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- जी-20 से मोदी का...
आदित्य चोपड़ा; जी-20 देशों के सम्मेलन का आज इंडोनेशिया के खूबसूरत शहर बाली में समापन हो गया और अगले वर्ष के लिए इसकी अध्यक्षता भारत को सौंप दी गई। सम्मेलन में मुख्य रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में बदलती वैश्विक परिस्थितियों पर विचार हुआ और एक राय से सभी देश इस बात पर सहमत नजर आये कि वर्तमान समय युद्ध का नहीं बल्कि आपसी विचार- विमर्श व बातचीत का है। सम्मेलन में हालांकि रूसी राष्ट्रपति श्री पुतिन नहीं आये और उनके देश का प्रतिनिधित्व रूसी विदेश मन्त्री सर्गेई लावारोव ने किया परन्तु इतना निश्चित है कि अमेरिका व अन्य पश्चिमी यूरोपीय देश जैसे फ्रांस व ब्रिटेन मिलकर रूस को अलग-थलग नहीं कर सके। इसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है। दुनिया के चुनिंदा विकसित व विकासशील देशों के इस संगठन यूक्रेन ने की सीमाओं के रूस द्वारा अतिक्रमण करने का संज्ञान तो लिया मगर इसे सुलझाने के लिए कूटनीति व बातचीत को ही एकमात्र रास्ता बताते हुए कहा कि वर्तमान दौर संघर्षों का न होकर सहयोग व शान्तिपूर्ण तरीकों से विवादों का हल निकालने का है जिसमें कूटनीति का प्रयोग किया जाना चाहिए। रूस-यूक्रेन युद्ध के बारे में जब प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से वार्ता की थी तो इन्हीं शब्दों का प्रयोग किया था। अतः जी-20 देशों के समापन प्रपत्र में इन्हीं शब्दों का प्रयोग किया जाना भारत की महत्ता दर्शाता है। भारत ने सम्मेलन में गुजरे कोरोना संकट व जलवायु परिवर्तन को विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़ा विनाशक बताते हुए कहा कि इससे विभिन्न देशों के बीच की विभिन्न वस्तुओं की सप्लाई या आपूर्ति शृंखला टूट गई जिसकी वजह से उपभोक्ता वस्तुओं की कमी महसूस होने लगी। अतः कोरोना के बाद नयी विश्व व्यवस्था की जरूरत महसूस हो रही है। भारत का यह शुरू से ही मानना रहा है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए जिस प्रकार गरीब या विकासशील कहे जाने वाले देशों पर विकसित देशों द्वारा प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ या आधुनिकतम वैज्ञानिक विधियों द्वारा प्रदूषित गैसों के अत्याधिक उत्सर्जन का विपरीत असर हुआ है, उसकी भरपाई अमीर देशों को ही करनी चाहिए जिससे ये देश अपने विकास के लिए वैकल्पिक तरीकों का उपयोग करने में सक्षम हो सकें। परन्तु सम्मेलन ने इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है। जबकि जलवायु परिवर्तन का विनाशकारी असर विकासशील देशों पर ही पड़ रहा है। इसके साथ यह भी सत्य है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत सबसे ज्यादा प्रभावी देश माना जाता है। इस सम्मेलन से एक तस्वीर और साफ हो रही है कि वर्तमान विश्व परिस्थितियों में बहुदेशीय सहयोग व सहकार के साथ ही द्विपक्षीय आधार पर सहयोग की दिशा में भी देश आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं। सम्मेलन के अवसर पर जिस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन व चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच वार्तालाप हुआ है उसमें दोनों देशों ने आपसी मुद्दों पर खुल कर चर्चा की है। ताइवान के मुद्दे पर जिस तरह चीन व अमेरिका के राष्ट्रपतियों ने अपना-अपना पक्ष स्पष्ट रूप से रखा उससे स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच खड़ा हुआ 'कांटा' दोनों ही पक्षों को चुभ रहा है और दोनों ही इस कांटे को कुन्द करने की तरफ चल सकते हैं क्योंकि अमेरिका ने परोक्ष रूप से ताइवान का समर्थन करते हुए भी 'एक चीन' नीति का समर्थन किया। प्रधानमन्त्री श्री मोदी का चीनी राष्ट्रपति के साथ बातचीत का सुनिश्चित कार्यक्रम तो तय नहीं हो पाया मगर रात्रि भोजन के अवसर पर जिस तरह दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के साथ अनौपचारिक बातचीत की उससे दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव में कमी जरूर आनी चाहिए। श्री मोदी ने जून 2020 में हुए लद्दाख के गलवान घाटी संघर्ष के बाद पहली बार शी जिनपिंग से व्यक्तिगत बातचीत की। यह तथ्य स्वयं में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी वर्ष के सितम्बर महीने में दोनों नेता 'शंघाई सहयोग संगठन' सम्मेलन में भी मिले थे मगर दोनों के बीच शिष्टाचार बातचीत तक नहीं हो सकी थी। बाली में श्री मोदी ने पहल करके जिस तरह शी जिनपिंग को पकड़ा उससे साफ जाहिर होता है कि भारत चीन से अपनी बात पुरजोर तरीके से करने का इच्छुक है। श्री मोदी ने ब्रिटेन के नव निर्वाचित प्रधानमन्त्री श्री ऋषि सुनक से भी द्विपक्षीय वार्ता की। श्री सुनक इसी सम्मेलन के दौरान रूस को एक बेतरतीब देश तक कह चुके हैं। जाहिर है कि इस मुद्दे पर भारत का पूरी तरह भिन्न मत है क्योंकि रूस भारत का सबसे सच्चा व पक्का मित्र है। श्री सुनक रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाने के भी हिमायती हैं जबकि भारत का रुख ठीक इसके विपरीत रहा है। परन्तु हकीकत यह है कि जी-20 देश रूस से आयातित ऊर्जा व कच्चे तेल पर प्रतिबन्ध लगाने के सपने को भी पूरा नहीं कर सके हैं। यहां भारत की कूटनीति ने कमाल दिखाया है। श्री मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों से भी मुलाकात की। इसके अलावा वह जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज, आस्ट्रेलिया के प्रधानमन्त्री एंथोनी अल्बानीज से भी मिले। साथ ही कुछ अन्य देशों के प्रमुखों के साथ भी मुलाकात की। इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि विश्व के विभिन्न देश द्विपक्षीय सम्बन्धों की गरमाहट के आधार पर विश्व व्यवस्था में बदलाव की राह देख रहे हैं। भारत एक जमाने से विकासशील देशों का अगुवा रहा है