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पिछले दिनों एक खबर ने दुनिया भर का ध्यान खींचा। खास तौर से प्रकृति और पशुओं से जुड़ाव रखने वाले लोग इस खबर से ज्यादा हैरान हुए
कुमार रहमान। पिछले दिनों एक खबर ने दुनिया भर का ध्यान खींचा। खास तौर से प्रकृति और पशुओं से जुड़ाव रखने वाले लोग इस खबर से ज्यादा हैरान हुए। खबर थी महाराष्ट्र में मराठवाड़ा के मजलगांव तहसील के लावुल गांव से। मीडिया रिपोर्ट्स में लगातार दावा किया जा रहा था कि इस गांव में बंदर कुत्तों से प्रतिशोध ले रहे हैं। उन्होंने अब तक 250 कुत्ते के पिल्लों को मार दिया है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह तादाद 80 तक बताई जा रही थी। संख्या अतिश्योक्तिपूर्ण हो सकती है, लेकिन अहम बात है बंदरों का कुत्तों से प्रतिशोध लेना! यही वह एक बात थी जिसकी वजह से इस खबर से वाकिफ सभी लोग अचंभित थे। खास तौर से पशु विशेषज्ञों के लिए यह बात ज्यादा हैरान करने वाली थी।
अब तक हम सभी ने कुत्ते और बंदर की छेड़छाड़ और दोस्ती की खबरें ही पढ़ी सुनी थीं। प्रतिशोध की बात पहली बार सामने आई। खबर के मुताबिक लावुल गांव में दो बंदर कुत्ते के पिल्लों को उठा ले जा रहे थे।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि बंदर उन पिल्लों को ऊंचाई पर ले जाकर नीचे फेंक दे रहे थे। कुछ खबरों के मुताबिक यह पिल्ले भूख और प्यास से जब मर जाते थे तो बंदर इन्हें नीचे फेंक देते थे। दोनों बंदरों को जाल लगा कर वन विभाग ने पकड़ लिया। इसके लिए भी पिल्लों को चारे के लिए इस्तेमाल किया गया और दोनों बंदर ट्रैप में फंस गए।
बंदरों के इस तरह से प्रतिशोध की बात चिंता में डालने वाली थी। जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास खत्म होते जा रहे हैं। इस वजह से रिहाइश को लेकर मनुष्य़ से उनका संघर्ष बढ़ा है। जिस तरह से कुत्ते पालतू हो गए हैं, उसी तरह से बंदर भी आबादी के बीच रह कर काफी कुछ सीख गए हैं। जंगल में रहने वाला बंदर टिफिन नहीं खोल पाता है, लेकिन इनसानों के बीच रहने वाला बंदर टिफिन खोल लेता है। वह पाइप की टोंटी से पानी पीने के बाद उसे बंद भी कर लेता है।
कुत्ते और बंदरों के बीच इस तरह का संघर्ष शहर और गांवों में आम बात है। उनमें यह संघर्ष भोजन और क्षेत्र को लेकर देखने को आमतौर पर मिलता है। जमीन पर उतरते ही कुत्ते बंदर का पीछा करने लगते हैं। कई बार बंदर उन्हें टीप मारने या छेड़ने का भी काम करते हैं, जिसकी वजह से कुत्ते खीझ कर उन पर हमला कर देते हैं। यह महज एक संघर्ष है, प्रतिशोध नहीं।
अब तक हम सभी ने कुत्ते और बंदर की छेड़छाड़ और दोस्ती की खबरें ही पढ़ी सुनी थीं। प्रतिशोध की बात पहली बार सामने आई। - फोटो : Social media
लावुल गांव से एक कहानी यह भी सामने आई कि कुछ कुत्तों ने बंदर के एक बच्चे को मार डाला, इसलिए अब बंदर बदला ले रहे हैं। तो क्या यह माना जाना चाहिए कि बंदर कुत्तों से प्रतिशोध ले रहे हैं? या उनके बीच यह जीवन का संघर्ष है?
