सम्पादकीय

मौद्रिक नीति: महंगाई पर अंकुश लगाने की कवायद

Neha Dani
25 April 2022 1:45 AM GMT
मौद्रिक नीति: महंगाई पर अंकुश लगाने की कवायद
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महंगाई काबू में आ सकती है और उसके बाद सस्ती ब्याज का दौर फिर से शुरू हो सकता है।

भारतीय स्टेट बैंक ने कोष पर सीमांत लागत आधारित ऋण दर (एमसीएलआर) में 15 आधार अंकों का इजाफा किया है, जो विभिन्न अवधि के ऋणों पर 15 अप्रैल से प्रभावी हो गया है। इससे आम आदमी, कारोबारियों एवं उद्योगपतियों को ऋण पर ज्यादा किस्त और ब्याज चुकाना होगा। माना जा रहा है कि ऋण दर बढ़ने से उफनती महंगाई के दौर में लोगों की मुश्किलें और भी ज्यादा बढ़ेंगी। बैंक ने एक वर्ष की अवधि के लिए एमसीएलआर को बढ़ाकर 7.1 फीसदी कर दिया है, जबकि दो और तीन वर्ष के लिए एमसीएलआर को बढ़ाकर क्रमश: 7.3 प्रतिशत और चार प्रतिशत कर दिया है। एमसीएलआर बैंकों की मानक ब्याज दर होती है, जिस पर बैंक ग्राहकों को ऋण देते हैं।

भारतीय स्टेट बैंक के साथ कुछ और बैंकों ने भी अपनी ऋण दरों में बढ़ोतरी की है। बैंक ऑफ बड़ौदा ने 12 अप्रैल को एमसीएलआर में पांच आधार अंकों की वृद्धि की है। वहीं ऐक्सिस बैंक ने एमसीएलआर में पांच आधार अंकों की बढ़ोतरी की है, जबकि कोटक महिंद्रा ने एक वर्ष की अवधि के लिए एमसीएलआर में पांच आधार अंकों की वृद्धि की है, जिससे यह 7.4 प्रतिशत के स्तर पर आ गया है। कोटक महिंद्रा के एमसीएलआर की बढ़ी हुई नई दर 16 अप्रैल से प्रभावी हो गई है।
बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए वित्तीय प्रणाली में मौजूद तरलता को सोखना जरूरी है, क्योंकि सस्ती दर पर ऋण मिलने से लोग उधारी लेकर ज्यादा खर्च करते हैं, जिससे महंगाई को बढ़ावा मिलता है। फिर भी, जोखिम लेते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने ताजा मौद्रिक समीक्षा में समायोजन रुख को कायम रखा था, लेकिन यह भी साफ कर दिया था कि महंगाई को नियंत्रित करना केंद्रीय बैंक की प्राथमिकता में है, और जल्द ही इसे नियंत्रित करने के लिए वह नीतिगत दरों में इजाफा कर सकता है।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण महंगाई काबू में नहीं आ रही है। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित महंगाई दर 14.55 प्रतिशत के साथ मार्च में चार महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई, जो पिछले वर्ष के नवंबर महीने में दर्ज 14.87 प्रतिशत से मामूली रूप से कम है। नवंबर महीने में भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत उच्च स्तर पर बनी हुई थी, लेकिन साथ में कई घरेलू कारण भी उच्च महंगाई स्तर के लिए जिम्मेदार थे।
वित्त वर्ष 2022 में डब्ल्यूपीआई दो अंकों में बनी रही, जबकि औसत मुद्रास्फीति 12.96 प्रतिशत रही, जो 30 वर्षों में सबसे अधिक थी। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के बीच डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति में आए उछाल में सबसे बड़ा योगदान कच्चे तेल का है। महंगाई को देखते हुए रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023 के लिए, अपने वृद्धि अनुमान को संशोधित कर 7.8 प्रतिशत से घटा कर 7.2 प्रतिशत कर दिया है, जबकि पूरे वर्ष के लिए मुद्रास्फीति अनुमान को 4.5 फीसदी से बढ़ाकर 5.7 फीसदी कर दिया है।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2021-22 में बैंक ऋण में 8.59 प्रतिशत और जमा में 8.94 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। ऋण वितरण के प्रतिशत में वृद्धि होना बताता है कि आर्थिक गतिविधियों, जैसे मांग और आपूर्ति में तेजी आ रही है। यह इसका भी संकेत है कि देश कोरोना काल के नकारात्मक प्रभावों से बाहर आ रहा है। हालांकि, ऋण दर के बढ़ने से ऋण की वृद्धि रफ्तार में रुकावट आ सकती है। वर्तमान में महंगाई को काबू करने के लिए रिजर्व बैंक महंगी दर पर बैंकों को पूंजी उपलब्ध करा रहा है, जिसके कारण बैंकों ने ऋण दरों में इजाफा करना शुरू कर दिया है।
इससे आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के आसार हैं, क्योंकि महंगी दर पर कर्ज लेने से आमजन, कारोबारी और उद्योगपति परहेज करेंगे, जिससे विविध उत्पादों की मांग और आपूर्ति में कमी आएगी। मौजूदा स्थिति में शीघ्र सुधार की संभावना कम है, क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है। यदि मानसून ठीक रहा और युद्ध खत्म हो गया, तो देश में चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही तक महंगाई काबू में आ सकती है और उसके बाद सस्ती ब्याज का दौर फिर से शुरू हो सकता है।

सोर्स: अमर उजाला

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