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By: divyahimachal
हिमाचल मंत्रिमंडल की बैठकों से कहीं आगे निकलती हुई सरकार की मंडे मीटिंग अपनी हैसियत के साथ ऐलान और रणनीति जोड़ रही है, तो इस पद्धति के गुणात्मक असर को यह प्रदेश सफल होते देखना चाहता है। मंत्रिमंडल में सुक्खू सरकार होती है, तो मंडे मीटिंग मुख्यमंत्री का नित नया अवतार पेश करती है। जुगत बैठाने के लिए एक सशक्त निर्णायक मंच चाहिए और इस तरह हम देख सकते हैं कि ‘मंडे का एक्शन’ अपनी निरंतरता के साथ प्रदेश की अपेक्षाओं, जरूरतों और चुनौतियों पर हर हफ्ते एक नई कहानी लिख रहा है। आपदा के इस दौर में केंद्र को कठघरे में खड़ा करने की जुर्रत यह पहाड़ी राज्य कर रहा है, तो आंतरिक मामलों के दलदल में फंसे आर्थिक रथ व विपक्षी प्रतिकूलता के सम्मुख नई परिभाषाएं जोड़ रहा है। यह मुख्यमंत्री का एक्शन माना जाएगा कि वह पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के कुछ ड्रीम प्रोजेक्टों को ठंडे बस्ते में डालकर, उन्हें मंडी की परिधि तक ही बयान देने को उकसा रहे हैं। मंडी की शिवधाम, विश्वविद्यालय व प्रस्तावित एयरपोर्ट आदि परियोजनाएं पूर्व मुख्यमंत्री की सियासी कसौटी पर मापी जाती हैं। जाहिर तौर पर शिवधाम परियोजना ऐसे चरण में फंसी है, जहां भाजपा के लिए मुद्दा और जयराम ठाकुर के लिए एक सपना रुका हुआ है। इसी तरह विवादित सियासी पट्टी पर आकर मंडी एयरपोर्ट का ख्वाब रेखांकित करके भी पूर्व मुख्यमंत्री यह तो नहीं कह सकते कि वर्तमान मुख्यमंत्री कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार के लिए दो हजार करोड़ क्यों जाया कर रहे हैं।
मंडी विश्वविद्यालय के पर काटकर वर्तमान सरकार ने प्रश्नों की फांस में क्षेत्रवाद को फंसा दिया है। इसके अस्तित्व में पूर्व मुख्यमंत्री की वकालत को हल्के से नहीं लिया जा सकता, फिर भी वह एक सीमित परिधि में इन तीन परियोजनाओं की मिलकीयत में सियासत की धुरी तो बनेंगे ही। बहरहाल, हिमाचल की वर्तमान राजनीति में कांग्रेस की सत्ता को पढऩे के लिए ‘मंडे मीटिंग’ सबका ध्यान आकृष्ट कर रही है। यह एक पैकेज की तरह उस जनमंच को खरीद चुकी है, जो पिछली सरकार के आमंत्रण में जनसंवेदना को ढोता रहा है। मंडे मीटिंग दरअसल मुख्यमंत्री के प्रभुत्व का मनोविज्ञान तथा सरकार के एकछत्र साम्राज्य का प्रादुर्भाव है। यहां फाइलें लटकती नहीं और न ही विभिन्न समीक्षाओं की देहरियों पर घूमती हैं, बल्कि एक साप्ताहिक ऐलान की तरह सरकार अपने एक्शन मोड का संचालन कर रही है। इसी हफ्ते की सबसे बड़ी सुर्खी मंडे मीटिंग से ऐलान कर रही है कि आपदा प्रभावित करीब 13 हजार परिवारों को सरकार किराये के मकानों में ठहराएगी। यह एक बड़ा एक्शन ही नहीं, बल्कि सरकारी कामकाज की परिपाटी को बदलने की मंशा है।
अगर यही फैसला वाया मंत्रिमंडल आता, तो चर्चाओं के कई मंच व अनुमतियों के द्वार खुल जाते, लेकिन ‘मंडे मीटिंग’ हिदायत के पिटारे से एक त्वरित कार्रवाई का आदेश कर रही है। अंतत: ऐसे फैसले जिला स्तर पर प्रशासनिक मशीनरी को भी सक्रिय करते हुए लक्ष्य सौंप रहे हैं। अगले कुछ दिनों में आपदा प्रभावितों के लिए छत ढूंढने की नई परंपरा जब सामने आएगी, तो राहत की भूमिका भी बदलेगी और एक स्थायी समाधान भी होगा। ऐसे में मंडे मीटिंग एक तरह से व्यवस्था परिवर्तन के परचम को तीव्रता से फहराने का जरिया हो सकता है। वीभत्स मंजर और अपनी यादों के आशियाने से दूर हुए आपदा प्रभावित अगर अगली कार्रवाई व पुनर्वास तक, रहने के लिए ठौर हासिल करते हैं, तो आंसुओं को थामने का एक नजरिया भी सामने आ जाएगा। प्रदेश और समाज के बीच कुछ भूमिकाएं बांटी जा सकती हैं। समाज ऐसे फैसलों का लाभान्वित पक्ष व समर्थक बन जाएगा। समाज के जरिए यह राहत का अनूठा पैगाम और इसी तरह अगर सरकारी आवासीय सुविधा को स्थायी रूप से जनता की भागीदारी में पूरा किया जाए, तो सार्वजनिक धन की बचत भी होगी। प्रदेश के बेरोजगारों को अगर स्वरोजगार योजना के तहत सरकारी मुलाजिमों की आवासीय व्यवस्था के साथ जोड़ दें, तो एक मुकर्रर किराए के रूप में पढ़े-लिखे नौजवान ऐसे भवनों में निवेश करके अपनी पगार और सरकार को कम खर्च पर अधोसंरचना प्रदान कर पाएंगे।

Rani Sahu
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