सम्पादकीय

क्वाड में मोदी का विजय मन्त्र

Subhi
26 May 2022 3:51 AM GMT
क्वाड में मोदी का विजय मन्त्र
x
जापान की राजधानी टोक्यो में हुए चार अन्तमहाद्वीपीय देशों अमेरिका, भारत, आस्ट्रेलिया व जापान के संगठन क्वाड के शिखर सम्मेलन में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया है

आदित्य चोपड़ा; जापान की राजधानी टोक्यो में हुए चार अन्तमहाद्वीपीय देशों अमेरिका, भारत, आस्ट्रेलिया व जापान के संगठन क्वाड के शिखर सम्मेलन में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि रूस के साथ उसके सम्बन्ध अन्य किसी देश के साथ सम्बन्धों के सापेक्ष नहीं रहेंगे जबकि अमेरिका के साथ भारत आपसी भरोसे के बूते पर द्विपक्षीय सम्बन्धों को नई ऊंचाई देने में भी नहीं हिचकेगा। जाहिर है कि रूस के साथ भारत के सम्बन्धों को अमेरिका या किसी अन्य देश के चश्मे से नहीं देखा जा सकता है। भारतीय हितों को सर्वोच्च रखते हुए ही भारत अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी रणनीति तय करेगा और इसी नीति के अंतर्गत भारत की शुरू से ही मंशा रही है कि हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र पूरी तरह स्वतन्त्र रहे और शान्तिपूर्ण रहे। इस सन्दर्भ में भारत के पड़ोेसी चीन की नीति पूरी तरह इस क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाने की रही है जिसके प्रतिकार में भारत अमेरिका समेत जापान व आस्ट्रेलिया के नजरिये से सहमत नजर आता है मगर वह इसका हल सामरिक तरीकों में न देखते हुए कूटनीतिक वार्ताओं में देखता है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं निकलता है कि भारत यूक्रेन व रूस के मुद्दे पर भी इन तीनों देशों के नजरिये का समर्थन करे अतः श्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ हुई एकल वार्ता में रूस या यूक्रेन का कोई जिक्र नहीं किया और केवल मानवीयता के आधार पर मदद देने की भारत की सुविचारित नीति को ही केन्द्र में रखा। हमें गौर से यह विचार करना चाहिए कि हिन्द महासागर क्षेत्र भारत की अन्तर्राष्ट्रीय महत्ता को अपने नाम से ही दर्शाता है और बताता है कि इस जल मार्ग से होने वाले विश्व व्यापार के प्रति भारत की जिम्मेदारी किस हद तक हो सकती है। इसी का विस्तार प्रशान्त महासागर क्षेत्र में होने पर सकल अन्तरद्वीपीय व्यापार की गति विश्व के विभिन्न देशों के बीच वाणिज्य व व्यापार की गतिविधियों को बढ़ाती है जिसमें अमेरिका की भागीदारी भी हो जाती है। इसे देखते हुए चीन इस पूरे महासागरीय क्षेत्र में अपना वाणिज्यिक दबदबा कायम करने की गरज से अपनी सामरिक शक्ति का प्रदर्शन करके अपनी धौंस जमाना चाहता है। यह धौंस वह इस तरह जमाना चाहता है कि इस जल क्षेत्र में उसकी आर्थिक या वाणिज्यिक मनमानियों को कोई भी दूसरा देश खास कर अमेरिका चुनौती न दे सके। अतः भारत की भूमिका बहुत अधिक बढ़ जाती है और इस तरह बढ़ती है कि उसे साथ लिये बिना अमेरिका समेत दुनिया का दूसरा देश कुछ नहीं कर सकता। इस हकीकत को चीन को भी समझना चाहिए और हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में बिना किसी टकराहट के विश्व व्यापारिक गतिविधियों को निर्बाध रूप से चलाने में सहयोग करना चाहिए परन्तु चीन अपने आर्थिक हितों के आगे न्यायपूर्ण वाणिज्यिक गतिविधियों को तरजीह नहीं देना चाहता जिसकी वजह से इस जल क्षेत्र में तनाव पैदा होने की संभावनाएं बन रही हैं परन्तु चीन भारत का निकटतम पड़ोसी है और भारत के साथ उसके अच्छे व्यापारिक सम्बन्ध भी हैं अतः वह भारत को धौंस में लेने के ऐसे रास्ते अख्तियार करता रहता है जिससे भारत हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में उसका प्रभाव निरस्त या निस्तेज करने के अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों से दूर रहे। यही वजह है कि चीन ने भारत की लद्दाख व अरुणाचल सीमा पर अतिक्रमण करने की कार्रवाइयां कीं परन्तु भारत की तरफ से मुहतोड़ जवाब मिलने पर चीन के होश ठिकाने भी आ गये। इसके बावजूद सीमा पर उसकी उत्तेजक कार्रवाइयों पर लगाम नहीं लगी है। अतः चीन के मुद्दे पर प्रधानमन्त्री ने क्वाड बैठक में जो रुख अपनाया है वह पूर्णतः राष्ट्रहित में है और भारत की निडरता का परिचायक है। बेशक पिछले दो दशकों में भारत-अमेरिका सम्बन्धों में गुणात्मक सुधार आया है मगर इसके बावजूद अमेरिका पर आम भारतीय आंख मीच कर भरोसा करने को तैयार नहीं रहता है। यही वजह है कि प्रधानमन्त्री ने अमेरिका रक्षा सामग्री के भारत में निर्माण किये जाने के बारे में कई कदम आगे बढ़ा कर समझौता करना चाहा है। 'मेक इन इंडिया' के तहत अगर अमेरिकी आयुध सामग्री का उत्पादन होता है तो इससे आपसी भरोसे में भी भारी वृद्धि होगी। इसके साथ यह भी समझे जाने की जरूरत है कि मौजूदा वैश्विक घटनाक्रम में भारत को अमेरिका की इतनी जरूरत नहीं है जितनी कि अमेरिका को भारत की। अतः भारत को सभी दिशाओं में अपने हितों की रक्षा करते हुए क्वाड में भी आगे बढ़ना होगा।

Next Story