनाने का है। उनको गिरफ्तार कर लिया गया है। इससे पहले एक्टर सुशांत सिंह राजपूत द्वारा की गई आत्महत्या ने पूरे बॉलीवुड को हिला दिया था। फिल्म नगरी में नशे की चर्चा बॉलीवुड का एक और बुरा चेहरा सामने लेकर आई थी। इसी तरह कॉस्टिंग काऊच के चलते लड़कियों के शोषण के आरोपों के कारण भी बॉलीवुड अभिनेत्रियों को निराशा का सामना करना पड़ा।

कभी बलराज साहनी जैसे प्रसिद्ध कलाकार ने बड़े ही दु:खी हृदय से कहा था कि फिल्म नगरी में सफलता की सीढ़ियां चढ़ने के लिए युवा कलाकारों को शोषण का शिकार होना पड़ता है, खासकर लड़कियों को। इस बदनामी के कारण आज भी अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों को बॉलीवुड में भेजने से झिझकते हैं। नि:संदेह कलाकार को रोजी-रोटी की आवश्यकता है लेकिन फिल्म जगत में कला को इंडस्ट्री का ऐसा रूप दे दिया गया है, जहां केवल यही मुख्य रखा जाता है कि जो चलता है, जो बिकता है, वही करो। फिल्मों का बजट सैकड़ों करोड़ों रूपये तक पहुंच गया है। फिल्म सीरियल को हिट करने के लिए अनैतिक तरीके भी इस्तेमाल किए जाते हैं। पैसा कमाने की अंधी दौड़ में समाज की छोड़िए, किसी कानून की भी परवाह नहीं रह गई है। अब बात पोर्न (अश्लील) फिल्मों तक पहुंच गई है व प्रसिद्ध कारोबारी भी अनैतिकता की तरफ चल पड़े हैं।
दरअसल यह कला का हनन है। मनोरंजन के नाम पर कला के सामाजिक संदेश को मिट्टी कर दिया गया है। नग्नता फिल्मों में एक आवश्यक हिस्सा बना दी गई है। अभिनेता समाज के लिए कभी प्रेरणा का स्त्रोत होते थे, जिनके कपड़े, बाल रखने के तौर-तरीकें सहित उनकी हर चीज को युवा पीढ़ी फैशन के रूप में अपनाती रही है। लेकिन यहां अब रिश्ते-नाते इस तरह रूप बदल रहे हैं कि भारतीय संस्कृति व संस्कारों में वो फिट नहीं बैठ रहे। बॉलीवुड कलाकारों में बढ़ रहा तलाक का रूझान भी चिंताजनक है, जिसका समाज पर बहुत ही बुरा असर पडेगा। अब समय है कि बॉलीवुड के जागरूक लोग आगे आएं व सिर्फ पैसों का खेल बन चुकी इस इंडस्ट्री को भारतीय समाज के ऊंचे नैतिक-मूल्यों के साथ जोड़कर इसके वास्तविक उद्देश्य समाज के स्वच्छ विकास को आगे बढ़ाएं।

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