सम्पादकीय

मोदी की अमेरिका यात्रा

Subhi
23 Sep 2021 3:52 AM GMT
मोदी की अमेरिका यात्रा
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प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका की चार दिवसीय यात्रा पर रवाना हो चुके हैं। इस यात्रा का सर्वाधिक महत्व हिन्द महासागर व प्रशान्त क्षेत्र की निर्विघ्न सुरक्षा और शान्ति को लेकर रहने वाला है।

आदित्य नारायण चोपड़ा: प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका की चार दिवसीय यात्रा पर रवाना हो चुके हैं। इस यात्रा का सर्वाधिक महत्व हिन्द महासागर व प्रशान्त क्षेत्र की निर्विघ्न सुरक्षा और शान्ति को लेकर रहने वाला है। इस प्रशान्त व हिन्द महासागर क्षेत्र में हाल ही में जो नये अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व सन्धि के समीकरण बने हैं उनसे इस क्षेत्र के जंगी अखाड़ा बनने की आशंकाओं का उठना पूरी तरह गैर तार्किक भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि चीन लगातार पिछले कुछ वर्षों से इस सागरीय परिक्षेत्र में अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाता चला आ रहा है जिसे चुनौती देने के लिए हाल ही में अमेरिका, आस्ट्रेलिया व ब्रिटेन ने एक सुरक्षा समझौता किया है जिसके तहत आस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बियां सुलभ कराई जायेंगी। भारत के अनुसार यह तीन देशों के बीच विशुद्ध सुरक्षा समझौता है और इसका उस 'क्वैड' संगठन से कोई लेना-देना नहीं है जो इस क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने की गरज से चार देशों भारत,जापान,आस्ट्रेलिया व अमेरिका के बीच बना है। यहां यह लिखना बेहद जरूरी है कि 80 के दशक भारत लगातार यह मांग करता रहा था कि हिन्द महासागर क्षेत्र को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शान्ति क्षेत्र घोषित किया जाये। इसमें भारत की भविष्य की वे चिन्ताएं छिपी हुई थीं जो अब सामने आ रही हैं। आस्ट्रेलिया,ब्रिटेन,अमेरिका (आक्स) के बीच जो सुरक्षा समझौता हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र को लेकर हुआ है उसमें भारत सदस्य नहीं है। कुछ कूटनीतिज्ञों को इस पर आश्चर्य हो सकता है कि हिन्द महासागर क्षेत्र से सम्बद्ध किसी भी मसले पर भारत को किस प्रकार अनदेखा किया जा सकता है? यह सागर क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए पूरी दुनिया का मार्ग खोलता है जिसकी वजह से चीन व अमेरिका दोनों की इसमें अपार रुचि है। जबकि भारत व आस्ट्रेलिया दोनों के लिए यह अपनी सीमाओं का प्रतिरक्षक है। आस्ट्रेलिया बड़ी सहूलियत के साथ ब्रिटेन व अमेरिका से सन्धि करके खुद को नौसैनिक दृष्टि से सशक्त बनाने की भूमिका में आ गया है जबकि भारत को क्वैड संगठन का सदस्य बन कर ही सन्तोष करना पड़ा है परन्तु भारत किसी भी सूरत में यह नहीं चाहता है कि इस महासागरीय क्षेत्र को चीन की दादागिरी के चलते सैन्या स्पर्धा में झोंक दिया जाये अतः अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ उनकी मुलाकातें और बातचीत बहुत महत्वपूर्ण होगी। श्री मोदी जब विदेशी धरती पर होते हैं तो उनके साथ भारत के प्रत्येक राजनीतिक दल के साथ 130 करोड़ हिन्दोस्तानियों का बल रहता है। भारत की लोकतान्त्रिक राजनीति की यह विशेषता है