यही सवाल हमने एशिया के माने जाने शोध संस्थान भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान बरेली के प्रधान वैज्ञानिक और वन्य जीव केंद्र के प्रभारी डॉ. अजीत पावड़े से पूछी। उन्होंने कहा कि जानवरों में प्रतिशोध की भावना नहीं होती है, क्योंकि उनका दिमाग इतना विकसित नहीं होता। वह कुछ तकनीकी बातें इनसानों से सीख जरूर लेते हैं, लेकिन जटिल भावनाओं को वह कॉपी नहीं कर पाते हैं।
बंदर सॉफ्ट ड्रिंक की बोतल खोलना, दरवाजे की कुंजी खोलना या फिर फ्रिज खोलकर सामान निकालना सीख जाते हैं। इसे उनके विकास के तौर पर नहीं बल्कि एक प्रैक्टिस के तौर पर देखना चाहिए। वह सिर्फ हमारी आदतों को कॉपी कर रहे होते हैं, जिसे वह देखते हैं।
डॉ. पावड़े ने एक दिलचस्प वाकिया बताया-
एक बार वह फौज के एक घोड़े का इलाज करने के लिए गए। जब वह घोड़े के पास गए तो वह प्यार से उनका हाथ चाटने लगा। उन्होंने इलाज के तौर पर उस घोड़े को एक इंजेक्शन लगाया। इसके बाद वह जब भी घोड़े के इलाज के लिए जाते, वह घोड़ा उन्हें देखते ही गुस्से से अपने बाड़े की बल्ली पर दोलत्ती मारने लगत।
डॉ. पावड़ कहते हैं, "इसे घोड़े का प्रतिशोध नहीं बल्कि प्रतिरोध कहेंगे। वह मुझसे उसे मिलने वाली तकलीफ के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करता था।"
जानवर अपने खिलाफ होने वाले व्यवहार को कई बार पूरी जिंदगी याद रखते हैं। जब स्निफर कुत्ते के पिल्ले को ट्रेनिंग दी जाती है, तो वह किसी का दिया हुआ कुछ भी न खाएं, इसके लिए उन्हें बचपन में ही एक बड़ा सबक दे दिया जाता है। सड़क पर जाते किसी अनजान व्यक्ति को बुलाया जाता है। इसके बाद उसे पिल्ले की पसंद की कोई चीज देकर कहा जाता है कि जब पिल्ला इसे खाने के लिए अपना मुंह आगे बढ़ाए तो वह उसके मुंह पर भरपूर झापड़ रसीद करे।
पिल्ले के साथ ऐसा ही कई बार किया जाता है। वह जब भी वह वस्तु खाने के लिए मुंह आगे करता है, वह अजनबी उसे जोर का झापड़ रसीद करता है। इसके बाद यह झापड़ उसके लिए जीवन भर का सबक बन जाता है। वह मानने लगता है कि उसने किसी बाहरी का दिया कुछ खाने को मुंह बढ़ाया तो उसे भरपूर झापड़ खाने को मिलेगा। इस व्यवहार के बावजूद वह पिल्ला बड़ा होने पर किसी भी अजनबी से प्रतिशोध लेने के बारे में नहीं सोच पाता है।
मेरे एक पत्रकार मित्र अपनी बाईपास सर्जरी करा कर लौटे थे। उन्हें डॉक्टर ने सुबह के वक्त थोड़ा सा चलने के लिए बताया था। गर्मियों की एक सुबह वह घर से बाहर टहलने के लिए निकले तो एक बंदर उनका पैर पकड़ कर बैठ गया। सर्जरी की वजह से वह कुछ कर भी नहीं पा रहे थे। इसके बाद उनका बेटा चना लेकर आया और पास में बिखेर दिए। बंदर पैर छोड़कर चला गया। इसी तरह से मथुरा के बंदर चश्मा या मोबाइल लेकर भाग जाते हैं। बाद में खाने का सामान दिए जाने पर वह सामान छोड़ देते हैं। यह बातें बताती हैं कि इनसानों के साथ रहने वाले बंदरों के बिहैवियर में बदलाव हो रहा है, लेकिन वह जटिल भावनाएं नहीं सीख पाते हैं।
डॉ. हरि सिंह गौर सागर केंद्रीय विश्वविद्यालय की कुलपति और एनिमल साइंस की प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता बंदरों के प्रतिशोध की बात पर कहती हैं-
जानवरों में कम्यूनल फीलिंग्स पाई जाती हैं, लेकिन यह रिवेंज नहीं है। उन्होंने कहा, "जानवर इनसान की तरह नहीं सोचते हैं। बंदरों में पैरेंटल केयर बहुत ज्यादा होती है। वह इसे टालरेट नहीं करते।"
उन्होंने महाराष्ट्र के लावुल गांव की घटना के बारे में कहा कि वहां के बंदरों का व्यवहार को सुरक्षा के नजरिए से देखा जाना चाहिए। सुरक्षा की यह भावना उनमें कुदरती तौर पर पाई जाती है। अगर किसी कार से कोई बंदर कुचल जाता है तो वह हर कार पर हमला करने लगते हैं, क्योंकि इससे उन्हें खुद के लिए खतरा महसूस होता है। यह प्रतिशोध नहीं, बल्कि सुरक्षात्मक व्यवहार है।
Rani Sahu
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