कि भारत से बाहर विदेश में इस देश के हर राजनीतिक दल की वही नीति होती है जो सत्ता पर बैठी हुई सरकार की होती है। अतः अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ श्री मोदी की बातचीत बराबरी के आधार पर होगी और भारत के हितों को सर्वोपरि रखते हुए होगी। चीन भारत का एेसा निकटतम पड़ोसी है जिसके साथ आपसी सम्बन्ध तय करते हुए हमें द्विपक्षीय आधार पर अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करनी होगी। इसे देखते हुए हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है और वह चीन व अमेरिका के बीच एेसे स्वतन्त्र मध्यस्थ के उत्प्रेरक स्वरूप में आ जाता है जिससे पूरे क्षेत्र की शान्ति किसी भी रूप में भंग न हो पाये। बेशक चीन के साथ भारत का भू सीमा विवाद चल रहा है मगर सागर क्षेत्र को शान्त बनाये रखने के लिए भारत चीन पर दबाव बनाने की स्थिति में है।संपादकीय :संत, सम्पत्ति और साजिशआंखें नम हुई...पाक और चीन का फौजी रुखकोरोना काल में नस्लभेदचन्नीः एक तीर से कई शिकारस्पेस टूरिज्म : अरबपतियों का रोमांच याद रखा जाना चाहिए कि 70 के दशक में भारत ने हिन्द महासागर में 'दियेगो गार्शिया' में अमेरिका द्वारा परमाणु सैनिक अड्डा बनाने का भी पुरजोर विरोध किया था परन्तु 90 के दशक में सोवियत संघ के बिखर जाने के बाद विश्व की राजनीतिक परिस्थियां बदल चुकी हैं जिसे देखते हुए भारत को चीन के बढ़ते हौसलों को भी नियन्त्रित करने की जरूरत पड़ेगी। मगर यह कार्य मध्यस्थ या उदासीन उत्प्रेरक रह कर ही बेहतरी के साथ किया जा सकता है जिसकी वजह से भारत ने 'आक्स' से बाहर रहने को विपरीत रूप में नहीं लिया है। मगर हम अमेरिका पर भी आंख मींच कर यकीन नहीं कर सकते हैं क्योंकि हमने देखा है कि हमारे पड़ोसी अफगानिस्तान में उसने क्या रंग बदला है और वहां की सत्ता किस तरह जल्दबाजी में तालिबान के हाथ में सौंपी है और पाकिस्तान के साथ 'दिलरुबाई' दिखाई है। प्रधानमन्त्री मोदी इस यात्रा के दौरान न्यूयार्क में राष्ट्रसंघ की साधारण सभा को भी सम्बोधित करेंगे और उम्मीद है कि वह इस सम्बोधन में भारतीय उपमहाद्वीप की उन चिन्ताओं को सतह पर लायेंगे जो अफगानिस्तान में पुनः आतंकवाद के उठने से मुतल्लिक हैं। पाकिस्तान ने जिस तरह उपमहाद्वीपीय देशों के संगठन दक्षेस (सार्क) की बैठक को पलीता लगाया है उसका अख्स भी कहीं न कहीं इस यात्रा में आ सकता है क्योंकि पाकिस्तान की जिद थी कि सार्क बैठक में तालिबान प्रतिनिधि को भी शामिल किया जाये। पाकिस्तान अफगानिस्तान में अपनी कठपुतली तालिबान सरकार काबिज करने की कोशिशें जिस तरह कर रहा है उससे पूरे क्षेत्र को खतरा हो सकता है। अतः भारत को दोनों तरफ जल क्षेत्र व भू क्षेत्र में अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करनी है। साथ ही भारत के सामने जल क्षेत्र को लेकर यह भी सच्चाई है कि हिन्द-महासागर क्षेत्र में आक्स सन्धि से एक महत्वपूर्ण यूरोपीय देश फ्रान्स बहुत नाराज है। उसकी नाराजगी इस बात को लेकर प्रमुख रूप से है कि आस्ट्रेलिया के साथ उसका 65 अरब डालर का परमाणु पनडुब्बी समझौता बट्टे-खाते में चला गया। अतः सामरिक सरोकार जिस तरह से हिन्द महासागर क्षेत्र में उभरे हैं उनको सन्तुलित किये जाने की जरूरत बनी रहेगी।

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